भोपाल: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का एक युवा नेता जिसने 22 बरस की उम्र में कांग्रेस का दामन थाम लिया फिर 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से लोकसभा का चुनाव (Lok Sabha elections from Chhindwara) लड़कर संसद के गलियारे तक पहु्ंचे. गांधी परिवार (Gandhi family) के साथ उनके जुड़ाव का आलम कुछ ऐसा था कि इंदिरा गांधी ने एक चुनावी सभा election meeting() में उन्हें अपने तीसरे बेटे की संज्ञा दी थी. संजय गांधी के साथ उनकी दोस्ती के किस्से मशहूर हैं. इतना ही नहीं, जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस 15 साल से सत्ता से बाहर थी, तो उन्होंने ही 2018 में पार्टी का वनवास खत्म कराया. हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Former Chief Minister Kamal Nath) की. उनकी बात इसलिए की जा रही है क्योंकि सियासी गलियारों में इन दिनों चर्चा है कि वह जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.
कमलनाथ अगर ‘कमल’ के साथ अपनी सियासत को आगे बढ़ाते हैं, तो ये कांग्रेस के लिए कतई अच्छी खबर नहीं होगी. क्योंकि अब लोकसभा चुनाव होने में 90 दिन से भी कम समय बचा है. ऐसे में कांग्रेस के पुराने और दिग्गज नेता पार्टी का साथ छोड़ते जा रहे हैं. हाल ही में अशोक चव्हाण ने कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा था. हालांकि बीते 10 बरस में कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. इसमें कांग्रेस के पूर्व सीएम भी शामिल हैं. बता दें कि इस लिस्ट में गुलाम नबी आजाद बीजेपी में शामिल नहीं हुए, उन्होंने अपनी पार्टी बना ली.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने इसी महीने की 12 फरवरी को पार्टी छोड़ दी थी और अगले ही दिन ये खबर आई कि वह बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इतना ही नहीं, बीजेपी ने उन्हें पार्टी बदलने का गिफ्ट देते हुए महाराष्ट्र से ही राज्यसभा भेजने का फैसला किया. चव्हाण पहली बार 1987 में लोकसभा सांसद चुने गए थे. वह दूसरी बार 2014 में लोकसभा सांसद बने. अपने राजनीतिक करियर में वह 2 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख सरकार में वह सांस्कृतिक मामलों, उद्योग, खान और प्रोटोकॉल मंत्री भी रहे. अशोक चव्हाण 8 दिसंबर 2008 से 9 नवंबर 2010 तक डेढ़ साल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. उनका नाम आदर्श इमारत घोटाले में आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. यहां तक कि वो महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनाए गए.
पंजाब की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2021 सितंबर में कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ दिया था. इसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था. अमरिंदर सिंह के पिता महाराजा यादवेंद्र सिंह पटियाला रियासत के अंतिम राजा थे. राज परिवार ताल्लुक रखने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भारतीय सेना में भी सेवाएं दी और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लड़े भी. 1980 के दशक में देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर अमरिंदर सिंह ने राजनीति में कदम रखा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह ने अमृतसर से बीजेपी नेता अरुण जेटली को एक लाख से अधिक वोटों से हराया था. कांग्रेस ने 2017 में पटियाला के महाराज पर दांव खेला और बाजी अपने पक्ष में कर ली. साढ़े चार साल के बाद पंजाब की सियासत ने करवट ली और कैप्टन को सीएम की कुर्सी से हाथ धोना पड़ गया था और उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया.
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मई 2016 में बीजेपी का दामन थामा था. विजय बहुगुणा उत्तराखंड के 8 पूर्व विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे. जनवरी 2014 में विजय बहुगुणा ने इस्तीफा दिया था. उन्होंने मार्च 2012 से जनवरी 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया था. विजय बहुगुणा की बहन उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही थीं. उनके पिता हेमवतीनंदन बहुगुणा का परिवार दशकों से कांग्रेस में था.
साल 1999 से 2004 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एसएम कृष्णा ने 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन की थी. एसम कृष्णा 1968 में पहली बार सांसद बने थे. वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों के साथ काम कर चुके हैं. 1999 में उन्होंने कांग्रेस को कर्नाटक में जीत दिलाई थी. कृष्णा महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रह चुके हैं. हालांकि एसएम कृष्णा सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं.
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने साल 2023 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया था. किरण कुमार रेड्डी अविभाजित आंध्र प्रदेश के अंतिम मुख्यमंत्री थे. रेड्डी ने इससे पहले 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार के आंध्र प्रदेश को विभाजित करने और तेलंगाना बनाने के फैसले पर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी जय समैक्य आंध्र पार्टी बनाई थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस में लौट आए थे. किरण रेड्डी ने पिछले साल बीजेपी का दामन थाम लिया था.
अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी एक वक्त में कांग्रेसी नेता थे. दिसंबर 2016 में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के 32 विधायकों के साथ वो भाजपा में शामिल हुए थे. खांडू सरकार जुलाई 2016 से सत्ता में है. पहले इस सरकार का नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी, लेकिन खांडू और लगभग सभी कांग्रेस विधायक सितंबर 2016 में पीपीए में शामिल हो गए थे, लेकिन बाद में खांडू को अपनी सत्ता की स्थिति बनाए रखने की अनुमति मिली थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के करीबी रहे गुलाम नबी आजाद ने अगस्त, 2022 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से किनारा कर अपनी नई पार्टी बना ली है. गुलाम नबी आजाद 1970 के दशक से कांग्रेस से जुड़े. 1980 में उन्होंने यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. वे पहली बार 1980 में महाराष्ट्र के वाशिम से लोकसभा चुनाव जीते थे. उन्हें 1982 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था. आजाद 1990-1996 तक महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रहे. वह 2005 में जम्मू कश्मीर के सीएम भी बने. साल 2008 में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया था, इसके बाद आजाद की सरकार गिर गई थी.
कांग्रेस से दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के क्रम में महाराष्ट्र के नेता नारायण राणे का नाम भी शामिल है. उन्होंने सितंबर, 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़ा था. उन्होंने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष बनाया और 2018 में बीजेपी को समर्थन दिया था, लेकिन साल 2019 में राणे बीजेपी में शामिल हो गए थे. नारायण राणे का सियासी करियर शिवसेना से शुरू हुआ था. 1999 में बाल ठाकरे ने नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला लिया था. लेकिन 2005 में वे शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved