ब्रुसेल्स ।ब्रिटिश प्रधानमंत्री (British Prime Minister) बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) द्वारा यूरोपीय संघ (EU) के साथ ब्रेग्जिट (Britain out of Europe) व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही दोनों देश दोस्त से प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं। ब्रिटिश संसद ने इसे 73 के मुकाबले 521 मतों से मंजूरी दे दी। शुक्रवार से दोनों पक्ष नए सिरे से शुरुआत करेंगे। जबकि यह रिश्ता कुछ वर्षों का नहीं बल्कि 1,000 वर्षों के ताने-बाने में गुंथा है।
ईयू से औपचारिक तौर पर अलग होने के 11 माह बाद शुक्रवार से ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के लिए ब्रेग्जिट वह सच्चाई हो जाएगी जिसे दोनों तरफ के लोग रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस करेंगे। बृहस्पतिवार को इसका संक्रमणकाल खत्म होने के बाद ब्रिटेन दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी संघ से अलग हो जाएगा।
इस बीच, सीमा शुल्क नियंत्रण, लालफीताशाही और सालों चली अलगाव प्रक्रिया की कड़वी यादें नए दौर में दोनों को चुभेंगी। एक-दूसरे से अलग होने की प्रक्रिया भले साढ़े चार साल चली हो, लेकिन इसके ढीले सिरों को कसने में कई और महीने या साल लगेंगे। सेंटर फॉर यूरोपीयन रिफॉर्म थिंक टैंक के चार्ल्स ग्रांट के मुताबिक, किसी न किसी वजह को लेकर ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के साथ आने वाले कई दशकों तक लगातार बातचीत करते रहना होगा।
सहमति के बीच उच्च मानकों की चुनौती
समझौते में दोनों पक्षों के बीच प्रमुख मांगों पर सहमति तो बन गई है और इसने ईयू के बाजारों को ब्रिटेन के लिए शुल्क मुक्त बनाकर जरूरी संरक्षण भी दे दिया है लेकिन इसके लिए ब्रिटेन को सामाजिक, रोजगार और पर्यावरण के उच्च मानकों को बनाए रखना होगा। ईयू खुद को सर्वोच्च साझेदार मानता है जो 45 करोड़ ग्राहकों का संघ है। ऐसे में ब्रिटेन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
यूरोप की चिंता, ब्रिटेन की परेशानी
यूरोपीय संघ को चिंता है कि ब्रिटेन मानकों को घटाते हुए कम टैक्स वाला बनकर यूरोप के दरवाजे पर ही उससे बढ़त ले लेगा। इसी कारण ब्रेग्जिट डील में उसने समान स्तर के तहत एक सीमा तय की गई है जिसके आगे जाने पर ब्रिटेन को हर्जाना देना होगा। इससे ब्रिटेन को परेशानी आ सकती है।
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