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मालगाड़ियों के अलग ट्रैक से दौड़ेगी इकोनॉमी

January 14, 2021

– अरविन्द मिश्रा

देश के विकास को अब भारतीय रेल की मालगाड़ियों से नई रफ्तार मिलने वाली है। अब एक्सप्रेस और मुसाफिर रेलों को मालगाड़ियों की वजह से न तो अपना समय गंवाना पड़ेगा और न ही उनकी रफ्तार कम होगी। पंजाब से हजारों टन अनाज या मध्य प्रदेश के सिंगरौली से कोयला लेकर हर दिन दौड़ने वाली मालगाड़ियों को अब मुसाफिर ट्रेनों की वजह से अपनी रफ्तार कम नहीं करनी पड़ेगी। इसी तरह हरियाणा के महेंद्रगढ़, राजस्थान के जयपुर, अजमेर, सीकर और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, कानपुर जैसे जिलों में लगे उद्योगों को बंदरगाहों तक पहुंचने में मौजूदा वक्त के मुकाबले काफी कम समय और लागत लगानी होगी। मालगाड़ियों के लिए अलग से तैयार किए गए रेलवे ट्रैक परियोजना से यह सब मुमकिन होगा।

देश में माल गाड़ियों के लिए अलग रेलवे ट्रैक विकसित करने वाली बहुप्रतीक्षित डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना आखिरकार परिचालन के स्तर आ चुकी है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना के एक हिस्से (ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर) पर बने न्यू खुर्जा-न्यू भाऊपुर रेलवे ट्रैक का उद्घाटन किया। इस 351 किमी लंबे रेलवे ट्रैक पर पहली मालगाड़ी दौड़ने लगी है। 7 जनवरी को ही इसी परियोजना के दूसरे हिस्से वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर 306 किमी लंबे न्यू रेवाड़ी-न्यू मदार खंड को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया। इस माल गलियारे पर न्यू अटेली से न्यू किशनगढ़ के लिए विश्व के पहले डबल स्टैक लांग हाल कंटेनर ट्रेन जो कि लगभग डेढ़ किमी लंबी है, वह भी परिचालन के स्तर पर आ गई है। वेस्टर्न डीएफसी के इस ट्रैक पर तीन जंक्शन न्यू रेवाड़ी, न्यू अटेली, न्यू फूलेरा सहित 9 स्टेशन बनाए गए हैं।

इस पूरी परियोजना को सिर्फ रेलवे से जोड़कर देखना उचित नहीं है। यह देश के आर्थिक मोर्चे पर परिवहन तंत्र से लेकर वस्तुओं के आयात-निर्यात, रोजगार सृजन और पर्यावरण सुरक्षा सभी आयामों को गति देगा। इस विशाल परियोजना के वृहद स्वरूप का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ये दोनों फ्रेट कॉरिडोर 9 राज्यों तथा 60 से अधिक जिलों से होकर गुजरेंगे। यह पूरी परियोजना देश की आर्थिक तरक्की को कैसे पटरी पर लाएगी, इसे कुछ इस तरह समझ सकते हैं। वर्तमान में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बनाए जा रहे हैं। इसमें ईस्टर्न कॉरिडोर की लंबाई 1856 किमी है, जो लुधियाना से पश्चिम बंगाल के डानकुनी तक जाएगा। वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर 1504 किमी लंबा होगा, जो दादरी से जवाहर लाल नेहरू पोर्ट मुंबई तक फैला होगा। दोनों फ्रेट कॉरिडोर डबल ट्रैक के होंगे, यानी आने जाने वाली माल गाड़ियों के लिए अलग-अलग पटरियां होंगी।

भारतीय रेल दिल्ली-मुंबई, चेन्नई और हावड़ा चार महानगरों को जोड़ने वाली चतुर्भुज की एक कड़ी के समान है। इसे आमतौर पर स्वर्ण चतुर्भुज के रूप में जाना जाता है। इस रूट की कुल लंबाई 10,122 किमी है। जिससे भारतीय रेल के मालभाड़ा यातायात की 55 प्रतिशत से अधिक राजस्व आय आती है। पूर्वी और पश्चिमी कॉरिडोर लाइन देश की सबसे व्यस्त लाइन हैं, जिनकी क्षमता का लगभग 150 फीसदी तक उपयोग किया जा रहा है। उभरती हुई शक्ति को भारी कोयला संचलन, तीव्र मूल-भूत ढांचा निर्माण और बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कारण डेडिकेटेट फ्रेट कॉरिडोर की अवधारणा ने जन्म लिया है।

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और उस पर दौड़ने वाली मालगाड़ियों की औसत रफ्तार लगभग 100 किमी प्रति घंटा होगी, जो अभी चल रही मालगाड़ियों की औसत रफ्तार से काफी अधिक होगी। इससे न केवल समय की बचत होगी बल्कि एक साथ ज्यादा माल एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा सब्जी, फल और दूध जैसे जल्दी खराब होने वाले माल को होगा। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर न केवल तेज रफ्तार माल गाड़ियां समय पर माल ढोएंगी बल्कि ये पूरी तरह से अति आधुनिक सिग्नल, ट्रैक, इंजन और कम्युनिकेशन सुविधाओं से भी जुड़ी होंगी। आने वाले दिनों में ऐसी उम्मीद की जा रही है कि कूरियर और ई-कॉमर्स की तरह से मालगाड़ियों से माल भेजने और मंगवाने की हर पल की जानकारी ट्रैक भी की जा सकेगी।

अभी रेलवे की सभी गाड़ियां चाहे वो माल गाड़ियां हों या आम सवारी गाड़ियां हों या मेल एक्सप्रेस और शताब्दी-राजधानी सभी एक ही ट्रैक पर दौड़ती हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय रेलवे ट्रैक अपनी क्षमता से करीब डेढ़ गुना ज्यादा काम कर रहा है। इससे ट्रेनों की औसत रफ्तार भी कम हो गई और आने-जाने में लगने वाला समय भी बढ़ गया, ट्रेनों की लेट-लतीफी के पीछे भी ये एक बड़ा कारण है। डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के ईस्टर्न और वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर के पूरी तरह चालू हो जाने के बाद अभी भारतीय रेल के मौजूदा नेटवर्क से 40 प्रतिशत लाइनें मालगाड़ियों से मुक्त हो जाएंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो फ्रेट कॉरिडोर के अस्तित्व में आने से सवारी गाड़ियों के लिए पटरियों पर जगह खाली हो जाएगी, उम्मीद की जा रही है कि अगर रेलवे चाहे तो 25 से 30 फीसदी तक यात्री गाड़ियों की संख्या बढ़ा सकता है।

जाहिर है इसका फायदा आम यात्रियों को ही होगा। यहां उल्लेखनीय है कि माल ढुलाई यातायात में रेलवे की घटती हिस्सेदारी के बारे में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल माल ढुलाई में से 57 प्रतिशत की ढुलाई सड़क मार्ग से की जाती है, जबकि चीन में 22 प्रतिशत और अमेरिका में 32 प्रतिशत माल की ढुलाई सड़क मार्ग से की जाती है। इसके विपरीत भारतीय रेल देश के कुल माल ढुलाई यातायात में से केवल 36 प्रतिशत की ही ढुलाई करता है, जबकि अमेरिका में 48 प्रतिशत और चीन में 47 प्रतिशत ढुलाई रेलवे द्वारा की जाती है।

इसके अतिरिक्त डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर वायु प्रदूषण रोकने और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में भी बड़ा योगदान देगा। पिछले दिनों पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए पर्यावरण समझौते के मुताबिक भारत को अगले 15 साल में कार्बन उत्सर्जन में लगभग एक फीसदी कटौती का जो वादा किया है, उसमें बड़ा हिस्सा सड़क यातायात से ट्रकों को कम करने से आ सकता है। ये तभी हो सकता है जब ट्रक ट्रांसपोर्ट का कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध हो। यहीं पर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर सड़कों से ट्रकों का बोझ हटाने में मददगार साबित होगा। माना जा रहा है कि दोनों निर्माणाधीन फ्रेट कॉरिडोर पर हर 10 मिनट में एक मालगाड़ी दौड़ेगी। मालगाड़ियों की लंबाई भी 700 मीटर से दोगुनी होकर 1.5 किमी हो जाएगी। माना जा रहा है कि हर मालगाड़ी में लगभग 300 ट्रकों के बराबर माल ढोया जा सकेगा।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे सड़कों का बोझ भी कम होगा। साधारण गणित का इस्तेमाल करें तो अगर हर 10 मिनट में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर्स पर एक मालगाड़ी के हिसाब से जोड़ें तो दिन में 140 ट्रेनें चलेंगी और अगर एक मालगाड़ी में 300 ट्रकों का माल ढोया जाए तो 43,200 ट्रकों का माल रोजाना इन फ्रेट कॉरिडोर से ढोया जा सकेगा। यही नहीं नई मालगाड़ियों को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि इन पर माल रखने का प्लेटफार्म आज की मालगाड़ियों से कुछ ज्यादा चौड़ा हो, साथ ही जमीन से इसकी ऊंचाई भी घटाई जा रही है। इससे एक के ऊपर एक दो वैगन या कंटेनर रखे जा सकेंगे, कई मायनों में इस तरह की माल ढुलाई विश्व इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित करेगी।

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर ऑफ इंडिया लिमिटेड के दोनों निर्माणाधीन कार्यान्वयन में इस बात का विशेष ध्यान रख रहा है कि अधिक ऊर्जा दक्षता के साथ इन्हें परिचालित किया जा सके। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के अगले 30 वर्ष के बारे में लगाए गए एक अनुमान के मुताबिक अगर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर न बने तो ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 582 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होगा, जबकि दोनों डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के काम शुरू होने के बाद केवल 124.5 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होगा, जो एक चौथाई से भी कम होगा।

ख़ास बात यह है कि रेल मंत्रालय की चार और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनाने की योजना है। इनके लिए डीएफसीसीआईएल को प्रारंभिक इंजीनियरिंग और यातायात सर्वेक्षण का काम सौंपा गया है। ये अतिरिक्त कॉरिडोर करीब 2,330 किमी का पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (कोलकाता-मुंबई), करीब 2,343 किमी. का उत्तर दक्षिण कॉरिडोर (दिल्ली-चेन्नई), 1100 किमी का पूर्व तटीय कॉरिडोर (खड़गपुर-विजयवाड़ा) और लगभग 899 किमी. का दक्षिणी कॉरिडोर (चेन्नई-गोवा) हैं। फ्रेट कॉरिडोर के स्टेशनों के आसपास सरकारी और निजी क्षेत्र के वेयर हाउस निर्माण में तेजी आने से इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण होगा। माल गोदामों की संख्या बढ़ने से अनाज सब्जियों की बर्बादी पर लगाम लगेगी। जिन क्षेत्रों से डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर गुजरेगा, वहां नई दुकानें, होटल, बाज़ार विकसित होंगे। माल की आवाजाही के लिए ट्रकों, ट्रैक्टर ट्रॉलियों की संख्या बढ़ेगी। इसके संकेत अभी से आगरा-टूंडला लाइन पर खरेजी के पास डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट आने से मिलने लगे हैं। यहां बरसों से बंजर पड़ी जमीन महंगी हो गई। अच्छा मुआवजा मिलने से नई बस्तियां और बाज़ार विकसित हो रहे हैं।

जाहिर है, कोरोना संकट के बीच नए दशक में प्रवेश करते हुए देश की अर्थव्यवस्था रेल पटरियों से न सिर्फ रफ्तार हासिल करेगी बल्कि उसके आकार को 5 खरब डॉलर के स्वर्णिम स्तर पर ले जाने में भी सहायक होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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