– डॉ. नितिन सहारिया
भारतवर्ष को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं। हमें 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता तो प्राप्त हुई किंतु अभी भी हम अंग्रेजीयत / इस्लामियत को धारण किए हुए हैं। न्यायालय में अंग्रेजी-उर्दू का प्रयोग, वही अंग्रेजी जमाने के गुलामी के कानून आईपीसी, सीआरपीसी की धाराएं और भी अनेकों विदेशी चीजों से हमने आज भी मुक्ति नहीं पाई है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘स्व’ का तंत्र बनाना चाहिए था। किंतु ऐसा नहीं हो सका। हमने उन्हीं का गुणगान किया जिन्होंने हमें पराधीन (गुलाम) बनाया था। ऐसा लगता है हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता के पश्चात सत्ता गलत लोगों के हाथों में चली गई थी। तभी तो भारत आज तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया है।
एक तरफ आंशिक रूप से हमने कुछ सुधार अवश्य किए थे। गुलामी के चिह्न जॉर्ज पंचम की मूर्ति को इंडिया गेट से हटाया, मिंटो ब्रिज को शिवाजी ब्रिज, विक्टोरिया पार्क को महात्मा गांधी पार्क किया। कोलकाता, मद्रास, बॉम्बे को हमने कोलकाता-चेन्नई -मुंबई किया। किन्तु अभी भी देश में बड़े सुधार की आवश्यकता है। भारत के संविधान की पूरी समीक्षा हो व वर्तमान की देश की प्रासंगिकता/ आवश्यकता के अनुरूप उसका स्वरूप का निर्धारण हो। ज्यादा लचीलेपन के कारण देश में भ्रष्टाचार बढ़ा है। आज भी भारत के न्याय के मंदिर में विदेशी अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। उच्च शिक्षा इंजीनियरिंग, तकनीकी, भारतीय प्रशासनिक सेवा इत्यादि में अंग्रेजीयत की पैठ/ दबदबा है। आजादी के 75 वर्षों बाद भी गुलामी के अवशेष अभी भी देश में बाकी हैं। जरा विचार कीजिए जापान में शिक्षा जापानी भाषा में होती है। जर्मनी में जर्मन भाषा में, फ्रांस में फ्रेंच भाषा में, इंग्लैंड में अंग्रेजी में, रूस में रशियन भाषा में तो फिर भारत में शिक्षा हिंदी में क्यों नहीं?
भारत की राजधानी दिल्ली का अद्भुत नजारा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। कभी दिल्ली जाकर देखिए आपको ऐसा लगेगा कि आप पाकिस्तान की राजधानी में आ गए हैं। अकबर रोड, तुगलक रोड, हुमायूं रोड, औरंगजेब-जहांगीर -शाहजहां रोड, सराय काले खां बस स्टॉप, हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन, मुगल गार्डन, मंगोलपुरी, जहांगीरपुरी, आसफ अली रोड। क्या है ये सब? भारत आजाद हुआ है कि नहीं? अथवा देश की स्वतंत्रता के नाम पर छलावा हुआ है? यदि छलावा नहीं तो फिर यह दृश्य क्या है? यह देश में चल क्या रहा है? इसके विपरीत पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में तो कहीं लेशमात्र भी भारत की झलक/ झांकी नहीं दिखलाई देती, फिर भारत में यह सब क्यों? यही सबसे बड़ा प्रश्न है।
कुछ प्रश्नों पर जरा हम विचार करें –
लुटेरों (आतताइयों के) नाम पर देश की राजधानी के मार्गों के नाम क्यों?
लुटेरों के नाम पर देश की राजधानी के मार्गों का नामकरण आखिर किसने किया? क्यों किया?
दिल्ली भारत की राजधानी है या पाकिस्तान की?
देश में आजादी के 75 वर्ष बाद भी गुलामी के अवशेष शेष क्यों?
कौन देशद्रोहियों से प्रेम कर रहा /किसे है? खगोलीय वेधशाला का नाम बदलकर आखिर कुतुब मीनार किसने करवाया? किसने तेजो महालय (शिव मंदिर) को ताजमहल लिखवाया इतिहास की पुस्तकों में? वाराणसी में ज्ञानवापी जब मंदिर है तो फिर मस्जिद किसने बनाई? किसने इतिहास की पुस्तकों में उसे झूठा ज्ञानवापी मस्जिद लिखवाया? किसने इतिहास में इतने झूठे/मिथक गढ़े/ लिखवाए?
ताजमहल के बंद कमरों की वीडियोग्राफी की जाए। आखिर ज्ञानवापी की वीडियोग्राफी से मुस्लिम समाज को ऐतराज/ घबराहट क्यों? क्या कुतुब मीनार का एएसआई द्वारा सर्वे/ वीडियोग्राफी /अनुसंधान नहीं किया जाना चाहिए? देश में 95 प्रतिशत मस्जिदें मंदिर ध्वस्त करके उसके ऊपर ही बनाई गई हैं, अतः सभी की जांच /अनुसंधान एएसआई द्वारा किया जाए ; अब मुगल काल बीत चुका है। भारत में दिल्ली चांदनी चौक का नाम ‘गुरु तेग बहादुर शहीदी स्थल’ किया जाना चाहिए, अकबर रोड -महाराणा प्रताप मार्ग, तुगलक रोड -जनरल बिपिन रावत मार्ग, हुमायूं रोड- भगत सिंह मार्ग किया जाना चाहिए। इतिहासकारों का बयान है कि दिल्ली की जामा मस्जिद कभी बड़ा भव्य मंदिर हुआ करता था।आखिर मथुरा की वास्तविक श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर 75 वर्षों से मस्जिद क्यों बनी हुई है? कौन इसे संरक्षण दे रहा है?
आखिर कौन इन लुटेरों की वकालत कर रहा है ? क्या वह भारतीय नहीं? क्या उसे देश ( भारत) से प्रेम नहीं ? भारत को 15 अगस्त 1947 को ‘स्वतंत्रता’ तो मिली किंतु ‘स्वाधीनता’ नहीं। स्व के जागरण से ही स्वाधीनता की प्राप्ति होगी। सृष्टि का यही अटल नियम है की -“अंत में सब दूध का दूध और पानी का पानी होता है।” अंत में सत्य ही विजित होता है। हर रात की सुबह होती है । स्वामी विवेकानंद ने कहा था – To be good and to do good that is the whole of religion .” जो जैसा करता है, वह वैसा ही पाता है यही धर्म का सार है।” अब एक झटके में गुलामी के अवशेषों से मुक्ति पानी होगी तभी हम ‘स्व ‘ से ‘स्वाधीनता’ के पथ पर अग्रसर होंगे।
अत: सत्य, धर्म व नैतिकता का मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ है। किसी वस्तु को शक्ति/डंडे के बल पर कुछ देर तक ही दबाया जा सकता है किंतु यह भी परम सत्य है कि शक्ति से ही धर्म /सत्य की प्रतिष्ठा होती है। शक्ति से ही शांति आती है। संतुलन बनता है अतः शक्ति का संचय, आराधना करनी चाहिए तभी तो स्व भी पुष्ट होगा व भविष्य उज्ज्वल होगा। जितनी जल्दी हम गुलामी के अवशेषों से मुक्ति प्राप्त करेंगे उतनी ही जल्दी हमें स्वाधीनता प्राप्त होगी। राष्ट्र का भविष्य उज्जवल होगा।
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं।)
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