उज्जैन। जाने-माने पत्रकार, पूर्व राज्यसभा सदस्य एवं स्वाधीनता सैनानी स्व. कन्हैयालाल वैद्य की पुण्यतिथि 16 दिसम्बर को है। इस मौके पर राजेंद्र जैन सभागृह उज्जैन में दोपहर 3 बजे व्याख्यानमाला का आयोजन होगा। वैद्य स्मृति समिति के सदस्य क्रांतिकुमार वैद्य ने मंगलवार को हिंदुस्थान समाचार संवाददाता को बताया कार्यक्रम में शहर के बुद्धिजीवियों को आंमत्रित किया गया है। इस मौके पर विभिन्न वक्ता दिवंगत वैद्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालेंगे।
वैद्य स्मृति व्याख्यान माला समिति से प्राप्त जानकारी के अनुसार वैद्य को पंडित जवाहरलाल नेहरू की अनुशंसा पर पत्रकार के किरदार में देश की पहली राज्यसभा 1952 में सदस्य बनाया गया था। तब वरिष्ठ पत्रकार शिवकुमार कौशिक ने अपने एक लेख में यह बताया थाकि पत्रकार वैद्य उज्जैन से दिल्ली शपथ लेने गए तो वे तत्कालीन उज्जैन के सांसद कृष्णकांत व्यास के निवास पर ठहरे थे। तब अपना एक की कुर्ता रात को धोया और सुबह शपथ ली थी। उन्होंने जीवन पर्यंत अन्याय एवं शोषण के खिलाफ एक मिशन के रूप में पत्रकारिता की। देशी रियासतों के विलीनीकरण में उनका सक्रिय योगदान रहा। कर्मभूमि उज्जैन में रहकर पत्रकारिता के क्षेत्र में कई कीर्तिमान रचे। वैद्य की राष्ट्रसेवाओं का मूल्यांकन कर शिवराजसिंह सरकार ने वर्ष 2008 में उज्जैन संभाग के लिए कन्हैयालाल वैद्य स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार की नींव रखी। प्रत्येक वर्ष एक पत्रकार को वैद्य स्मृति पुस्स्कार से नवाजा जाता है।
झाबुआ जिले के थांदला में जागीरदार स्व. दौलतराम वैद्य के यहां 1 फरवरी 1908 को उनका जन्म हुआ। झाबुआ में वकालात शुरू की तब अंगेजों के जमाने में मात्र 22 वर्ष की उम्र में 1931 में उनकी वकालात की सनद को छिन लिया गया। झाबुआ राज्य के तत्कालीन राजा उदयसिंह से लोहा लेने पर धारा 124 ए के तहत राजद्रोह का मुकदमा उन पर लादकर 6 माह तक जेल में बंद किया गया। रियासतों से मुक्ति एवं जागीरदारों के खिलाफ जंग आपके जीवन का हिस्सा रहा।
जयप्रकश नारायण के संग अखबार निकाला
जानकारी के अनुसार राजस्थान के पूर्व मुख्यंमंत्री जयप्रकाश नारायण के साथ वर्ष 1936 में दैनिक अखंड भारत समाचार पत्र मुंबई से निकाला था। इस समाचार में प्रकाशित तीखी खबरों से लगभग एक दर्जन राजा को राजपाट खोना पड़ा। पत्रकारिता के जीवन में उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, उर्दू भाषाओं में लगभग 40 प्रमुख समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दी। तकरीबन 70 से अधिक समाचार पत्रों में स्वतंत्र पत्रकार के किरदार में लेखनी चलाई। स्वाधीनता आंदोलन तथा राजाओं के खिलाफ आवाज उठाने पर आपको महिनों तक जेल जाना पड़ा। झाबुआ रियासत में परिवार के लोग बेगारी में कार्य करने के लिए विवश किए गए। जिसका परिणाम हैकि वैद्य के परिजन स्व. बद्रीनारायण वैद्य, स्व. रामनारायण वैद्य, स्व. तुलसीराम वैध को स्वाधीनता सेनानी के सम्मान से प्रदेश सरकार ने नवाजा।
राज्यसभा से किराए के मकान में लौटे
वैद्य वर्ष 1958 में राज्यसभा से निवृत होकर लौटे तो पत्नी रूप कुंवर वैद्य एवं परिजनों को उज्जैन में वहीं किराए का मकान नसीब हुआ जिसे छोडक़र दिल्ली राज्यसभा में गए थे। वैद्य के जीवन में तीन रूप देखने को मिलते हैं। आजादी आंदोलन काल में संघर्ष से एक जाने-माने स्वाधीनता सेनानी बने। साथ ही पत्रकार की भूमिका में वे जीवन पर्र्यत एक तपस्वी साधक बनकर उभरे। राजनीति में एक लड़ाकू राजनेता के रूप में देश में अमिट छाप छोड़ी। उनकी एक ईमानदार राजनेता एवं निर्भिक पत्रकार की छवि से देश में पहचान बनी। सादा जीवन उच्च विचार के धनी वैद्य का आजीवन खादी से रिश्ता रहा। धोती-कुर्ता उनके परिधान थे।