नई दिल्ली. साड़ी (sarees) पहनी कुछ महिलाएं (women) मनरेगा (MNREGA) मजदूरों (Laborers) की तरह काम कर रही थी. रंग बिरंगी साड़ियों में लिपटी इन महिलाओं ने घूंघट (ghoonghat) काढ़ रखा था और शर्मिली चाल से चलने की कोशिश कर रही थी. लेकिन उनके हाव-भाव देखकर शक गहराया तो अधिकारियों ने उनका घूंघट हटवाकर देखा तो हैरान रह गए. उस घूंघट के पीछे से पुरुषों का चेहरा निकला. इन्होंने महिलाओं को वेष धरकर सरकारी स्कीम से करीब 3 लाख रुपये का फायदा उठा लिया.
यह घटना कर्नाटक के यादगीर जिले की है, जहां इन पुरुषों ने महिलाओं के रूप में खुद के फोटो खिंचवाए और बाद में इन तस्वीरों को अटेंडेंस लगाने के लिए राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी सेवा (NMMS) पर अपलोड किया, ताकि यह गलत तरीके से दर्शाया जा सके कि महिला मजदूर यहां काम कर रही थीं.
यह घटना फरवरी 2025 की बताई जा रही है. इस ठगी की वजह से जहां सरकारी योजना को चूना लगाया गया, वहीं काम की तलाश में भटक रही वास्तविक महिला मजदूरों को रोजगार से वंचित होना पड़ा.
जब यह मामला सामने आया तो स्थानीय लोगों ने प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. हालांकि, स्थानीय पंचायत ने खुद को निर्दोष बताया और सारा दोष आउटसोर्स कर्मचारियों पर डाल दिया.
मल्हार गांव के पंचायत विकास अधिकारी चेन्नबसवा ने कहा, ‘इस मामले में मेरी कोई भूमिका नहीं है. एक आउटसोर्स कर्मचारी ने यह सब किया और मुझे इसकी जानकारी नहीं थी. जब मामला सामने आया, तो मैंने उस कर्मचारी को सस्पेंड कर दिया. अब गांव में मनरेगा योजना के तहत काम सुचारू रूप से चल रहा है. हमने 2,500 मजदूरों को काम मुहैया कराया है.’
इस बीच, ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग ने दावा किया कि मार्च से उसने मनरेगा योजना के तहत 100 दिन का रोजगार देने की पहल की थी, ताकि मजदूरों को बड़े शहरों की ओर पलायन करने से रोका जा सके. यादगिर जिला पंचायत ने भी कहा कि सभी ग्राम और तालुक पंचायतों में डिमांड सेंटर्स खोले गए हैं, ताकि जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें तुरंत मदद दी जा सके.
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