भोपाल। प्रदेश में अभी उपचुनाव की तारीख का एलान नहीं हुआ है, लेकिन इसके पहले ही कर्मचारी आंदोलन की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सोमवार को मप्र कर्मचारी कांग्रेस के अलावा डिप्लोमा इंजीनियर के आंदोलनों से इसकी शुरुआत होगी। लंबित मांगों के अब तक पूरा नहीं होने से कर्मचारियों में नाराजगी है। उधर उपचुनाव में कर्मचारियों की नाराजगी सरकार के लिए भारी न पड़ जाए, इसे ध्यान में रखते हुए नाराज कर्मचारी संगठनों को मनाने की कवायद भी तेज हो गई है।
मप्र कर्मचारी कांग्रेस अध्यक्ष सुनील ठाकरे और मप्र डिप्लोमा इंजीनियर एसोसिएशन के अध्यक्ष उदित सिंह भदौरिया ने बताया कि सभी जिला और संभाग मुख्यालयों पर 14 सितंबर को लंबित मांगों को लेकर कर्मचारी आंदोलन करेंगे। इस दौरान मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा। कर्मचारी व डिप्लोमा इंजीनियरों के आंदोलन के पीछे मुख्य वजह है उन्हें महंगाई भत्ते का लाभ नहीं मिला। साल में एक बार मिलने वाली वेतन वृद्घि पर निर्णय लंबित है। सातवें वेतनमान के एरियर की तीसरी किस्त इसी साल मई माह में मिलनी थी, जो स्थगित कर दी गई। जीपीएफ की ब्याजदरों को ईपीएफओ की तरह नहीं बढ़ाया जा रहा है। पदोन्नति का लाभ नहीं मिल रहा।
हजारों अधिकारी, कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए। भृत्य का पदनाम बदलने, पूर्व से वरिष्ठ वेतनमान पाने वाले अधिकारी, कर्मचारियों को वरिष्ठ पदनाम नहीं दिया। कई दफ्तरों में काम करने वाले दैनिक वेतन भोगियों को स्थाईकर्मी नहीं बनाया, जिन्हें स्थाईकर्मी बनाया, उन्हें नियमित नहीं किया। अधिकतम 18 हजार रुपये मानदेय दे रहे हैं। अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान नहीं किया।
संविदाकर्मियों को नियमित किया जाए, जिन्हें हटाया, उन्हें वापस सेवा में नहीं लिया। संक्रमण रोकने के लिए काम कर रहे संविदा स्वास्थ्यकर्मियों की मौत पर परिवार के सदस्यों को 50 लाख रुपये बीमा राशि का लाभ नहीं दिया। संविदा इंजीनियरों को नियमित नहीं किया किया। रिक्त पदों पर भर्ती नहीं की। वरिष्ठ वेतनमान पाने वाले इंजीनियरों को पदनाम नहीं दिया जा रहा है।
उपचुनाव पर पड़ सकता है असर
कर्मचारियों की नाराजगी को कांग्रेस भुनाने की कोशिश कर रही है। मांगें लंबित होने की वजह से कर्मचारी और उनके स्वजन उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ वोट कर सकते हैं।
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