रांची। झारखंड (Jharkhand) के गांवों (Villages) की तकरीबन साढ़े चार हजार ‘दीदियों’ (Four and a half thousand didis) ने बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट सखी (BC Sakhi) के रूप में हर महीने 120 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का ट्रांजेक्शन कर (Doing 120 crore transactions) बैंकिंग की परिभाषा बदल डाली (Changed Banking Definition) ।
इनके जरिए दूर-दराज के गांवों में भी बैंकिंग की सेवाएं लोगों के दरवाजों तक पहुंच रही हैं। अब बुजुर्गों को पेंशन के लिए घर से 10-20 किलोमीटर दूर बैंक पहुंचकर लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता। दिन भर खेत में काम कर दो पैसे बचाने वाले किसान हों या सरकारी छात्रवृत्ति का लाभ पाने वाले छात्र, सबको बैंकिंग की सहुलियतें घर बैठे मिल रही हैं। गांवों के लोग इन्हें बैंक वाली दीदियों के रूप में जानते हैं।
बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट सखी (बी.सी. सखी) के रूप में काम कर रही ये महिलाएं सखी मंडल के नाम से चल रही उन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी है, जिनका गठन केंद्र की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन परियोजना के तहत किया गया है। झारखंड में यह परियोजना झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के जरिए चलायी जा रही है। सोसाइटी की सीईओ आईएएस नैन्सी सहाय बताती हैं कि पूरे झारखंड में 4619 महिलाएं बैंकिंग कॉरेस्पांडेंट (बी.सी.सखी) के रूप में काम कर रही हैं। सरकार का लक्ष्य है कि राज्य की प्रत्येक पंचायत में एक बी.सी. सखी की तैनाती हो। अभी हर महीने बी.सी. सखी लगभग पौने तीन लाख ट्रांजेक्शन करती हैं।
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