नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पूर्व जज जस्टिस अजय रस्तोगी (Former judge Justice Ajay Rastogi) ने दिल्ली (Delhi) के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) का संदर्भ देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के लिए हिरासत में रहते हुए पद पर बने रहना सही नहीं है। जस्टिस रस्तोगी ने कहा, मेरा मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 8 व 9 जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता से संबंधित है। दिल्ली जेल नियमावली में भी कई प्रतिबंध है जिसके तहत हर तरह के कागज को जेल अधीक्षक की निगाहों से गुजारना होता है और अधीक्षक की अनुमति के बाद ही आप किसी कागज पर साइन कर सकते हैं। जब इस तरह के प्रतिबंध कानून बनाने वालों ने लगाए हैं तो मेरा मानना है कि यह सही समय है कि कोई व्यक्ति यह सोचे कि क्या वह हिरासत में रहते हुए अपने पद पर बना रह सकता है।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, आप मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर हैं और यह सार्वजनिक पद है। यदि आप हिरासत में हैं तो मेरे हिसाब से आपका पद पर रहना उचित नहीं है। जन नैतिकता का तकाजा है कि आप निश्चित रूप से पद छोड़ दें। इस मामले में हमें अतीत की ओर भी देखना चाहिए। जे जयललिता, लालू प्रसाद यादव और हाल में हेमंत सोरेन, सबने पद छोड़ दिया। आप जेल में कोई कागज ले जाकर वर्तमान मुख्यमंत्री से उसपर साइन नहीं करवा सकते। इसलिए मैं बेहद दृढ़ता से यह मानता हूं कि नैतिकता के तहत इस्तीफा दिया जाना चाहिए।
सरकारी कर्मी को 48 घंटे की हिरासत के बाद मान लिया जाता है निलंबित
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, सरकारी सेवा के बारे में देखें। यदि एक सरकारी कर्मचारी 48 घंटे के लिए हिरासत में लिया गया जाता है तो कोई भी उसकी हिरासत के मेरिट पर बात नहीं करता, वह निलंबित मान लिया जाता है। यहां आप इतने लंबे समय से जेल में हैं और भगवान जाने कितने दिन रहेंगे। सिर्फ इसलिए कि इस बारे में कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, आपको पद पर बने रहने का अधिकार नहीं मिल जाता। इसलिए मेरे हिसाब से किसी न किसी को इस बारे में फैसला लेना होगा।
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