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    RBI के पूर्व गवर्नर ने बताई 1991 की कहानी, जब भारत को 46 टन सोना गिरवी रखना पड़ा

  • November 14, 2022

    नई दिल्ली: भारत के इतिहास में 1991 के वर्ष को आर्थिक सुधारों के नजरिये से बड़ा अहम माना जाता है. इससे पहले भारत की अर्थव्यवस्था खुली नहीं थी. 1991 और उसके बाद के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. सी. रंगराजन (Former Governor Dr. C. Rangarajan) की किताब से कई बड़ी बातों का खुलासा हुआ है. उन्होंने अपनी किताब The Road: My Days At RBI and Beyond में तब के चिंताजनक हालातों का जिक्र किया है.

    मनीकंट्रोलकी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन (Former Governor C. Rangarajan) ने लिखा है कि हमें (भारत को) पैसे जुटाने के उपाय और रास्तों के बारे में सोचना था. तब हमने विदेश में सोना गिरवी रखकर पैसे जुटाने का फैसला किया. 46 टन सोना विदेश में गिरवी रखा गया. एक चार्टर हवाई जहाज मुबंई एयरपोर्ट पर था और उसमें यह सोना रखवाया गया. फिर यह जहाज इंग्लैंड के लिए उड़ गया. तब हमने 50 करोड़ डॉलर से कम जुटाए. यह राशि आज काफी कम लग सकती है. विमान में सोना रखकर विदेश भेजना यह दुखद अनुभव था, लेकिन, हमने इसका सामना किया. अपनी इस किताब में RBI के पूर्व गवर्नर पद्म विभूषण डॉ. सी. रंगराजन की यह किताब The Road: My Days At RBI and Beyond भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर उनके अनुभवों और बड़े पड़ावों को समेटे हुए है.

    रंगराजन कहते हैं कि किताब लिखने की यह इच्छा लंबे समय से थी. 2014 में केंद्र में सरकार बदलने के बाद मैं दिल्ली से निकल गया. तब मुझे लगा कि यह सही समय है. तब मेरे मन में कुछ संदेह थे. रिजर्व बैंक में मेरे कार्यकाल की सभी घटनाओं के बारे में लिखना मुमकिन नहीं था. फिर, मैंने कुछ खास चीजों पर फोकस करने के बारे में सोचा.


    सी. रंगराजन का कहना है कि राजकोषीय नीति और मौद्रिक सख्ती के बीच की खींचतान को मैनेज करने के लिए कई उपाय करने होते हैं. कुछ हद तक यह कहा जा सकता है कि आज हम जो महंगाई देख रहे हैं, यह उन कुछ फैसलों की वजह से है, जो हमने पहले लिए थे. जब कोरोना की लहर चरम पर थी, तब सबने सरकार को अपना खर्च बढ़ाने की सलाह दी थी. सरकार का यह सलाह तब दी गई, जब सरकार का रेवेन्यू घट रहा था. इसका नतीजा क्या हुआ? ज्यादा उधार लेना पड़ा. उधार बढ़ गया तो इसे ध्यान में रखने की जरूरत थी. केंद्रीय बैंक को इसे खुलकर स्वीकार करने में संकोच हो सकता है, परंतु सच्चाई यह है कि RBI की तरफ से पर्याप्त लिक्विडिटी सपोर्ट के बिना यह उधारी मुमकिन नहीं थी.

    पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने कहा कि जहां तक रुपये का संबंध है तो फंड्स देश से बाहर अमेरिका जाने लगा, क्योंकि वहां इंटरेस्ट रेट बढ़ने लगा. इससे रुपये की वैल्यू घटने लगी. लेकिन, फिर से रुपया संभल रहा है. इसकी वजह फंड्स का बाहर जाना रुक जाना है. फंड्स आने शुरू हो गए हैं. इंडिया में भी मॉनेटरी पॉलिसी को उन चीजों का ध्यान रखना होगा, जो बाहर हो रही हैं.

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