लखनऊ (Lucknow) । राज्यसभा सांसद एवं पूर्व डीजीपी बृजलाल (Former DGP Brijlal) ने कहा कि माफिया मुख्तार अंसारी (Mafia Mukhtar Ansari) की मर्जी के बिना कोई भी पुलिस अधिकारी (Police officer) गाजीपुर (Ghazipur) में बहुत दिन तक नहीं टिक पाता था। उसने पुलिस में अपने तमाम लोगों को भर्ती कराया था, जिसमें सिपाही से लेकर डिप्टी एसपी तक शामिल थे। बृजलाल मुख्तार के समर्थन में फेसबुक पर पोस्ट करने पर निलंबित किए गये सिपाही फैयाज को लेकर प्रतिक्रिया दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि पुलिस में ऐसे तमाम फैयाज हैं। इनमें सिपाही से लेकर अधिकारी तक शामिल हैं। मुख्तार को दुर्दांत बनाने में सपा के साथ पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी जिम्मेदार रहे। जो मुख्तार के मुताबिक काम नहीं करता था, वह गाजीपुर में नहीं रह सकता था। उन्होंने कहा कि आईपीएस जावीद अहमद चार महीने 15 दिन, जमाल अशरफ 20 दिन, संदीप सांलुके 2 माह, अभय शंकर 4 माह, वीरेंद्र कुमार 28 दिन, अविनाश चंद्रा 2 माह, अखिल कुमार एक माह, राजेश श्रीवास्तव 11 दिन, एन. रवींद्र 3 माह, तरुण गाबा 3 माह 23 दिन, डॉ. प्रीतिंदर सिंह 7 माह 15 दिन, बृजराज 5 माह, सुभाष दुबे एक माह 20 दिन, वैभव कृष्ण दो माह 8 दिन, आनंद कुलकर्णी 2 माह 10 दिन, रविशंकर छवि एक माह और जसबीर सिंह एक दिन ही गाजीपुर में टिक पाए।
भाजपा कार्यकर्ता की हत्या की
उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान दीपक शर्मा एसपी थे। वोटिंग शुरू होते ही मुख्तार ने एके-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर दलित युवक की मोहम्मदाबाद में हत्या कर दी, जो भाजपा का कार्यकर्ता था। इसी तरह कृष्णानंद राय के गांव के भाजपा कार्यकर्ता अवलेश राय की भी हत्या कर दी। कई बूथों पर गोलियां चलवाईं, जिससे जनता में दहशत फैल गयी। इस दौरान दीपक शर्मा निष्क्रिय रहे। मैंने आईजी जोन केएल मीना को मौके पर भेजा, तक तक मुख्तार और अफजाल अपना मकसद पूरा कर चुके थे। मनोज सिन्हा को हराकर अफजाल सपा सांसद बन गया। आईजी कानून-व्यवस्था और चुनाव का नोडल अधिकारी होने की वजह से मैंने गाजीपुर चुनाव को दोबारा कराने की सिफारिश की, जिसे नकार दिया गया।
छापा पड़ता तो बच जाते कृष्णानंद राय
उन्होंने बताया कि वर्ष 2005 में गाजीपुर के एसपी मुकेश बाबू शुक्ला थे। मुख्तार ने जेल में रहकर कृष्णानंद राय की हत्या की साजिश रची। उसके घर पर मुन्ना बजरंगी, अताउर्रहमान बाबू, शहाबुद्दीन, राकेश पांडेय, नौशाद, संजीव जीवा, विश्वास नेपाली आदि शूटर आए थे। मुकेश बाबू शुक्ला को इसकी जानकारी मिली। उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। अगर वह छापा मार देते तो कृष्णानंद राय की जान बच जाती।
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