नई दिल्ली। पूर्व CJI आरसी लाहोटी (Former CJI RC Lahoti) का बुधवार शाम निधन हो गया। मध्य प्रदेश के गुना के रहने वाले जस्टिस लाहोटी (Justice Lahoti) ने दिल्ली (Delhi) के एक अस्पताल (Hospital) में 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। 2004 से साल 2005 के अंत तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे, रिटायरमेंट के बाद से नोएडा में रह रहे थे। कुछ दिन पहले तबीयत बिगड़ने पर उन्हें एडमिट कराया गया था। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में पूरे प्रोटोकॉल के साथ किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जस्टिस लाहोटी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने कहा कि वंचितों को त्वरित न्याय दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही। वह जस्टिस लाहोटी के परिजनों व प्रियजनों के प्रति हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जस्टिस लाहोटी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। चौहान ने अपने शोक संदेश में कहा कि लाहोटी का निधन देश और प्रदेश की अपूरणीय क्षति है। उन्होंने कहा कि वह मध्यप्रदेश के गौरव थे।
पूर्व CJI लाहोटी कम शब्दों में बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे, 17 महीनों तक वह CJI के पद पर रहे। जानिए उनके कुछ बड़े फैसले…
पूर्ववर्ती चीफ जस्टिस का बयान खारिज किया
नियुक्ति के बाद 2004 में ही वे तब ज्यादा चर्चा में आए, जब अपने से पहले के CJI बयान को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका में उभरते भ्रष्टाचार के बारे में चिंता व्यक्त की थी। उस समय जस्टिस लाहोटी ने स्पष्ट रूप से राय दी थी कि न्यायपालिका पूरी तरह से ‘स्वच्छ’ है।
न्यायिक तबादले पर चर्चा में रहे
2005 में न्यायिक तबादले में भी वे काफी चर्चित रहे थे। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बीके रॉय का तबादला हरियाणा कोर्ट से आसाम उच्च न्यायालय कर दिया था। तब बार काउंसिल के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद एस नरीमन ने लेटर लिखकर इस तबादले पर सवाल उठाए थे। अध्यक्ष ने CJI को पत्र लिखकर इस तबादले को ‘दंडात्मक’ बताया था। उन्होंने इसे ‘गंभीर परिणामों से भरा मामला’ करार दिया। बीके रॉय के बारे में यह माना जाता है कि वह एक उच्च न्यायालय के प्रधान बनने के काबिल नहीं हैं, तो फिर उन्हें दूसरे राज्य के उच्च न्यायालय का प्रधान क्यों बनाया गया है।
निजता के तर्क खारिज किए
अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति लाहोटी ने एक बड़ा फैसला दिया, उन्होंने हरियाणा के उस कानून को बरकरार रखा, जिसके तहत दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने निजता और धर्म के अधिकार पर आधारित तर्कों को खारिज कर दिया।
अवैध प्रवासी एक्ट रद्द किया
उनका एक और निर्णय, जो सबसे ज्यादा चर्चित रहा, वो था आसाम में प्रवासियों पर अवैध प्रवासियों (ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण) अधिनियम को रद्द करना। 2005 में असम गण परिषद के सांसद सर्बानंद सोनोवाल ने इस एक्ट के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की। इस याचिका को स्वीकार करते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से 1983 अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम को रद्द कर दिया। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी, न्यायमूर्ति जीपी माथुर और पीके बालासुब्रमण्यन शामिल थे।
उन्होंने इसे संविधान के अधिकार से बाहर होने के रूप में बनाए गए नियम के रूप में घोषित किया। सोनोवाल ने तर्क दिया था कि आईएमडीटी अधिनियम अवैध प्रवासियों की समस्या को संबोधित किए बिना केवल वोट बैंक की राजनीति को प्रोत्साहित कर रहा है। वहीं, असम सरकार ने इस कानून का समर्थन किया था।
तमिलनाडु के कांची शंकराचार्य को दी थी जमानत
पूर्व CJI आरसी लाहोटी उस समय भी चर्चा में आए थे, जब उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम समय में तमिलनाडु के चर्चित कांची शंकराचार्य मामले में आरोपियों को जमानत दे दी। सितंबर 2004 को तमिलनाडु के कांचीपुरम मंदिर के कार्यालय में धारदार हथियार से शंकर रमन की हत्या कर दी गई थी। दोनों शंकराचार्यों के खिलाफ वित्तीय हेरफेर के आरोप लगे थे। पुलिस ने धारा 302, 34 और 120B के तहत केस दर्ज किया था।नवंबर 2004 को जयेंद्र को शंकर हत्याकांड की साजिश रचने के आरोप में दीपावली की रात में आंध्र प्रदेश से गिरफ्तार किया गया। पूरे देश में जमकर हंगामा हुआ था।जस्टिस लाहोटी ने शंकराचार्य को जमानत दी थी।
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