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अजमेर दरगाह मामले में पूर्व नौकरशाहों ने PM मोदी से की हस्तक्षेप की मांग, कहा- हमारी विरासत पर हमला…

December 01, 2024

नई दिल्ली: राजस्थान (Rajasthan) में एक स्थानीय अदालत की ओर से अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वे का आदेश (Order for survey of Ajmer Sharif Dargah) देने के कुछ दिनों बाद पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को पत्र लिखा है. पत्र में पीएम मोदी से उन सभी ‘अवैध और हानिकारक’ गतिविधियों को रोकने लगाने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई है, जो भारत की सभ्यतागत विरासत पर ‘वैचारिक हमला’ हैं और एक समावेशी देश के विचार को विकृत करती हैं.

पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के ग्रुप ने दावा किया कि सिर्फ प्रधानमंत्री ‘सभी अवैध, हानिकारक गतिविधियों’ को रोक सकते हैं. उन्होंने पीएम मोदी को याद दिलाया कि उन्होंने खुद 12वीं शताब्दी के संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वार्षिक उर्स के अवसर पर शांति और सद्भाव के उनके संदेश को सम्मान देते हुए ‘चादर’ भेजी थी.


समूह में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त शिव मुखर्जी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, सेना के पूर्व उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर रवि वीरा गुप्ता शामिल हैं. उन्होंने 29 नवंबर को प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में कहा कि कुछ अज्ञात समूह हिंदू हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं और यह साबित करने के लिए मध्ययुगीन मस्जिदों तथा दरगाहों के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग कर रहे हैं कि इन स्थलों पर पहले मंदिर हुआ करते थे. समूह ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम के स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद अदालतें भी ऐसी मांगों पर अनुचित तत्परता और जल्दबाजी के साथ प्रतिक्रिया देती नजर आती हैं.

समूह ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, एक स्थानीय अदालत का सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 12वीं सदी की दरगाह के सर्वेक्षण का आदेश देना अकल्पनीय लगता है, जो एशिया में न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए सबसे पवित्र सूफी स्थलों में से एक है, जिन्हें हमारी समन्वयवादी और बहुलवादी परंपराओं पर गर्व है.’

उसने कहा, ‘यह विचार ही हास्यास्पद है कि एक भिक्षुक संत, एक फकीर, जो भारतीय उपमहाद्वीप के अद्वितीय सूफी-भक्ति आंदोलन का एक अभिन्न अंग था और करुणा, सहिष्णुता और सद्भाव का प्रतीक था, अपने अधिकार का दावा करने के लिए किसी भी मंदिर को नष्ट कर सकता था.’ हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा यह दावा करने के बाद कि दरगाह मूल रूप से एक शिव मंदिर था, अजमेर की एक सिविल अदालत ने 27 नवंबर को अजमेर दरगाह समिति, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी किया था.

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