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विदेशी मुद्रा भंडार में इस सप्ताह आई 9.6 अरब डॉलर की कमी, दो वर्ष में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट

March 19, 2022


नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, 11 मार्च को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 9.6 अरब डॉलर गिरकर 622.3 अरब डॉलर रह गया। गौरतलब है कि यह बीते दो वर्षों में सबसे तेज साप्ताहिक गिरावट रही। आरबीआई के अनुसार, यह गिरावट विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों के घटने की वजह से आई जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

मार्च 2020 में आई थी बड़ी गिरावट
बीते दो सालों की बात करें तो इससे पहले 20 मार्च 2020 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 11.9 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई थी। इससे पहले चार मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 39.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 631.92 अरब डॉलर हो गया था। बता दें कि बीते साल सितंबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा था। डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा के तेजी और गिरावट के प्रभावों को शामिल किया जाता है।


स्वर्ण भंडार में इस बार भी बढ़ोतरी
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, आलोच्य सप्ताह में देश के स्वर्ण भंडार में 1.522 अरब डॉलर बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह बढ़कर 43.842 अरब डॉलर हो गया है। समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 5.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.928 अरब डॉलर रह गया। रिपोर्ट के मुताबिक, आईएमएफ में रखा देश का मुद्रा भंडार 70 लाख डॉलर घटकर 5.146 अरब डॉलर रह गया है।

उच्च स्तर से 20 अरब डॉलर कम
वर्तमान में भंडार अपने सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉली से लगभग 20 अरब डॉलर कम है। विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की अवधि उस सप्ताह के साथ मेल खाती है जिसमें 7 मार्च को रुपये के 77 के टूटने के बाद केंद्रीय बैंक द्वारा रिकॉर्ड हस्तक्षेप देखा गया था। यूक्रेन में बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर भारतीय मुद्रा दबाव में आई, इसके बाद में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतें 140 डॉलर के स्तर पर पहुंच गईं। आगे चलकर रुपया यूक्रेन में संघर्ष की दिशा पर निर्भर करेगा। अगर रूस से रियायती आपूर्ति या वैश्विक कीमतों में ढील के माध्यम से तेल की आपूर्ति 80-85 डॉलर पर सुनिश्चित की जाती है, तो रुपया स्थिर रहना चाहिए। लेकिन अगर कीमतें 100 डॉलर को पार करती हैं तो यह फिर से दबाव में आ जाएगा।

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