भोपाल। वन संपदा से भरपूर मप्र (MP) के जंगल इनदिनों धधक रहे हैं। महीनेभर के भीतर जंगल में आगजनी की घटनाएं बढ़ गई है। आग के चलते मप्र (MP के कई वनमंडल क्षेत्रों में 35 हजार से अधिक स्थानों पर लग चुकी है। आग से करीब 10 लाख हेक्टेयर से अधिक जंगल खाक हो चुका है। चुका है। ग्रामीणों के मुताबिक गांवों में ऐसी मान्यता है कि मन्नत पूरी होने के बाद जंगल में आग लगाई जाती है। ये घटनाएं शिवरात्री से होली के बीच अधिक देखने में आई है, जबकि वनकर्मियों का कहना है कि महुआ बिनने के लिए पेड़ों के आसपास सफाई करते है। तब जंगल में ग्रामीण आग लगाते है। घटनाएं ज्यादातर शाम के वक्त होती है। ऐसी स्थिति में आग पर काबू पाने में समय लगता है। हालांकि कुछ प्रकरणों में ही वन विभाग आरोपी ढूंढ पाया है। वन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वन्य प्राणियों और वन संपत्ति को भी नुकसान हो रहा है। स्थिति यह हो गई है कि पिछले एक सप्ताह में आगजनी की घटनाएं देश में सबसे ज्यादा मप्र में सामने आई हैं। गरमी के सीजन में मप्र के जंगलों में रोजाना औसत 250 स्थानों पर आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। आग लगने के फायर अलर्ट मैसेज वन विभाग को मिले हैं। इसके बाद भी जंगल महकमा आगजनी की घटनाओं को न तो रोक पा रहा है और न ही आग को समय रहते बुझा पा रहा है। इससे जंगलों में आग बढ़ती जा रही है। आगजनी की सबसे ज्यादा घटनाएं बांधवगढ़ में हुई हैं।
रिपोर्ट में कम दर्शाएं आंकड़े
जानकारों का कहना है कि आगजनी की घटना से पहुंचे नुकसान को लेकर रेंजरों से रिपोर्ट मांगी है, जिसमें 10 लाख से ज्यादा हेक्टेयर जंगल को जलना दर्शाया है। जबकि इसे ज्यादा जंगल जला है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक आंकड़े कम दर्शाए है। वैसे 30 मई तक वनकर्मियों को ज्यादा सर्तक रहने की जरूरत है, क्योंकि तापमान बढऩे से जंगल में आगजनी की घटनाएं बढ़ जाती है। इसके लिए वनकर्मियों ने ग्रामीणों का समूह बनाया है, जिनकी मदद से आग पर काबू पाया जा सकता है।
सैटेलाइट से मिलती हो लोकेशन
आगजनी की घटनाओं पर नजर रखने के लिए फॉरेस्ट सर्वे आफ इंडिया (एफएसआई) ने फायर अलर्ट सिस्टम बना रखा है। सैटेलाइट के जरिए जंगल में आग की घटना के बारे में पता चलता है। आग लगते ही विभाग के अमले को तुरंत वेबसाइट से जानकारी पहुंचती है। मैसेज से संबंधित वनमंडल और रेंज के अधिकारियों को लोकेशन मिलती है। फिर आग बुझाने को लेकर कोशिश शुरू करते है। फायर अलर्ट सिस्टम पर भी आगजनी की घटनाओं का पूरा ब्यौरा है।
इन कारणों से जंगल में लगती है आग
जंगल, पहाड़ और उसकी तलहटी से सटे क्षेत्रों में आग लगने के अलग-अलग कारण हैं। इनमें कई जगहों पर जंगल से महुआ चुनने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा ही आग लगा दी जाती है। कहीं-कहीं लोग जंगली क्षेत्र से गुजरने के दौरान बीड़ी अथवा सिगरेट पीते हुए गुजरते हैं और जलती हालत में जंगल में फेंक देते हैं, जिससे आग लग जाती है। महिलाओं के घर के चूल्हे की राख जंगल में फेंकने से भी आग पकड़ लेती है। अक्सर महिलाएं ईंधन और चारा लेने जंगल जाती हैं और पेड़ों की ठूंठों में आग लगा देती हैं। उन्हें लगता है कि आग लगाने के बाद अच्छी घास उगेगी।
हर छह घंटे में जारी होता है फायर अलर्ट
भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा रोजाना हर छह घंटे में फारेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम के जरिए आग लगने की सूचना दी जाती है। इसके अलावा अगले दो दिन में सेंसटिव क्षेत्र में आग की संभावित चेतावनी भी जारी की जाती है। केंद्र सरकार से लगातार चेतावनी मिलने के बावजूद भी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगलों में आग लगने की बड़ी घटना सामने आई हैं। यहां पर 500 हेक्टेयर का जंगल लगभग जल गया है। इसके अलावा 200 से ज्यादा वन्य प्राणी और विभिन्न प्रजाति के पक्षी और जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा अन्य जंगलों में ाी आग लगी हुई है।
न बजट, न फायर लाइन का काम
लंबे अरसे बाद पहली बार आगजनी की घटनाएं बढ़ रही हैं। फील्ड के अधिकारियों का मानना है कि फायर लाइन कार्य के लिए पर्याप्त बजट नहीं दिया जा रहा है। फायर लाइन कार्य के लिए वन विभाग ने केंद्र सरकार को 40 से 50 करोड़ रुपए की राशि का प्रस्ताव भेजा था। केंद्र सरकार ने प्रदेश के प्रस्ताव पर कटौती करते हुए 20 प्रतिशत राशि 60-40 अनुपात में स्वीकृत की है। यानी सरकार ने 8 करोड़ रुपए में से 4 करोड़ 80 लाख रुपए वन विभाग को आवंटित किए। एक सीनियर अधिकारी के अनुसार राज्य सरकार ने केंद्र द्वारा आवंटित राशि में भी कटौती करते हुए ढाई करोड़ रुपए ही दिए। यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। बजट के अभाव में वन विभाग के मैदानी अफसरों ने फायर लाइन का काम नहीं किया, इसीलिए आग की घटनाएं बढ़ीं। फायर लाइन का काम 15 नवंबर से लेकर 15 फरवरी तक किया जाता है।
भारी नुकसान की आशंका, खतरे में वन्यप्राणी
प्रदेश के सबसे ज्यादा बाघों वाले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के 7 वन क्षेत्र में आग लगी हैं। इस आग से पेड़ पौधों के जलने से पर्यावरण, वन्यप्राणियों को भारी नुकसान की आशंका है। बताया जा रहा है कि आग में जंगल के कीमती पेड़ तो जल ही गए हैं, साथ ही वन्यप्राणियों, पशु-पक्षियों को भी भारी नुकसान हुआ है। वहीं पन्ना जिले के उत्तर वन मण्डल के वन परिक्षेत्र विश्रामगंज, रानीपुर, कौआ सेहा, अजयगढ़ के धवारी पहाड़, कुंवरपुर एवं धरमपुर के जंगलों, दमोह जिले के बटियागढ़ वन परिक्षेत्र के बिलोना के जंगल, इंदौर, चोरल, महू और मानपुर रेंज में सात मार्च से दस अप्रैल के बीच आगजनी की घटनाएं अधिक हुई है। इंदौर में देवगुराडिया, उज्जैनी, रणभंवर, तिल्लौर, तिल्लोरखुर्द, असरावद, तिंछा में वनक्षेत्र जला है। जबकि चोरल में सेंटल-मेंटल, आशापुरा, उमठ, रसकुडिया, महू में बडिय़ा, घौड़ाखुर्द, बड़ी जाम-छोटी जाम, बडग़ौदा और मानपुर में भी आठ स्थानों पर आग लगी है। सूत्रों के मुताबिक आग की घटनाएं बढऩे के पीछे नियमित रूप से जंगल में निगरानी नहीं करना सामने आई है। कांग्रेस का आरोप है कि प्रदेश के 6 फॉरेस्ट रेंज का लगभग 102 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा भी धू-धू कर जल रहा है। शिवपुरी जिले में माधव नेशनल पार्क कुछ क्षेत्रों में लगातार आग से हादसे हो रहे हैं।
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