अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी का सुझाव
भोपाल। जानलेवा बीमारी सिकल सेल तथा थैलेसीमिया (sickle cell and thalassemia) एवं अप्लास्टिक एनीमिया की संपूर्ण रोकथाम के लिए सभी चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े लोगों को मिलजुल कर विशेष रुप से आदिवासी बच्चों और उनके परिजनों के बीच मिशन चलाने की जरूरत है। जिसके तहत अधिकतम व्यक्तियों की जांच और बेहतर स्वास्थ्य मुहैया कराई जायें। इसके साथ ही हमें नवजात शिशुओं (New Born Baby) की पूरी स्क्रीनिंग करते हुए उसकी जेनेटिक कुंडली भी बनानी होगी ताकि संभावित मरीजों पर आरंभिक दौर में लगाम लगाई जा सके। सिकलसेल के साथ ही हमें थैलेसीमिया और एप्लास्टिक एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों पर भी आरंभिक स्तर से ही प्रभावी ढंग से नियंत्रण करने की जरूरत है। हमें ऐसे मल्टीपरपज हेल्थ वर्कर्स की जरूरत है जो लोगों को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ उन्हें इस बीमारी के खिलाफ लड़ने के लिए मोटिवेट भी कर सकें। इसलिये हम मिलजुल कर एक साझा प्रोजेक्ट बनाकर सरकार से अनुमति लें, ताकि उसके लिए पर्याप्त फंडिंग उपलब्ध कराई जा सके।
ये बात भोपाल स्थित हिंदी विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य जाने-माने होम्योपैथिक डॉक्टर एके द्विवेदी (Homeopathic Doctor AK Dwivedi) ने कही। उल्लेखनीय है कि डॉ ए के द्विवेदी पिछले २३ वर्षों से गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज इंदौर में फिजियोलॉजी विभाग के प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष भी हैं आप छात्र छात्राओं को रक्त के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ाते हैं।आपने कहा कि सिकल सेल और थैलेसीमिया तथा अप्लास्टिक एनीमिया के उपचार के लिये नियमित रूप से आदिवासी क्षेत्रों में लोगों की खून की जांच और मरीजों का कंपलीट ब्लड काउंट किया जाना चाहिए। ।
डॉ. द्विवेदी के मुताबिक मध्य प्रदेश के मुख्य रूप से पांच जिलों अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, धार और खरगोन में सिकल सेल की स्थिति बेहद गंभीर है। इन क्षेत्रों में सिकल सेल के मरीजों की सैंपलिंग, काउंसलिंग से लेकर, वास्तविक जरूरतमंदों की स्क्रीनिंग तक की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। सिकल सेल बीमारी की प्रभावी रोकथाम के लिए हर मरीज का मेडिकल चेकअप करने के साथ-साथ उनका आरोग्य कार्ड भी बनाया जाए ताकि इलाज में आसानी हो। उन्हें मुफ्त ओपीडी और आईपीडी (निशुल्क पलंग आदि) सुविधा भी मुहैया कराई जा सके। जीन सीक्वेंसिंग मशीन द्वारा जरूरत पड़ने पर मरीज की उच्च स्तरीय जांच भी की जानी चाहिए और क्रिटिकल मरीजों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
अनुवांशिक रक्त विकार है सिकल सेल या सिकल सेल रक्ताल्पता
डॉ. द्विवेदी ने जानकारी दी कि सिकल सेल रोग या सिकल सेल रक्ताल्पता एक अनुवांशिक रक्त विकार है जो उन लाल रक्त कोशिकाओं के द्वारा होता है जिनका आकार असामान्य रूप से कठोर और हंसिए के समान होता है। यह बीमारी कोशिकाओं के लचीलेपन को घटाती है जिससे शरीर में कई तरह की जटिलताएं और जोखिम उभरने लगते हैं। सिकल सेल एक वंशानुगत बीमारी है जो बच्चे को माता-पिता से मिलती है। दरअसल खून में मौजूद हीमोग्लोबिन शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है मगर सिकल सेल, हीमोग्लोबिन को बहुत बुरी तरह प्रभावित करता है।
लाल रक्त कोशिकाओं का रूप बिगाड़ देते हैं “हीमोग्लोबिन एस“
इस बीमारी में हीमोग्लोबिन के असामान्य अणु, (जिन्हें हीमोग्लोबिन एस कहते हैं) लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) का रूप बिगाड़ देते हैं। जिससे वह सिकल या हँसिए की तरह अर्धचंद्राकार हो जाती हैं। सामान्यतः स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का शेप गोलाकार होता है और वो छोटी-छोटी रक्त धमनियों से भी आसानी से गुजर जाती हैं। जिससे शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन आसानी से पहुंच जाती है। मगर सिकल सेल बीमारी के दौरान जब लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्धचंद्राकार हो जाता
रक्त संचार में रुकावट पैदा करती है सिकलसेल
सामान्यतः स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं का शेप गोलाकार होता है और वो छोटी-छोटी रक्त धमनियों से भी आसानी से गुजर जाती हैं। जिससे शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन आसानी से पहुंच जाती है। मगर सिकल सेल बीमारी के दौरान जब लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्धचंद्राकार हो जाता है तो वे छोटी-छोटी रक्त धमनियों से होकर नहीं गुजर पाती हैं और गुजरने की प्रक्रिया के दौरान टूट जाती हैं। कई बार तो छोटी रक्त धमनियों से गुजरने के दौरान यह सिकल सेल वहीं फंस जाती है और रक्त संचार में रुकावट बन जाती है।
बढ़ जाता है इंफेक्शन, स्ट्रोक या एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम का खतरा
ऐसे में मरीज को उस स्थान पर तेज दर्द महसूस होता है और इंफेक्शन, स्ट्रोक या एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम होने का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा सिकल सेल बीमारी से पीड़ित मरीज को हड्डियों और जोड़ों के क्षतिग्रस्त होने, किडनी डैमेज होने और दृष्टि संबंधी समस्याएं होने जैसी कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है। सामान्यतः लाल रक्त कोशिकाएं जहां 90 से 120 दिन तक जीवित रहती हैं वही सिकलसेल सिर्फ 10 से 20 दिन तक जीवित रह पाती हैं ।जिस कारण शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होने लगती है और व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है। जिससे उसकी आयु काफी कम होने की आशंका बढ़ जाती है।
नजरअंदाज न करें एनीमिया को
डॉ. द्विवेदी ने कहा कि अगर आपको काम करने के दौरान जल्दी-जल्दी थकान होती है, बार-बार कोई बीमारी हो जाती है, शरीर-जोड़ों में दर्द होने लगता है और ये सब अचानक होने लगता है तो यह एनीमिया के लक्षण हो सकते हैं। लंबे समय से ब्लीलिंड पाइल्स (मल के साथ खून जाना) की शिकायत है तो सीबीसी जांच करायें। वहीं छोटे बच्चों को लगातार नकसीर की समस्या रहती है तो इसे नजरअंदाज न करें क्योंकि लगातार नकसीर होने से खून की कमी हो सकती है एनीमिया हो सकता है। रोजाना ब्रश करने के दौरान खून आना भी एनीमिया के लक्षण हो सकते हैं। वहीं ऐसी महिलाएं जिन्हें माहवारी के दौरान लंबे समय तक ब्लीडिंग होती है वे भी एनीमिया की शिकार हो जाती हैं। ऐसे में ऐसी महिलाओं को इसे छुपाना नहीं चाहिए और सीबीसी जांच करना चाहिए। ।
जानलेवा साबित हो सकती है रक्त की कमी
रक्त की कमी (एनीमिया) के चलते मरीजों को सिकल सेल, थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया समेत तरह-तरह की गंभीर बीमारियों के साथ-साथ आईटीपी, पैनसाइटोपेनिया और ब्लीडिंग डिस्सोर्डर्स आदि अनेक प्रकार की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। रक्त की कमी कई बार मरीज के लिए जानलेवा साबित होती है। इंदौर में इस विपरीत स्थिति से बचाव के लिए लोगों को जागरूक करने का बीड़ा हमने उठाया है। इसके लिए हमने एनीमिया रथ के माध्यम से न केवल लोगों को खून की कमी से होने वाली तरह-तरह की छोटी-बड़ी समस्याओं के बारे में जागरूक किया बल्कि इससे बचाव के अत्यंत सरल उपाय भी सुझाये।
जरूरतमंद मरीजों का किया निःशुल्क उपचार
डॉ. द्विवेदी ने बताया कि एनीमिया रथ संचालन के दौरान रक्त की कमी की वजह से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों का सरल औषधीय उपचार भी किया। चुनिंदा जरूरतमंद मरीजों को निशुल्क उपचार की सुविधा भी मुहैया कराई गई। उल्लेखनीय है कि ढाई दशकों से एनीमिया के मरीजों का सफलतापूर्वक होम्योपैथी इलाज कर रहे डॉ. द्विवेदी पेशेंट्स अवेयरनेस के लिए पिछले कई सालों से एनीमिया रथ सप्ताह का आयोजन कर रहे हैं। जिससे बड़ी संख्या में इंदौर और आसपास के मरीज लाभान्वित हो रहे हैं।
“मील का पत्थर” है 2047 तक एनीमिया–मुक्त करने की घोषणा
माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एवं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हालिया इंदौर प्रवास के दौरान डॉ. द्विवेदी ने उनसे भेंट कर नये बजट में एनीमिया के इलाज के लिए प्रावधान करने का आग्रह किया था। जिसे सहृदयता से स्वीकार कर लिया गया है। हालिया केंद्रीय बजट में 2047 तक देश को एनीमिया-मुक्त करने की घोषणा को डॉ. द्विवेदी इस दिशा में “मील का पत्थर” मानते हैं।
इन बिंदुओं पर भी हुई चर्चा
– मरीजों का समुचित इलाज करने के साथ-साथ उनके बीच करीब 10% ऐसे मरीजों की पहचान भी करनी होगी जिनकी स्थिति में सुधार होने के बावजूद उन्हें अनावश्यक रूप से खून चढ़ाया जा रहा है।
– बीमारी का शुरुआती स्तर पर ही पता लगाने के लिए हर साल नियमित अंतराल पर चेकअप कैंप भी आयोजित करने होंगे।
– इस मिशन पर आधारित शोध पत्र, प्रधानमंत्री के सिकलसेल निर्मूलन अभियान में सहयोग के लिए भेजे जाएंगे। जिसके आधार पर पूरे देश में सिकल सेल को लेकर प्रोटोकॉल तय किया जा सकेगा।
– अर्ली डायग्नोसिस के जरिए विद्यार्थियों एवं उनके परिजनों का संपूर्ण इलाज कर अभी पीढ़ियों को सिकल सेल से मुक्त कराने की हर मुमकिन कोशिश की जाएगी।
– गुजरात में सॉल्युबिलिटी टेस्ट द्वारा की गई जांचें पूरी तरह सफल नहीं रही थीं। इसलिये जांच में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सूक्ष्म से सूक्ष्म बिंदु भी चिन्हित किया जाएगा और सिकल सेल से मरीज को निजात दिलाने के इलाज में भी अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल की जाएगी।
उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि थे प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री मोहन यादव, विशिष्ट अतिथि थी भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर तथा श्री अनिल कोठारी विशेष अतिथि दे श्री अशोक कडेल संचालक मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर श्री खेम सिंह डेहरिया जी ने की. सभी ने कार्यक्रम को संबोधित भी किया आभार कुलसचिव श्री यशवंत सिंह पटेल ने व्यक्त किया. विशेष रूप से अखिलेश पाण्डे कुलपति विक्रम यूनिवर्सिटी उज्जैन तथा श्री मुकेश मिश्रा कार्य परिषद सदस्य उपस्थित थे
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