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    पहली बार ऑनलाइन होगा मिसिल बंदोबस्त

  • August 29, 2020

    • रुकेगी हेराफेरी और माफिया पर लगाम

    भोपाल। सरकारी जमीन और निजी जमीनों को हेराफेरी कर हड़पने वाले भू-माफिया पर अब लगाम कसने की तैयारी है। भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग पहली बार मिसिल बंदोबस्त को ऑनलाइन करने जा रहा है। मिसिल बंदोबस्त के आधार पर ही बेस रिकॉर्ड माना जाता है, जिसमें छेड़छाड़ और कांटछांट के कई मामले भी सामने आ चुके हैं। ऑनलाइन होने के बाद लैंड रिकॉर्ड के सॉफ्टवेयर से पूरा काम होगा और आमजन को सबसे बड़ी राहत होगी। जमीन को लेने से पहले मिसिल नक्शे से अधिकृत कॉपी लेकर यह देख सकेगा कि जमीन का पहले स्टेटस क्या था और कोई विवाद तो नहीं है। इससे भू-माफिया की मुश्किल बढ़ेंगी, क्योंकि अभी तक मिसिल बंदोबस्त का रिकॉर्ड आसानी से नहीं मिलता था और इसी का यह लोग फायदा उठाते थे। रिकॉर्ड की फीडिंग का काम चल रहा है जो जल्द पूरा कर लिया जाएगा। ज्ञात रहे कि आजादी से पहले अंग्रेजों के समय में जमीनों का बंदोबस्त किया जाता था और हर 40 साल में यह बंदोबस्त किया जाता था। 1940 के बाद से ही मिसिल बंदोबस्त पूरी तरह नहीं किया गया और तत्कालीन दिग्विजय सरकार में यह प्रयास किया गया था। बड़े-बड़े गांवों का मिसिल बंदोबस्त हुआ भी था, लेकिन विवाद के मामले सामने आने पर पूरी प्रक्रिया रोक दी गई और बंदोबस्त आगे नहीं हो सका। वर्तमान स्थिति में 1940 के बेस रिकॉर्ड के आधार पर ही काम किया जाता है।

    क्या होता है मिसिल बंदोबस्त
    पहले अंग्रेजों के समय में जमीनों का बंदोबस्त किया जाता था और हर 40 साल में यह प्रक्रिया होती थी। कोई जमीन का बड़ा टुकड़ा और उसमें से नए टुकड़े बनते गए, बिक्री होती गई। इसके बाद नया नक्शा तैयार करने के लिए बंदोबस्त किया जाता था। नए सिरे से नक्शा व खसरा की नंबरिंग करना ही मिसिल बंदोबस्त है।

    रिकॉर्ड रूम का डाटा हो रहा ऑनलाइन
    ग्वालियर में मोतीमहल स्थित रिकॉर्ड रूम में बंदोबस्त का मूल रिकॉर्ड है, जिसमें कई बार छेड़छाड़ की घटनाएं और एफआईआर तक हो चुकी हैं। रिकॉर्ड गायब होने की घटना भी सामने आई है। अब ऑनलाइन सिस्टम में इसी डेटा को स्कैन कर ऑनलाइन करने की प्रक्रिया की जा रही है। वैसे हकीकत में कुछ स्थानों के सर्वे नंबर ही आज की डेट में नहीं है। प्रदेश में जमीनों के हेरफेर का क्या स्तर है यह पिछले साल कमलनाथ सरकार में हुई एंटी माफिया मुहिम में सामने आ गया। यहां 1700 करोड़ से ज्यादा की सरकारी जमीन को भू-माफिया से मुक्त कराया गया है। सालों से भू-माफिया सरकारी जमीनों के बल पर कमाई करने में जुटे थे, लेकिन अब भी ऐसे तमाम लोग सरकारी जमीनों पर कब्जा करके बैठे हैं। दूसरे की जमीन और सरकारी जमीन को हड़पने के पीछे यही सबसे बड़ा कारण था कि पुराने रिकॉर्ड में हेरफेर करा लेना और वरिष्ठ स्तर पर हवा ही नहीं लगती थी।

    ऑनलाइन हो रहा डेटा
    मिसिल बंदोबस्त को ऑनलाइन किया जा रहा है। रिकॉर्ड को स्कैन कर डेटा फीडिंग हो रही है। इससे पुराना रिकॉर्ड निकालने में आसानी होगी और लोगों को परेशानी का भी सामना नहीं करना होगा।
    शिवानी पांडेय, अधीक्षक, भू-अभिलेख,ग्वालियर

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