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    आखिर कब तक गैस चैंबर बनता रहेगा दिल्ली-एनसीआर?

  • November 08, 2023

    – योगेश कुमार गोयल

    दिल्ली-एनसीआर की हवा में दीवाली से कुछ दिन पहले ही इस कदर जहर घुल चुका है और हवा इतनी दमघोंटू हो चुकी है कि लोगों को न केवल सांस लेना मुश्किल हो गया है बल्कि अन्य खतरनाक बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार इस साल अक्तूबर में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 2020 के बाद सबसे खराब स्तर पर था लेकिन नवम्बर की शुरूआत से ही प्रदूषण के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं और दिल्ली में एक प्रकार से सांसों का आपातकाल सा दिखाई दे रहा है, जहां चारों स्मॉग की घनी चादर छाई है। यह चादर कितनी खतरनाक है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सूर्य की तेज किरणें भी इस चादर को नहीं भेद पा रही हैं। करीब एक सप्ताह से देश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता सूचकांक में तेजी से गिरावट आई है। इस तरह की वायु गुणवत्ता को सेहत के लिए कई प्रकार से बेहद खतरनाक माना जाता है। दिल्ली के कई हिस्सों में तो वायु गुणवत्ता सूचकांक 800 के आंकड़े को भी पार कर चुका है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा है। विशेषज्ञों के मुताबिक अभी अगले 15-20 दिनों तक यहां ऐसी ही स्थिति बनी रह सकती है।


    वैसे तो दिल्ली के साथ-साथ देश के कई अन्य राज्यों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है और देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में भी वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में दर्ज की जा रही है लेकिन दिल्ली पिछले कई वर्षों से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बनी हुई है, जिसका सीधा सा अर्थ है कि करीब 3.3 करोड़ लोगों में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का गंभीर जोखिम बना हुआ है। लोगों की सांसों पर वायु प्रदूषण का खतरा इतना खतरनाक होता जा रहा है कि वैज्ञानिक अब दिल्ली में साल-दर-साल बढ़ते प्रदूषण के कारण बढ़ रहे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर दुष्प्रभावों को लेकर चिंता जताने लगे हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता बहुत खराब रहेगी, जिसका कारण तापमान में कमी और पराली जलाने से होने वाला उत्सर्जन है। केंद्र सरकार के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (डीएसएस) ने पराली जलाए जाने की गतिविधियों में वृद्धि की आशंका जताई है, जिससे अगले कुछ दिनों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने की आशंका है।

    चिंता का विषय यह है कि हर साल दिल्ली सहित, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में इस सीजन में खेतों में बड़े स्तर पर पराली जलाई जाती है, जिसके चलते प्रदूषण का यही आलम देखने को मिलता है। यह बेहद चिंता की बात है कि किसानों से खेतों में पराली नहीं जलाए जाने के निरंतर अनुरोधों के बाद भी इस बार दशहरे के मौके पर तो जैसे किसानों में पराली फूंकने की होड़ सी लगी दिखी, वहीं करवा चौथ के मौके पर चांद के दीदार होते ही दिल्ली तथा पड़ोसी राज्यों में लोगों जमकर आतिशबाजी की, जिसने प्रदूषण की स्थिति को और विकराल बनाने में आग में घी का काम किया।

    विकास के नाम पर अनियोजित तथा अनियंत्रित निर्माण कार्यों के चलते बिगड़ते हालात, खेतों में जलती पराली, खतरों को जानते-समझते हुए भी की जाने वाली भारी आतिशबाजी तथा वाहनों और औद्योगिक इकाइयों के कारण अत्यधिक प्रदूषित हो रहे वातावरण के भयावह खतरों को हम इसी प्रकार साल-दर-साल झेलने को विवश हैं। हालांकि पर्यावरण तथा प्रदूषण नियंत्रण के मामले में देश में पहले से ही कई कानून लागू हैं लेकिन उनकी पालना कराने के मामले में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सदैव उदासीनता का माहौल देखा जाता रहा है। देश की राजधानी दिल्ली तो वक्त-बेवक्त ‘स्मॉग’ से लोगों का हाल बेहाल करती रही है। न केवल दिल्ली-एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण का खतरा निरन्तर मंडरा रहा है। वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण के कारण अब हर साल देशभर में लाखों लोग जान गंवाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव निर्मित वायु प्रदूषण के ही कारण प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।

    अब देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। देश के अधिकांश शहरों की हवा में जहर घुल चुका है। पर्यावरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि विश्वभर में इस समय छह अरब से भी ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों को बल्कि स्वास्थ्य को तमाम अन्य तरीकों से भी प्रभावित करता है।

    हवा की खराब गुणवत्ता के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और बैक्टीरियल संक्रमण के खतरे बढ़ सकते हैं। वायु की खराब गुणवत्ता व्यक्ति में ऑटिज्म, तनाव और स्ट्रोक जैसे तमाम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर सहित अन्य बीमारियों को भी बढ़ावा देती हैं। वायु प्रदूषण के कारण हवा में कई प्रकार की हानिकारक गैसें सम्मिलित हो जाती हैं, जिनसे सिरदर्द, खांसी, जुकाम और एलर्जी जैसी आम समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब छह लाख बच्चे भी शामिल होते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वातावरण में बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी परेशानी पैदा कर सकता है, जिससे रेसपिरेटरी, न्यूरोबिहेवियरल, कार्डियोवैस्कुलर तथा इम्यून सिस्टम से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।

    मौसम के बदलाव के साथ वायु प्रदूषण का प्रभाव कई गुना ज्यादा बढ़ जाने का सबसे बड़ा कारण यही होता है कि ठंड के मौसम में प्रदूषण के भारी कण ऊपर नहीं उठ पाते और वायुमंडल में ही मौजूद रहते हैं, जिस कारण स्मॉग जैसे हालात बनते हैं। वातावरण में कण प्रदूषण (पीएम) की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे बढ़ जाते हैं। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होता है। हवा में मौजूद कण सूक्ष्म) होते हैं, जिन्हें नग्न आंखों से नहीं बल्कि केवल इलैक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके ही देखा जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल होते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं।

    पीएम 2.5, 60 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए जबकि हवा में पीएम 10 का स्तर 100 से कम रहना चाहिए। पीएम 2.5 और पीएम 10 धूल, निर्माण की जगह पर धूल, कूड़ा व पुआल जलाने से ज्यादा बढ़ता है। जब वायु में इन कणों का स्तर बढ़ जाता है तो सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन जैसी समस्याएं होने लगती हैं। सांस लेते समय पीएम 2.5 और पीएम 10 के कण फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे खांसी होने के साथ अस्थमा भी हो सकता है और अस्थमा रोगियों को इसके कारण दौरे भी पड़ सकते हैं। पीएम के कारण उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक सहित कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कण प्रदूषण इतना खतरनाक होता है कि यह फेफडों में जाने पर कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है और कुछ मामलों में यह जानलेवा भी हो सकता है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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