उज्जैन। साधुओं द्वारा प्रदर्शन भी किया जा रहा है और मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की गई और उन्होंने आश्वासन भी दिए। सवाल यह है कि क्या इसके बाद शिप्रा शुद्ध हो पाएगी और कल-कल बहेगी। शंका इसलिए है क्योंकि पहले भी इस तरह की नौटंकी की गई और 100-200 करोड़ खर्च करने के बाद भी शिप्रा प्रदूषित ही रही है। शिप्रा नदी में इंदौर की दूषित कान्ह नदी और शहर के बड़े नाले के कारण प्रदूषण की समस्या सालों पुरानी है। संत हमेशा इन समस्याओं के निदान की मांग करते रहे हैं। पिछले सिंहस्थ में 100 करोड़ खर्च कर कान्ह डायवर्शन लाईन डाली गई लेकिन यह योजना भी बरसात में फेल साबित हुई है। लाईन डालने के बाद भी ओवरफ्लो होते ही कान्ह नदी का दूषित पानी शिप्रा में मिलने लगता है। दूसरी ओर 13 बड़े नालों का पानी नदी में मिलने से रोकने के लिए पिछले चार साल से 402 करोड़ की सीवरेज लाईन प्रोजेक्ट का काम चल रहा है। यह काम अभी आधा भी नहीं हुआ है।
दूसरी ओर साधुओं ने फिर से शिप्रा शुद्धिकरण को लेकर मोर्चा खोल रखा है। एक माह पहले शिप्रा तट पर संतों ने धरना दिया और अनशन किया था। इसके बाद मुख्यमंत्री से उनकी मुलाकात दो दिन पहले हो पाई। संतों ने मुख्यमंत्री को मांग पत्र सौंपते हुए मांग की थी कि कान्ह नदी पर ओपन नहर बनाकर इसे शिप्रा से अलग किया जाए। आवास पर मिलने आए संतों की इस मांग को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मान लिया है। परंतु सवाल यह उठता है कि पूर्व में भी शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर सौ से 200 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च हो चुकी है, इसके बावजूद ओपन नहर के आश्वासन के बाद क्या शिप्रा शुद्ध हो पाएगी और कल-कल बहने लगेगी, या फिर यह भी नौटंकी ही बन कर रह जाएगी।
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