नई दिल्ली (New Delhi) । भारत (India) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) शुरू हो चुके हैं. हर पार्टी ने अपनी पूरी ताकत जीतने में झोंक दी है. कोई अपने कार्यों के आधार पर वोट (vote) मांग चुका है तो किसी ने अपनी पार्टी के नाम के आधार पर लोगों से समर्थन मांगा. चुनाव में वोटर्स की काफी बड़ी जिम्मेदारी होती है. उनके द्वारा चुने गए प्रत्याशी अगले पांच साल तक उनके डेवलपमेंट के लिए काम करते हैं. ऐसे में सही प्रत्याशी का चुना जाना जरुरी होता है. भारत में वोट डालने के लिए मतदाता के पास वोटर आईडी कार्ड होना अनिवार्य है.
भारत में 1993 से वोटर आईडी कार्ड को अनिवार्य कर दिया गया था. लोगों की तस्वीर के साथ बने कार्ड को वोट डालते समय पेश करना होता है. इसी के आधार पर मतदाता को वोट देने की अनुमति होती है. लेकिन आजाद भारत में चुनाव तो काफी पहले से होते आ रहे थे. ऐसे में ये सवाल उठता है कि 1993 से पहले लोग कैसे वोट देते थे?
वोटर लिस्ट की थी अहमियत
सोशल मीडिया साइट कोरा पर कई लोगों ने इस सवाल का जवाब जानना चाहा. इसपर कई ने लोगों की क्यूरोसिटी को शांत करते हुए इसका सही जवाब दिया. कोरा के मुताबिक़, 1993 से पहले चुनाव के समय पॉलिटिकल पार्टीज के एजेंट्स मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाते थे. इसके बाद चुनाव के दिन लोग जब सेंटर पर जाते थे तब उनका नाम पुकारा जाता था. अगर वोटर लिस्ट में नाम मौजूद होता था, तभी शख्स को वोट डालने की परमिशन थी.
जमकर होती थी धांधली
इस प्रक्रिया के दौरान सेंटर पर मौजूद पार्टी के किसी एजेंट को अगर लगता था कि जिसका नाम लिया जा रहा है, सामने वो शख्स नहीं है, तो वो आपत्ति जता सकता था. इसके बाद उसे वोट नहीं डालने दिया जाता था. इस सिस्टम में जमकर धांधली होती थी. कई लोग मिलीभगत से किसी और के नाम के आधार पर वोट डाल देते थे. इस वजह से उस समय के चीफ इलेक्शन कमीशन मिस्टर टीएन सेशन ने वोटर कार्ड की शुरुआत की और इसे वोट डालने के लिए जरुरी कर दिया.
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