इस्लामाबाद (islamabad) । अफगानिस्तान (Afghanistan) में शासन कर रहे तालिबान (Taliban) ने पहली बार पाकिस्तान (Pakistan) से खतरा होने की सूचना दी है। तालिबान 2002-2021 तक पाकिस्तान को सुरक्षित ठिकाना मानता था। स्वतंत्र पत्रकार बिलाल सरवरी ने एक आंतरिक ज्ञापन का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है।
अफगानिस्तान के लोगर प्रांत में आईएसकेपी के जमावड़े की चेतावनी
सरवरी ने ट्विटर पर कहा कि तालिबान के एक लीक हुए आंतरिक ज्ञापन में पाकिस्तान के कबायली इलाके के अंदर एक आईएसकेपी (इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत) प्रशिक्षण शिविर की रिपोर्ट दी गई है। और पाकिस्तान से लोगर (लोगर अफगानिस्तान के पूर्वी भाग में स्थित 34 प्रांतों में से एक है) प्रांत में आईएसकेपी के जमावड़े की चेतावनी दी गई है। उन्होंने कहा कि यह कहानी में एक दिलचस्प मोड़ है, जिसमें पहली बार तालिबान ने पाकिस्तान से खतरा होने की सूचना दी है, जो 2002-2021 तक उनका सुरक्षित ठिकाना था।
तालिबान और पाकिस्तान के संबंध अब एक कठिन रास्ते पर
तालिबान और पाकिस्तान के संबंध अब एक कठिन रास्ते पर हैं। एक तरफ तालिबान को पाकिस्तान से खतरा महसूस हो रहा है तो दूसरी तरफ आईएसकेपी समूह का समर्थन करने के लिए इस्लामाबाद को गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ा। दक्षिण एशिया डेमोक्रेटिक फोरम (SADF) ने बताया है कि पाकिस्तान, जो अपनी स्थापना के बाद से लगातार देश प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद में शामिल रहा है और यहां तक कि अतीत में अफगानिस्तान के तालिबान की प्रशंसा करता रहा है, लेकिन अब इसके नतीजों का सामना कर रहा है।
पाक तालिबान को अफगान तालिबान का समर्थन
एसएडीए की हालिया रिपोर्ट के अनुसार हालांकि, अब पाकिस्तान अफगान तालिबान और पाकिस्तानी तालिबान के दो तरफा हमलों का सामना कर रहा है। पाकिस्तानी तालिबान को अफगानिस्तान के अपने वैचारिक भाई का समर्थन प्राप्त है। अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगान तालिबान की प्रशंसा करते हुए कहा था कि उसने ‘गुलामी की बेड़ियों’ को तोड़ दिया।
एसएडीएफ ने कहा कि यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिसंबर 2022 पाकिस्तान के लिए सबसे खराब महीना साबित हुआ। ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक एसएडीएफ दक्षिण एशिया और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ इसके संबंधों के लिए समर्पित है।
पाकिस्तान में आतंकी हमलों में 50 प्रतिशत की वृद्धि
काबुल में तालिबान के अधिग्रहण के बाद से पाकिस्तान ने आतंकी हमलों में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी है और इनमें से अधिकांश अफगान तालिबान के समर्थन से पाकिस्तानी तालिबान (टीटीपी) द्वारा किए गए हैं। यहां तक कि टीटीपी और पाकिस्तान शासन के बीच शांति वार्ता भी रद्द कर दी गई थी। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले दो दशकों में पाकिस्तान के पास विदेश नीति उपकरण के रूप में जिहादवाद का उपयोग बंद करने और एक प्रभाव के रूप में चरम इस्लामी गुटों के इस्तेमाल को खत्म करने का अवसर था। इससे भारत के साथ उसके संबंध सुधर सकते थे।
एसएडीएफ ने कहा कि पाकिस्तान अहितकर नागरिक-सैन्य संबंधों, जातीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और सतत आर्थिक विकास पर सुधार कर सकता था। लेकिन इसके बजाय पाक नेताओं ने अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों दोनों के खिलाफ तालिबान के लिए अपना समर्थन बनाए रखने का फैसला किया। एसएडीएफ के अनुसंधान निदेशक सिगफ्रीड ओ वोल्फ के अनुसार, आज पाकिस्तान जिस आतंकवाद का सामना कर रहा है, वह इमरान खान सरकार का परिणाम नहीं है, बल्कि 1947 के बाद से सेना और नेताओं के नेतृत्व द्वारा कई खोए हुए अवसरों और नीतिगत भूलों का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि अफगान तालिबान के प्रति पाकिस्तान का दृष्टिकोण विफल रहा क्योंकि अफगानिस्तान में इस्लामाबाद के उद्देश्यों को पूरा नहीं किया गया, इसके बिल्कुल विपरीत अब हम खुद पाकिस्तान की अस्थिरता देख रहे हैं। इसके अलावा पाकिस्तान के पास कोई व्यापक अफगानिस्तान नीति नहीं थी जिसकी वजह से यह मानकर चल रहा था कि जिस तालिबान की वो मदद कर रहे हैं, वो उनका हमेशा आभारी रहेगा।
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