इंदौर। इंदौर में बाल भिक्षुको को पकडऩे के लिए चलाई जा रही मु्हिम में बच्चे तो हाथ नहीं लग रहे, लेकिन महिला- पुरुष व अन्य उम्र के भिक्षुक जिला प्रशासन के गले की हड्डी बनकर रह गए हंै। पिछले एक सप्ताह से चल रहे अभियान में एक दर्जन से ज्यादा भिक्षुकों को पकड़ा गया है, लेकिन रखने की जगह नहीं होने का हवाला देकर उन्हें छोड़ा जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि इंदौर भिक्षुक मुक्त कैसे होगा। दो विभागों की गुत्थमगुत्थी के चलते भिक्षुको के हौसले बुलंद हो रहे हैं।
भंवकुआं क्षेत्र में महिला एवं बालविकास विभाग की टीम द्वारा दो महिला व दो पुरुष भिक्षुकों को भीख मांगते हुए पकड़ा गया। कार्रवाई के नाम पर जब टीम इन्हें लेकर परदेशीपुरा स्थित भिक्षुक केंद्र पहुंची तो संस्था ने इन्हें रखने से मना कर दिया। 50 शिक्षुकों को रखने की लिमिट बताकर एनजीओ ने अपना पल्ला झाड़ लिया। मजबूरन टीम को भिक्षुकों को पकडऩे के बाद छोडऩा पड़ा। अब तक विभाग ने एक दर्जन से ज्यादा भिक्षुकों को समझाइश देकर छोड़ा है। हो रही अव्यवस्थाओं को लेकर विभाग का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए पायलट प्रोजेक्ट के तहत अब तक नगर निगम को तीन करोड़ की राशि का भुगतान किया जा चुका है, वहीं इस्माइल प्रोजेक्ट के तहत 17 लाख रुपए मुहैया कराए गए हैं। उसके बावजूद भी विभाग के पास भिक्षुकों को रखने की जगह नहीं है। सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग के अधिकारी सुचिता तिर्की बेग के अनुसार आज वे कलेक्टर के समक्ष भिक्षुक केंद्र को विभाग को वापस लौटाए जाने के लिए फाइल लगा रही हैं।
1407 मौलवियों और पंडितों को समझाइश
विभाग ने अब तक चलाई गए अभियान के तहत 1407 मौलवियों और पंडितों को जहां समझाइश दी है, वहीं 225 भिक्षुकों को समझा-बुझाकर भिक्षावृत्ति से दूर कराया है। 675 बाल भिक्षुकों के माता-पिता को समझाइश दी गई है, वहीं 225 बच्चों को भी भिक्षावृत्ति के खिलाफ जागरूक किया है, लेकिन विभाग के पास ही जगह का संकट गहरा गया है। ज्ञात हो कि 1978 से सामाजिक न्याय विभाग भिक्षुकों को व्यवसाय से जोडऩे के लिए संस्था चलाता आ रहा है। परदेशीपुरा स्थित परिसर में अधिनियम के तहत भिक्षुक केंद्र की स्थापना की गई थी, तब से ही यहां भिक्षुक रखे जा रहे हैं।
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