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पहले संभल मस्जिद, अब अजमेर दरगाह: अचानक क्यों विपक्ष के निशाने पर आए पूर्व CJI चंद्रचूड़

November 30, 2024

नई दिल्ली: संभल की जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ पर निचली अदालतों के फैसलों के बाद देश के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आलोचनाओं के केंद्र में हैं. अजमेर शरीफ के सर्वे की मांग के बीच पूर्व सीजेआई पर सियासी हमले तेज हो गए हैं. पूर्व सीजेआई पर आरोप है कि उन्होंने अपने आदेश से ऐसी याचिकाओं और देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों के सर्वे के लिए रास्ता खोल दिया है. पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अब समाजवादी पार्टी के सांसद पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ पर निशाना साध रहे हैं. दरअसल, पूर्व सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने पिछले साल एक फैसला सुनाया था, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी.

सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क और मोहिब्बुल्लाह नदवी ने कहा, ‘चंद्रचूड़ का वो फैसला गलत था. इससे ऐसे और सर्वे के रास्ते खुल गए हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पर ध्यान देना चाहिए और देशहित में ऐसी याचिकाओं और सर्वेक्षणों को रोकना चाहिए.’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसी तर्ज पर एक बयान जारी कर ज्ञानवापी में सर्वे की इजाजत देने और “अपना रुख नरम” करने के लिए पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को जिम्मेदार ठहराया है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, ‘बाबरी मस्जिद मामले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला दिया था. कहा था कि इस कानून के अधिनियमन के बाद कोई नया दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इस कानून में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता.’


साथ ही कहा, ‘जब निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद पर दावे को स्वीकार किया, तब मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनका कहना था कि पूजा स्थल अधिनियम को देखते हुए इस तरह के दावे को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, अदालत ने अपने रुख को नरम करते हुए सर्वेक्षण की अनुमति देते हुए कहा कि यह 1991 के कानून का उल्लंघन नहीं करता है.’ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयान में कहा गया है कि इसके बाद मथुरा में शाही ईदगाह, लखनऊ में टीले वाली मस्जिद और अब संभल में जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ पर भी दावे किए जाने लगे.

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बात करते हुए ऐसे सर्वेक्षणों के मकसद पर ही सवाल उठा दिए. उन्होंने कहा कि जब 1991 के कानून के मुताबिक कुछ और हो ही नहीं सकता, तो ऐसे सर्वेक्षण का क्या मतलब? ओवैसी ने कहा, ‘जिस दिन संभल कोर्ट में याचिका दायर की गई, उसी दिन दोपहर में सर्वेक्षण का आदेश दिया गया और उसी दिन सर्वेक्षण भी कर लिया गया.’ कई विपक्षी नेता संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2022 के उस बयान का हवाला देते हुए इस तरह के सर्वेक्षणों को रोकने की अपील कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग देखने की जरूरत नहीं है.’

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