नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने मंगलवार को लोकसभा (Lok Sabha) में भारत-चीन (India-China) संबंधों (Relation) की ताजा स्थिति पर अहम अपडेट दिया. वो जैसे ही सदन में आए, सबसे पहले उन्होंने अपने कोर्ट के बटन लूज किए. इसके बाद उन्होंने बोलना शुरू किया. साल 2020 में भारत-चीन की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी. इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनातनी जैसी स्थिति बनी हुई थी. ना चीन की सेना पीछे हटने को तैयार थी और ना ही भारत ड्रैगन की हिमाकत को बर्दाश्त करने के मूड में था. ऐसे में जयशंकर ने पूरी शालीनता और अदब के साथ सदन को बताया कि कैसे चार सालों में चीन की अकड़ को डिप्लोमैटिक तरीके से ढीला किया गया.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कि पूर्वी लद्दाख में पूरी तरह से डिसएंगेजमेंट हो चुका है और भारत-चीन संबंधों में कुछ सुधार देखने को मिला है. भारत की अगली प्राथमिकता तनाव को कम करना जारी रखना होगी. उन्होंने कहा, “हाल के घटनाक्रम हमारे निरंतर कूटनीतिक प्रयासों को दर्शाते हैं. ये भारत-चीन संबंधों को कुछ सुधार की दिशा में लेकर पहुंचे हैं. पूर्वी लद्दाख में पूरी तरह से डिसएंगेजमेंट हो चुका है. मैं सदन को भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में हाल के कुछ घटनाक्रमों और हमारे बायलेट्रल संबंधों पर उनके प्रभाव के बारे में बताने के लिए खड़ा हुआ हूं.”
विदेश मंत्री ने कहा कि सदन जानता है कि 2020 से हमारे संबंध असामान्य रहे हैं. तब सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता चीनी कार्रवाइयों के कारण बाधित हुई थी. हमारे निरंतर कूटनीतिक प्रयासों से संबंधों में सुधार हुआ है. जयशंकर ने आगे कहा कि यह सदन जानता है कि चीन ने 1962 के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं में अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था. इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में चीन को 5,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र अवैध रूप से सौंप दिया था. भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों से बातचीत की है.
एस जयशंकर ने कहा, “हम एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य सीमा समाधान के लिए बायलेट्रल बातचीत के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सदन के सदस्यों को याद होगा कि अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती के कारण हमारे सुरक्षा बलों के साथ कई प्वाइंट पर आमना-सामना हुआ था. इस स्थिति ने भारत की सीमा पर गश्त में भी बाधा पहुंचाई. हमारे सशस्त्र बलों को इस बात का श्रेय जाता हे कि उन्होंने लॉजिस्टिक चुनौतियों और उस समय की कोविड महामारी के बावजूद वो सीमा की सुरक्षा में लगे रहे.”
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