नई दिल्ली (New Delhi)। उच्चतम न्यायालय(Supreme court) ने एक तृतीय लिंग (transgender) एक्टिविस्ट की उस याचिका पर विचार(consideration of petition) करने से इनकार(denied) कर दिया है, जिसमें मणिपुर में जातीय झड़पों के विरुद्ध आमरण अनशन करने पर उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के निर्देश का अनुरोध किया गया था। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने की थी। पीठ ने हालांकि, एक्टिविस्ट मालेम थोंगम को अपनी शिकायतों के निवारण के लिए मणिपुर उच्च न्यायालय का रुख करने की छूट दे दी। पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
अनशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगाई अर्जी
पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए मणिपुर उच्च न्यायालय का रुख करने की छूट होगी। इसलिए, हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।’’ थोंगम ने 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी भूख हड़ताल शुरू की। वह 27 फरवरी को दिल्ली से मणिपुर के लिए रवाना हुई, जहां उसने इंफाल के कांगला पश्चिमी गेट पर अपनी भूख हड़ताल जारी रखी।
मणिपुर पुलिस ने किया था गिरफ्तार
मणिपुर पुलिस ने दो मार्च को थोंगम को आत्महत्या के प्रयास और समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया, लेकिन पांच मार्च को उसे रिहा कर दिया गया। एक दिन बाद, उसे सार्वजनिक स्थल पर विरोध करने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। पिछले साल मई में उच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद मणिपुर में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें राज्य सरकार को गैर-आदिवासी मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था।
इस आदेश के कारण पूर्वोत्तर राज्य में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा हुईं। पिछले साल तीन मई को बहुसंख्यक मेइती समुदाय को एसटी दर्जा दिये जाने के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा में अब तक 170 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।
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