उज्जैन। अभा संजा लोकोत्सव के तीसरे दिन उज्जैन एवं आसपास निवास करने वाली जनजाति समाज में वर्तमान समय में आए सकारात्मक और नकारात्मक बदलाव को जानने के लिए लोकोत्सव के एक विशेष दल द्वारा मारुतिगंज में डॉक्यूमेंटेशन का कार्य किया गया। इस अवसर पर मांझी समाज महापंचायत के अध्यक्ष राकेश वर्मा से संवाद के माध्यम से ज्ञात हुआ कि मांझी समुदाय के लोग पर्यावरण के प्रति सजग रहते थे। प्राकृतिक भोजन, वनों से प्राप्त वस्तुओं से श्रृंगार, जड़ी बूटियों का व्यापार करते थे तथा वन तथा जल में देवताओं का निवास मानकर उनकी पूजा करते थे। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए वे जल, जंगल और जमीन के प्रति सजग प्रहरी बनकर पर्यावरण के संतुलन में अपना अहम योगदान देते थे। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में जल, जंगल खत्म होने से रोजगार धंधे के नए अवसर तलाशने पड़े इसी के चलते मांझी जनजाति समुदाय की कला, संस्कृति ,बोली का वृहत स्तर पर ह्रास हुआ है।
वर्तमान समय में युवा वर्ग अपने समुदाय, अपनी संस्कृति से दूर होने के कारण अपनी कला, संस्कृति व बोली से दूर हो गए हैं तथा अपनी बोली में बोलने में शर्म का भाव महसूस करने लगे हैं। जनजाति समुदाय के गीत, संगीत, नृत्य उनसे छिन गए हैं। यह बदलाव निश्चित ही समाज के लिए चिंताजनक है, क्योंकि किसी भी समाज की संस्कृति -मनुष्य के भीतर की हर्ष ,उल्लास व उसकी मानवीय संवेदनाओं को जीवित रखती है। बिना संस्कारों की मानव पशु समान हो जाता है। श्री वर्मा ने चर्चा में बताया कि हम पंचायत के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी में अपनी संस्कृति के प्रति जागरूकता लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, प्रतिकल्पा संस्था का यह प्रयास निश्चित ही हमारे युवाओं में एक नई चेतना का संचार करेगा, उनमें गौरव का भाव जागृत करेगा। इसके लिए संजा लोकोत्सव का दल साधुवाद का पात्र है। संस्था द्वारा किए गए इस डॉक्यूमेंटेशन में संस्था निदेशक डॉ. पल्लवी किशन कुमार, सचिव कुमार किशन, वरिष्ठ माच कलाकार सुधीर सांखला, रंगकर्मी भूषण जैन उपस्थित थे।
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