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    चूं चूं का नहीं… ढेंचूं का मुरब्बा है फिल्म क्रू

  • March 31, 2024

    फिल्म समीक्षा -प्रकाश हिन्दुस्तानी। चूं चूं का मुरब्बा क्या होता है, कोई नहीं जानता! लेकिन कुछ तो होता होगा! वैसे ही यह फिल्म भी ढेंचूं का मुरब्बा है। रंगपंचमी पर लगी यह फिल्म भंग में रंग जैसी है। इस फिल्म का नाम क्रू नहीं, क्रू एल होना चाहिए था। टाइगर ऑटो गैरेज में बने आईफोन जैसी फि़ल्म है यह!

    हवाई जहाज में काम करने वाले कर्मचारियों के दस्ते को क्रू कहा जाता है। विमान में तरह-तरह के कर्मचारी होते हैं, लेकिन यह फिल्म की तीन एयर होस्टेस की कहानी है। इसमें किंगफिशर एयरलाइन के भगोड़े मालिके विजय माल्या की पैरोडी की गई है। किंगफिशर की जगह कोहिनूर एयर लाइंस और विजय माल्या की जगह विजय वालिया नाम रख दिया गया है। जैसे विजय माल्या हज़ारों करोड़ डकारकर भाग गया, वैसे ही इस फिल्म में विजय वालिया भी भगौड़ा है। इस फि़ल्म में वालिया अपने ही विमान से सोने की तस्करी के जरिये धन विदेश भेजता है, जिसमें तब्बू, करीना और कृति सेनन एयरहोस्टेस के रूप में मजबूरी में उसकी मदद करती हैं।

    विमान कंपनी का मालिक अपने हज़ारों कर्मचारियों को वेतन न देकर एक दिन खुद को दिवालिया घोषित कर देता है और विदेश भाग जाता है। तीनों हीरोइनें हैप्पी न्यू ईयर के शाहरुख खान जैसी बन जाती हैं और उनका मिशन होता है हज़ारों करोड़ का सोना वापस भारत लाना। वे हीरोइन हैं, वह भी हिन्दी फि़ल्म की, तो उनका किसी भी मिशन में फेल होना, असंभव है। इस फिल्म के निर्माता निर्देशक और कुछ फि़ल्म समीक्षक लिखते हैं कि यह कॉमेडी फिल्म है, जबकि यह ट्रेजडी फिल्म है! दर्शकों के साथ ट्रेजडी है यह फि़ल्म। इसमें भी चीज़ ऐसी नहीं है, जिसकी तारीफ की जा सके! (सिवाय इसके कि यह फिल्म केवल 2 घंटे 3 मिनट की छोटी फिल्म है! ) दर्शकों को इस क्रू से जल्दी मुक्ति मिल जाती है! यह फिल्म महिला पात्रों पर केंद्रित है, इसलिए इसमें अश्लील डायलॉग भी महिलाओं ने ही बोले हैं! कमजोर एक्शन, कलाकारों का मेकअप बड़ा अजीब सा है। संगीत बेसुरा और बेज़ान है। दादा कोंडके स्टाइल के डायलॉग भी है। कपिल शर्मा भी फिल्म में है, लेकिन वे कुछ खास कर नहीं पाते। चार गानों के सात गीतकार और पांच संगीतकार हैं, जो दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। चोली के पीछे क्या है वाले गाने को ही फिल्म में जबरदस्ती ठूंसना पड़ा। फिल्म का कोई भी पक्ष दर्शकों को मनोरंजन नहीं दे सका। मूर्खतापूर्ण कहानी के बावजूद दर्शक को फि़ल्म में हंसी नहीं, रोना आता है। इस फिल्म में तब्बू, करीना कपूर, कृति सेनन, कपिल शर्मा, दिलजीत दोसांझ जैसे कलाकारों को फिजूल खर्च किया गया है। फिल्म का तकनीकी पक्ष भी बहुत ही कमजोर है। सिनेमाघर में यह फि़ल्म देखने जाना, यानी चार- पांच दशक पुरानी दादा कोंडके की किसी फिल्म की अगली कड़ी देखना।

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