भोपाल। जीएसटी कर प्रणाली के अंतर्गत ई-वे बिल व्यवस्था के नए नियम प्रदेश में 15 अप्रैल से लागू हो गए हैं। माल परिवहन पर लागू होने वाले ई-वे बिल की मूल्य सीमा दोगुनी कर दी गई है। दवाओं और जीएसटी में कर मुक्त श्रेणी की वस्तुओं को छोड़ सभी को ई-वे बिल के दायरे में लाया गया है। नए नियम लागू होने के बाद विभाग फिलहाल ई-वे बिल के पालन पर सख्ती बरतने के मूड में नहीं है। व्यापारियों को स्वत: पालन का मौका देने और समझाइश के रास्ते पर अभी विभाग आगे बढ़ेगा। इस बीच दवाओं के कच्चे माल को ई-वे बिल से छूट देने के लिए विभाग ऐसा फार्मूला ढूंढने में जुटा है, जिसका फायदा कर चोर नहीं उठा सकें।
सरकार ने ई-वे बिल से मुक्त श्रेणी में दवाओं, सर्जिकल उपकरण के साथ दवाओं के कच्चे माल (एपीआइ) को भी रखा है। एचएसएन कोड के 30 सीरीज वाली वस्तुएं इस श्रेणी में शामिल की गई हैं। यह कोड सीरीज दवाओं की है। बीते दिनों एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट का व्यापार करने वालों ने विभाग से शिकायत की थी कि एपीआई का उल्लेख मुक्त श्रेणी में नहीं है। मप्र बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन ने आयुक्त से आग्रह किया है कि अधिसूचना में संशोधन कर एपीआई का एचएसएन कोड भी इसमें शामिल किया जाए। हालांकि विभाग अधिसूचना में संशोधन करने में किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहता। विभाग के अनुसार ई-वे बिल की अधिसूचना जारी करने से पहले दवा व्यापारियों से बात की गई थी। अब एपीआइ वालों का सुझाव मिला है।
चर्चा के बाद लेंगे निर्णय
राज्य कर के अधिकारियों के अनुसार कई पावडर या रसायन ऐसे हैं, जो दवाओं के निर्माण में तो काम आते ही हैं, अन्य उद्योग भी उसका उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए साइट्रिक एसिड, ग्लूकोज आदि। ऐसे में यदि इन वस्तुओं के एचएसएन कोड को मुक्त श्रेणी में दिखा दिया जाएगा तो उसका लाभ कर चोरी की मंशा रखने वाले व्यापारी भी उठा लेंगे, जो दवा निर्माण के बजाय अन्य उपयोग के लिए कच्चे माल की आपूर्ति कर रहे हैं। लिहाजा विभाग पहले ऐसे सभी पहलुओं पर चर्चा करेगा, फिर इस मामले पर निर्णय लेगा।
दो बिंदुओं से निकलेगा रास्ता
विभाग की आशंका को दूर करते हुए बेसिक ड्रग डीलर्स एसोसिएशन सुझाव देने की तैयारी कर रहा है। एसोसिएशन के महासचिव जेपी मूलचंदानी के अनुसार विभाग को सरकार के राजस्व की चिंता है तो हम भी उससे सहमत हैं। दरअसल दवाओं के निर्माण में उपयोग आने वाले कच्चे माल के व्यापार के लिए ड्रग लाइसेंस जरूरी है। साथ ही आम रसायन और दवाओं का रसायन अलग-अलग मानकों का होता है। जो दवा निर्माण का रसायन होता है वह या तो इंडियन फार्माकोपिया (आईपी) या ब्रिटिश फार्माकोपिया (बीपी) के अनुसार निर्मित होता है। ऐसे सभी रसायनों पर आइपी या बीपी लिखा जाता है। लिहाजा विभाग यदि ई-वे बिल की छूट के साथ बिल पर ड्रग लाइसेंस और संबंधित माल पर आइपी या बीपी का चिन्ह निरीक्षण करें और अनिवार्य कर दें तो कर चोरी की आशंका नहीं रहेगी। इस बारे में हम विभाग को प्रस्ताव भी सौंप रहे हैं।
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