– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
देश में कोरोना की तेजी से बढ़ती रफ्तार के साथ ही महाराष्ट्र् सहित देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन या रात्रि कर्फ्यू के समाचारों से प्रवासी मजदूरों के पलायन का भय एकबार फिर सताने लगा है। एक और होली के त्यौहार पर घर आए प्रवासी श्रमिकों में से कई श्रमिक लाकडाउन के भय से अपने कार्य स्थल पर नहीं जा रहे हैं तो दूसरी ओर नित नए रेकार्ड बनाते कोरोना के आंकड़ों से देशवासी भयभीत होने लगे हैं। पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान जिस तरह यातायात के साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते श्रमिकों की तस्वीर आज भी आंखों के सामने से ओझल नहीं हो रही है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते प्रवासी श्रमिकों के पलायन का भय एकबार फिर डराने लगा है।
अभी भले ही शुरुआती स्थिति हो पर देश के कई हिस्सों से प्रवासी श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया है। लॉकडाउन के डर से श्रमिक गांवों की और लौटने लगे हैं। मुंबई, सूरत, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे शहरों से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और उत्तराखण्ड से श्रमिकों की अपने प्रदेशों की ओर वापसी के समाचार अने लगे हैं। मध्य प्रदेश में लॉकडाउन के भय से वहां से प्रवासी राजस्थानी श्रमिक घर लौटने लगे हैं। हालांकि यह शुरुआती हालात है पर जिस तरह से कोरोना संक्रमण के नित नए रेकार्ड बन रहे हैं और अमेरिका को भी पीछे छोड़ने लगे हैं, उससे सरकारों द्वारा एहतियाती कदम के रूप में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगने शुरू हो गए हैं तो महाराष्ट्र के कुछ शहरों में तो लॉकडाउन लगाया जा चुका है। ऐसे में दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे श्रमिक आशंकित होने लगे हैं। मुबई से यूपी आने वाली ट्रेनों में 100 यात्रियों की वेटिंग आने लगी है तो अन्य स्थानों के लिए भी वेटिंग के हालात बनते जा रहे हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या इस पलायन को रोकने की है। लोगों में व्याप्त आशंका को निर्मूल बनाने की है। हालांकि हालातों को देखते हुए पलायन कर वापसी करने वाले प्रवासी श्रमिकों के प्रदेशों की सरकारों को अभी से एहतियाती कदम उठा लेने चाहिए ताकि हालात गए साल के लॉकडाउन जैसे न हों।
दरअसल थोड़ी-सी लापरवाही के कारण कोरोना का यह संकट भयावह होकर सामने आया है। सरकारों द्वारा जन जागरण अभियानों के माध्यम से मास्क लगाने, बार-बार हाथ धोने और दो गज की दूरी जैसे संदेश दिए जाने के बावजूद लोगों द्वारा कोरोना प्रोटोकाल को गंभीरता से नहीं लिया गया जिससे हालात दिन प्रतिदिन गंभीर होते जा रहे हैं। सरकारों की भी मजबूरी है कि कब तक सबकुछ बंद करें। आखिर रोजी-रोटी के लिए काम-धंधों को भी चालू रखना जरूरी हो जाता है। पिछले एक साल में हमारे देश में ही नहीं अपितु सारी दुनिया में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई है। लोगों की आय प्रभावित हुई है तो बेरोजगारी का दंश बढ़ा है। कोरोना ने उद्योग धंधे चैपट करने के साथ ही लोगों के रोजगार छिनने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है। हालांकि पिछले माहों में हालात में सुधार दिखने लगा था पर जिस तरह से मार्च के दूसरे पखवाड़े से अप्रैल में कोरोना संक्रमण के नए रिकार्ड बन रहे हैं उससे सरकारें चिंतित हो गई है। यह तब है जब सरकार द्वारा वैक्सीनेशन का काम पूरी गति से चलाया जा रहा है। हालिया कोरोना की दूसरी लहर अधिक भयावह इस कारण से है कि एक तो संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। पहली बार देश में लाखों की संख्या पें प्रतिदिन संक्रमित आ रहे हैं तो मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। कोरोना प्रोटोकाल की पालना में लापरवाही का ही यह नतीजा है कि हालात दिनों दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
कोरोना की दूसरी लहर के चलते प्रवासी श्रमिकों के पलायन को रोकने या योजनाबद्ध तरीके से गंतव्य तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकारों को नई रणनीति बनानी होगी। क्योंकि गए साल के हमारे शुरुआती अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले तो जहां तक हो सके प्रवासी श्रमिकों को वहां के प्रशासन द्वारा विश्वास पैदा करना होगा कि लॉकडाउन जैसे हालात होते भी हैं तो उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी जाएगी। वैसे भी जिस तरह से सरकार प्रवासी श्रमिकों को लाने- ले जाने व शिविरों में रखकर खाने-पीने की व्यवस्था करती रही है उससे बेहतर तो यह हो कि उतना पैसा व स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से उसी स्थान पर प्रवासियों के रहने-खाने की व्यवस्था कर दी जाए ताकि पलायन रुकने के साथ आर्थिक गतिविधियां भी ठप्प नहीं हो सके।
इसके साथ ही सरकारों को कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना करानी ही होगी। बिना मास्क लगाए कोई भी मिले तो उसे दण्ड देना ही होगा जिससे दूसरों को संदेश जाए। दुकान या वेंडर द्वारा मास्क नहीं लगाया जाता है तो टोकन रूप से उसके प्रतिष्ठान को एक दो दिन के लिए सील करने जैसे कठोर निर्णय करने में नहीं हिचकना चाहिए। इस सबके साथ ही राज्य सरकारों को अभी से सेल गठित कर आवश्यक तैयारियां कर लेनी चाहिए जिससे हालात खराब ना हो।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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