सौरभ कुमार
चीन जनित वायरस संक्रमण के गिरते ग्राफ और कम होती मौत ने हम सबको थोडा आराम दिया है। लगभग एक महीने ऐसी भागदौड़ रही कि कोई अस्पताल के बिस्तर और दवाओं के अलावा अन्य चिंता करे, ये संभव ही नहीं था। अब जरूर समय है कि एक नजर दूसरी समस्याओं की तरफ भी डाली जाए। वास्तव में वायरस के गिरते ग्राफ के साथ ही एक गंभीर खतरे की आहट सुनाई दे रही है। खतरा ऐसा जो भारत के भविष्य की दिशा पर सवाल लगा है।
10 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक चेतावनी दी है। ये चेतावनी वैसे तो पूरी दुनिया के लिए है लेकिन वर्तमान राजनैतिक, सामाजिक स्थिति और रोज सामने आते षड्यंत्रों को ध्यान में रखकर देखें, तो भारत के लिए ये चेतावनी ‘रेड लाइट’ की तरह है। एंटोनियो गुटेरेस ने कहा “यह महामारी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक भी एक बड़ा खतरा है। संभावित रूप से आने वाले समय में सामाजिक अशांति और हिंसा में वृद्धि होगी।”
ये जो सम्भावना गुटेरेस ने जताई है, उसके पीछे का कारण भी उन्होंने विस्तार से बताया है। इस संभावित सामाजिक अशांति और हिंसा के लिए गुटेरेस ने तीन प्रमुख कारण बताये हैं। एक, जब लोगों को ऐसा लगेगा की सरकार स्थिति को संभालने में नाकाम रही है या पारदर्शिता की कमी रही है, तो उनके और सरकार के बीच में अविश्वास बढेगा। दो, महामारी के कारण कम आय वाले समूहों में आर्थिक दबाव और बढ़ेगा, ऐसे में अशांति पैदा करने की इच्छा रखने वालों के लिए एक अवसर होगा और तीसरे कारण में वे राजनीतिक दलों से अपील करते हुए कहते हैं कि ये राजनीतिक अवसरवादिता का समय नहीं है। ये अवसरवादिता भी हिंसा और अशांति का कारण बन सकती है।
अब एक बार भारत की वर्तमान राजनीति को ध्यान में रखते हुए इन तीनो कारणों को दोबारा पढ़िए, और सोचिए कि किस तरह से चीन वायरस की दूसरी लहर की शुरुआत से ही टीवी स्क्रीन पर चिताओं की आग और अस्पताल के बाहर रोते लोगों को दिखाया गया। आधी अधूरी जानकारी के साथ मौतों को लेकर भ्रामक दावे किये गए। भारत के आर्थिक तौर पर पिछड़े तीन समूहों – मुसलमान, दलित और किसानों के बीच कम्युनिस्ट संगठनों की गतिविधियाँ लगातार बढ़ रही हैं। उनके मन में अविश्वास और विभाजनकारी विचार भरे जा रहे हैं। रही बात राजनीतिक अवसरवादिता की तो आप कांग्रेस का टूलकिट पढ़ ही चुके हैं।
एंटोनियो गुटेरेस की चेतावनी सुनने के बाद यदि कांग्रेस, वामपंथी और इस्लामिक शक्तियों के गतिविधियों को देखेंगे तो बहुत ज्यादा समानता दिखाई देती है। जिन बिन्दुओं से गुटेरेस बचने की बात कर रहे हैं, उन्हें हमारे यहां सुनियोजित तरीके से लागू करने की कोशिश की जा रही है। आप कहेंगे क्या हवा हवाई बातें हैं! ऐसा नही हैं कि ये खतरा सिर्फ भारत के सिर पर मंडरा रहा है या बीते कुछ दिनों से मंडरा रहा है। हम बस उस नजर से देख नहीं रहे और क्रोनोलॉजी पकड़ में नहीं आ रही। तो जरा समझने की कोशिश कीजिये – अमेरिका में चीन जनित वायरस के पहली लहर का चरम जुलाई 2020 में आया। संक्रमण के मामले कम होने शुरू हुए तो अगस्त के बीच में अमेरिका में हो रहे “ब्लैक लाइफ मैटर्स” के प्रदर्शन हिंसक हो गए। कई जगहों पर आग लगायी गयी, दुकानें लूटी गयीं। इसके पीछे कम्युनिस्ट संगठनो का हाथ होने की सम्भावना कई मीडिया चैनल और जिम्मेदार लोगों ने जताई।
फ्रांस को देखिये, वहां पहली लहर का चरम नवम्बर, 2020 में आया। दिसम्बर के शुरुआत में फ्रांस के कई हिस्सों में नए पुलिस सिक्यूरिटी बिल को लेकर विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई। कुछ दिनों में ये प्रदर्शन हिंसक हो गए। यहाँ भी वही आगजनी, लूट. फ्रांस में इस्लामिक ताकतें भी एक्टिव हो रही हैं। स्थितियां इस हद तक चली गयीं की फ्रांस की सेना के लोगों ने प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिख कर ‘गृहयुद्ध’ सम्भावना जताई है। इजराइल ने 18 अप्रैल को चाइना वायरस से सम्बंधित पाबंदियां हटा लीं, खुद को वायरस फ्री घोषित कर दिया। 06 मई को ईस्ट जेरुसलम में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। कारण क्या? सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद, 06 परिवारों को दूसरी जगह भेजा जा रहा था। 06 परिवारों के आड़ में शुरू हुआ आन्दोलन लगभग 270 लोगों की मौत का कारण बन गया, हजारों घायल हुए।
दुनिया भर में दिख रहा है कि चाइना वायरस के मामले जैसे कम होने लगते हैं तो सामाजिक अशांति और हिंसा हो रही है। भारत का मामला भी कुछ अलग नहीं है, भारत में चाइना वायरस की पहली लहर का चरम सितम्बर में आया था। तब 25 नवम्बर को किसानों के कुछ संगठनों ने कृषि कानूनों का बहाना लेके दिल्ली में आन्दोलन की घोषणा की, और देश की राजधानी को लट्ठ लेकर घेर लिया। महीनों तक दिल्ली को बंधक बना के बैठे रहे और 26 जनवरी जैसे अवसर पर हिंसा की, लाल किले पर कब्ज़ा करने की कोशिश की।थोडा सा सावधान होने की जरुरत है. क्यूंकि खतरा बड़ा हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबॉर्न ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार पांच देशों में चाइना वायरस वायरस महामारी के दौरान गृह युद्ध बढ़ा है।
हिंसा और इस्लामिक-कम्युनिस्ट गठजोड़
भारत में अगर बड़े स्तर पर आंतरिक हिंसा की शुरुआत होती है तो हम कहाँ खड़े हैं? इसका आकलन करने की जरूरत है। भारत में एक साथ पूरे देश में हिंसा की शुरुआत हो ये सम्भव नहीं लगता है। एक आन्दोलन में हुई हिंसा से निपटने में भी सरकार सक्षम है, लेकिन क्या हुआ अगर ये हिंसा तब हो जब किसी और देश ने हमपर हमला किया हो? पाकिस्तान और चीन के साथ सीमा पर तनाव लगातार बना हुआ है। कुछ खबरें भी आई हैं कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीनी सेना और उपकरण देखे जा रहे हैं। भारत में भी हिंसा भड़काने पर उसके संभावित एलिमेंट यही हैं – इस्लाम और कम्युनिस्ट। वो शाहीनबाग़ हो या कथाकथित किसान आन्दोलन, फ्रांस हो अमेरिका, इजरायल, ब्राजील, ब्रिटेन हर जगह चर्च, कम्युनिस्ट और इस्लाम का गठजोड़ सत्ता को असंतुलित करने और हिंसा भड़काने की कोशिश कर रही है।
ऐसा नहीं है कि ये असंभव है। इजराइल में यही हुआ, एक तरफ जहाँ गज़ा से इजरायल पर राकेट दागे जा रहे थे उसी समय इजराइल के अन्दर रहने वाले मुसलमान हथियार लेकर सड़कों पर उतर आये थे। इस्लाम में एक चीज की तारीफ़ करने लायक है- वह है समन्वय। वो आपस में बड़े अच्छे से जुड़े हैं। फ्रांस में आन्दोलन हो तो भोपाल में आरिफ मसूद एक्टिव हो जाता है।
इस्लामिक युद्धनीति से लड़ने में कितना सक्षम है समाज ?
सीएए आन्दोलन के बाद दिल्ली के दंगे आपने देखे, देखा की किस तरह खून की नदियाँ बहा दी गईं। सबने उनकी तैयारी देखी? इंजीनियरिंग देखी? हजारों की संख्या में पेट्रोल बम बना लिए, बंदूकें निकल आयीं, 100-200 नहीं हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट है कि 10 हजार किल्लोग्राम पत्थर दिल्ली दंगों में इस्तेमाल किये गए। अलग तरह की गुलेल भी आपने देखी होगी।
अब मजे की बात देखिए इजराइल में जो दंगेबाज थे वो कौन सा हथियार इस्तेमाल कर रहे थे। क्या.. कोओर्डिनेशन (समन्वय) है! और अगली बार ये हथियार और खतरनाक हो सकते हैं। न्यूज़ रिपोर्ट्स के मुताबिक 15 दिनों में गज़ा से जो 4000 से ज्यादा राकेट दागे गए वो ‘होम मेड’ थे। चंद हज़ार रुपए में मिलने वाले इंजन, एक छोटा सा सर्किट, लोहे की पाइप, चीनी और कंक्रीट और बन गया राकेट। तब यह सब देखने के बाद अब बहुत हद तक सावधान हो जाने की जरूरत है, चीन जनित वायरस की दूसरी लहर को समझने में हमसे चूक हो गयी। अगली लहर को समझने में हमसे देरी न हो, वस्तुत: आज ये ध्यान रखते हुए हमें आगे बढ़ते रहना होगा।
(लेखक सामाजिक एवं राजनीतिक -अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार हैं)