नई दिल्ली। मणिपुर में मई माह में भड़की जातीय हिंसा में एक परिवार के बच्चों पर बड़ी विपदा आ गई। जातीय हिंसा में उनके पिता की मौत हो गई और मां लापता हो गईं। उत्तर पूर्वी राज्य के कांगपोकपी जिले के लैरोक गांव में उनका पैतृक घर जलकर राख हो गया। हिंसा बढ़ने पर दादी उन्हें किसी तरह सुरक्षा बलों के शिविर में ले जाने में कामयाब रहीं।
अंधकारमय भविष्य की ओर देखते हुए चारों भाई-बहनों के लिए आशा की पहली किरण तब उभरी, जब पंजाब में बीएसएफ में सिपाही के रूप में तैनात उनके चाचा उनके पास पहुंचे और उनके लिए फ़िरोज़पुर पंजाब पहुंचने की व्यवस्था की। जो उनके घर से पहले लगभग 3,000 किमी दूर था। अब फिरोजपुर कैंट में सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल ने ने आठ और 17 साल की उम्र के दो लड़कों और दो लड़कियों समेत बच्चों को गोद ले लिया है।
उनके चाचा ने कहा कि वह आखिरी बार अप्रैल में मणिपुर गए थे। फिर पंजाब लौट आए और 28 अप्रैल को ड्यूटी पर शामिल हो गए। चाचा ने कहा, “उस यात्रा के दौरान, मैं अपने भाई से मिला था। वह एक किसान थे। कुछ हफ़्ते बाद उनकी हत्या कर दी गई और फिर हमारे पुश्तैनी घर में आग लगा दी गई। मेरे भाई की पत्नी लापता हो गई।”
उन्होंने कहा कि उनकी मां सुरक्षा बलों द्वारा स्थापित शिविर तक पहुंचने में कामयाब रहीं। सिपाही ने कहा, “उन्होंने शिविर में लगभग 15 दिन बिताया। बाद में मैंने उन्हें सुरक्षा बलों की मदद से नागालैंड के दीमापुर पहुंचने के लिए कहा। वहां से मैंने उन्हें ट्रेन में बैठाया और वे यहां फिरोजपुर बच्चों के साथ पहुंच गईं।” उन्होंने कहा कि अपनी बचत की सारा जमा पूंजी के साथ इंफाल में एक छोटा सा घर बनवाया था, उसे भी हिंसा में उपद्रवियों ने जला दिया।
सिपाही ने बताया कि एक महीने से अधिक समय तक उन्होंने बच्चों के प्रवेश के लिए कई स्कूलों का दौरा किया, लेकिन आरोप लगाया कि उनमें से लगभग सभी ने भारी प्रवेश शुल्क – प्रति छात्र 20,000 रुपये से 30,000 रुपये तक मांगा। उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ एक सिपाही हूं। मैं इस तरह का पैसा वहन नहीं कर सकता।”
बाद में, उनके एक सीनियर ने जालंधर के सूबा डायोसीज के फादर माइकल अनिकुझिकट्टिल (मालवा क्षेत्र के एपिस्कोपल पादरी) और फिरोजपुर में सेंट जोसेफ कैथोलिक चर्च के प्रभारी पुजारी से संपर्क किया। उन्होंने तीन बच्चों को फिरोजपुर कैंट के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल में मुफ्त में दाखिला दिलाया।
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