नई दिल्ली (New Delhi) । एमएसपी (MSP) पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट (Swaminathan Commission report) के मुताबिक एमएसपी लागू करने सहति अन्य मांगों को लेकर पंजाब (Punjab) के किसान आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी दिया है। हालांकि, पंजाब और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में किसानों (farmers) को गेहूं के एमएसपी की गणना के लिए C2+50% फॉर्मूला के लागू होने से लाभ होने की संभावना नहीं है। ऐसा इसलिए कि उन्हें मौजूदा फॉर्मूले के तहत भी इतनी ही राशि मिलेगी।
इसके अलावा इसके लागू होने से जटिलताएं पैदा होने की भी आशंका है। क्योंकि सरकार को राज्यों में किराए के आधार पर कीमतें तय करनी होंगी। मुंबई या दिल्ली के आसपास भूमि का किराया ओडिशा या मणिपुर जैसे राज्यों में खेती योग्य भूमि की तुलना में कई गुना अधिक है।
एक अधिकारी ने बताया, “किसी को एमएसपी पर विचार करते समय पूरे देश की भूमि लागत या किराया के औसत पर आवेदन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दिल्ली के नजफगढ़ में भूमि का किराया बिहार या छत्तीसगढ़ के एक गांव में भूमि की लागत या किराए से काफी अधिक होगा।”
एमएसपी की सिफारिश करने वाली एजेंसी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि दोनों राज्यों में किसानों को पहले से ही एमएसपी मिल रहा है जो व्यापक लागत (सी2) से 50% अधिक है। उदाहरण के लिए, पंजाब में C2+50% फॉर्मूला लागू करने पर लागत 1,503 रुपये प्रति क्विंटल आती है। वहां, मौजूदा एमएसपी 2,275 रुपये प्रति क्विंटल है। यह व्यापक लागत (C2) या स्वामीनाथन समिति फॉर्मूले से 51% अधिक है।
सरकार द्वारा इस्तेमाल किए गए मौजूदा फॉर्मूले के अनुसार, पंजाब में उगाए गए गेहूं की लागत 832 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है। इसके विपरीत, बिहार या पश्चिम बंगाल में इतना ही गेहूं उगाने वाले किसान की लागत क्रमशः 1,745 रुपये प्रति क्विंटल और 2,003 रुपये बैठती है। इसका मतलब यह है कि उन्हें C2+50% फॉर्मूले के तहत व्यापक लागत पर 50% से कम मिल रहा है।
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