भोपाल। मध्य प्रदेश में नवंबर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार धान का उपार्जन करेगी। आठ लाख किसानों ने उपज बेचने के लिए पंजीयन कराया है। पात्र किसानों से ही उपार्जन हो, इसके लिए सरकार राजस्व विभाग के कर्मचारियों से यह पता लगवाएगी कि किसान ने धान की बोवनी की थी या नहीं। उसका रकबा (क्षेत्र) कितना था, अनुमानित उत्पादन कितना हो सकता है। इन तथ्यों की पड़ताल के बाद ही किसान से उपज खरीदी जाएगी। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि पिछले साल गेहूं के उपार्जन के समय 44 हजार खसरे ऐसे पाए गए थे, जिनका पंजीयन तो कराया गया पर वहां खेती ही नहीं हो रही थी। खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने बताया कि राजस्व विभाग किसानों के खसरे का सत्यापन करवा रहा है। इसमें यह देखा जा रहा है कि किसान जिस खसरे नंबर की भूमि पर धान की बोवनी करना बता रहा है, उसमें वास्तव में धान बोई गई है या नहीं।
दरअसल, पिछले साल 33 जिलों में 44 हजार 532 खसरे ऐसे पाए गए थे, जिनका पंजीयन तो हुआ पर जांच में वहां खेती होना ही नहीं पाया गया। कहीं नाला था तो कहीं पठार और कहीं झाडिय़ां। ऐसे सभी खसरों को प्रतिबंधित करने के साथ किसानों द्वारा पंजीयन में बताए गए खसरों का भौतिक सत्यापन कराया जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज बेचने के लिए आठ लाख किसानों ने पंजीयन कराया है। इसमें सर्वाधिक कृषक जबलपुर संभाग के हैं। पिछले साल भी लगभग इतने की किसानों का पंजीयन हुआ था।
उपार्जन के साथ-साथ कराई जाएगी मिलिंग
सरकार ने धान की मिलिंग उपार्जन के साथ-साथ कराने का निर्णय लिया है। धान की खरीद होने के बाद मिलर को धान आवंटित की जाएगी। प्रति क्विंटल धान पर 67 किलोग्राम चावल बनाकर देना होगा। चावल सीधे भारतीय खाद्य निगम और नागरिक आपूर्ति निगम को दिया जाएगा। धान के भंडारण के लिए राज्य भंडार गृह निगम ने गोदामों की व्यवस्था कर ली है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved