नई दिल्ली । नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। किसान अपनी मांग से टस-मस नहीं हुए हैं। पांच दौर की वार्ता के बाद आगे की बातचीत ठहर गई है। इस ठहराव को खत्म करने और आंदोलन से बने संकट से निजात दिलाने को अब सरकार संकटमोचक ढूढ़ रही है। सरकार के संकटमोचक के तौर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह या फिर राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि किसानों से अगले दौर की संभावित वार्ता में इन दोनों में से कोई एक मंत्री शामिल हो सकता है।
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राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े कृषि प्रधान राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और केंद्र में कृषि मंत्री भी। उनकी साख गांव, गरीब-किसान हितैषी के तौर पर है। सहजता से किसी से भी मिलना और उनके साथ बातें करने का उनका अंदाज लोगों पर प्रभावशाली असर डालता है। विरोधी दलों में भी उनकी पैठ है और लोग उन पर भरोसा करते हैं। मुख्यधारा की सियासत का लंबा अनुभव है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं। उनके पास अभूतपूर्व संगठनात्मक क्षमता है। कुछ ऐसी ही साख नितिन गडकरी की है।
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संघ शिक्षित गडकरी के पास भी जबरदस्त संगठनात्मक क्षमता है। संगठन और मुख्यधारा की सियासत का लंबा अनुभव है। महाराष्ट्र में मंत्री रहते और अब केंद्र में सड़क परिवहन, राजमार्ग मंत्री रहते उन्होंने अपने काम से लोगों में जो भरोसा बनाया है, बीते सात साल में मोदी सरकार का शायद ही कोई मंत्री यह साख अर्जित कर पाया हो। गडकरी अपने काम से लोगों का भरोसा जीतने वाले मंत्री कहे जाते हैं। कारपोरेट हो, सामान्य कारोबारी या फिर छोटे-मझोले उद्यमी, गडकरी को सभी गंभीरता से लेते हैं। विरोधी दलों में भी उनकी पैठ और संबंध है।
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मोदी और अमित शाह की चुनाव जिताऊ जोड़ी है, लेकिन सियासी संतुलन साधने के लिए उन्हें अरुण जेतली, राजनाथ, गडकरी जैसे नेताओं की जरूरत पड़ती रही है। जेतली जब तक जीवित रहे, संसद से लेकर सड़क तक विरोधी दलों को साधने का काम करते रहे। अब राजनाथ और गडकरी ही सरकार के पास ऐसे भरोसेमंद चेहरा हैं, जो विरोधी दलों से भी हर विषय पर बात कर सकते हैं और उन्हें साधने या समझाने में सफल हो सकते हैं। किसानों की मांगों को लेकर सरकार के स्तर पर बनने वाली रणनीति में राजनाथ सिंह अब तक पर्दे के पीछ से सहयोग कर रहे हैं, लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि अब उन्हें फ्रंट पर लाया जा रहा है।
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भारतीय किसान यूनियन (भानू) के नेता भानू प्रताप सिंह से रविवार की शाम राजनाथ सिंह से हुई मुलाकात के बाद यह चर्चा और गरमा गई है। राजनाथ से भेंट के बाद भाकियू (भानू) गुट चिल्ला बार्डर से अपना आंदोलन समेटने की तैयारी में दिख रहा है। सोमवार को यूनियन प्रमुखों के भूख हड़ताल में भी यह गुट शामिल नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के किसान नेता वी.एम. सिंह भी इस आंदोलन से खुद को अलग कर चुके हैं। सूत्रों की मानें तो राजनाथ सिंह कुछ और किसान संगठनों के संपर्क में हैं।
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वहीं सरकार ने सामानांतर रूप से विभिन्न राज्यों से ऐसे किसान संगठनों को दिल्ली बुलाकर बात करना शुरू कर दिया है, जो कथित तौर पर इन कानूनों के समर्थक हैं। पहले हरियाणा के कुछ किसान संगठनों से कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलकर अपना समर्थन जताया तो रविवार को उत्तराखंड के किसान मिले। सोमवार को भी महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु से आए 10 किसान संगठनों ने कृषि मंत्री से भेंट कर तीनों कानूनों पर समर्थन जताया। हालांकि आंदोलनरत किसान संगठनों का कहना है कि मंत्री से मिल रहे किसान संगठन न तो उनके आंदोलन से जुड़े हैं और न ही उनका उनसे कोई लेनादेना। वे इसे किसान आंदोलन को कमजोर करने और तोड़ने की सरकार की एक रणनीति के तौर पर देख रहे हैं।
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