इंदौर। उपचुनाव के बाद सत्ता में जहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मजबूत हुए, वहीं संगठन में भी उनकी धाक कायम है। राज्य निर्वाचन आयोग से लेकर पार्टी के अधिकांश नेता निगम चुनाव कराने के पक्ष में थे, मगर मुख्यमंत्री की रुचि कम थी। इसके चलते चुनाव आगे बढ़ा दिए गए। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन और प्रदेश में बदले राजनीतिक समीकरण ने इन चुनावों को अब तीन महीने के लिए टाल दिया है। अग्निबाण की खबर फिर सही निकली, जिसमें मार्च-अप्रैल में ही निगम चुनाव होने की भविष्यवाणी की थी। अब नए सिरे से 1 जनवरी के मान से मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण भी इसी बीच हो जाएगा और तब तक मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर निगम-मंडलों में की जाने वाली नियुक्तियों को लेकर भी केंद्रीय नेतृत्व निर्णय ले सकेगा। हालांकि कई दावेदारों में चुनाव आगे बढऩे से मायूसी भी है, क्योंकि तीन महीने बाद फिर नए समीकरण बन जाएंगे।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए दिल्ली में चल रहा किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। हालांकि बड़ी मुश्किल से किसान संगठन 29 दिसंबर को चर्चा के लिए तैयार हुए हैं। धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों के किसानों को भी इस आंदोलन से जोडऩे के लिए लामबंद किया जा रहा है। दिसंबर के अंत में अगर निगम चुनाव घोषित किए जाते तो जनवरी में चुनाव की प्रक्रिया पूरी करवाना होती। किसान आंदोलन का असर इन चुनावों पर पड़ेगा, इसका भी अंदेशा भाजपा के रणनीतिकारों को होने लगा, क्योंकि कांग्रेस निगम, पंचायत चुनाव में भी किसान आंदोलन को अवश्य भुनाती। वहीं प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों में नए राजनीतिक समीकरण भी बनते-बिगड़ते रहे। एक चर्चा यह चल रही है कि कांग्रेस आलाकमान, पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को कहीं दिल्ली न बुला लें, क्योंकि वहां भी कोषाध्यक्ष और सलाहकार की जगह खाली हो गई। अगर कमलनाथ को दिल्ली जाना पड़ता है तो फिर प्रदेश में नए सिरे से कांग्रेस नेतृत्व की तलाश होगी और इस पर कांग्रेस जो पहले से ही कमजोर है, उसे फिर निगम चुनाव में भी और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इधर भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान एक बार फिर ताकतवर हो गए हैं और अपने हिसाब से सत्ता के साथ संगठन में भी निर्णय करवा रहे हैं। निगम चुनाव अभी करवाने में इनकी भी रुचि कम ही थी, इसके चलते कल राज्य निर्वाचन आयोग ने तीन माह के लिए चुनाव टाल दिए।
अब मतदाता सूची भी 1 जनवरी के मान से तैयार होगी
अभी अगर चुनावी घोषणा होती तो इस साल की तैयार मतदाता सूची के आधार पर ही वार्ड पार्षदों व महापौर का निर्वाचन हो जाता। अब चुनाव आगे बढऩे की स्थिति में 1 जनवरी 2021 के मान से मतदाता सूची का पुनरीक्षण भी होगा। हालांकि स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग का नियम लागू नहीं होता है और वर्तमान सूची के आधार पर भी चुनाव कराए जा सकते हैं, लेकिन इसे अदालती चुनौती न मिले, इसलिए एहतियात के तौर पर अब 1 जनवरी 2021 के मान से मतदाता सूची का पुनरीक्षण तब तक करवा लिया जाएगा, जिसमें डेढ़ से दो माह का समय लगेगा। वैसे भी अब चुनाव मार्च या अप्रैल में ही हो सकेंगे। इधर मतदाता सूची पुनरीक्षण के चलते कुछ वार्डों में अवश्य समीकरण बदल सकते हैं। वहीं दावेदारी के घुंघरू बांधकर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक आकाओं के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे भावी पार्षद और महापौर बनने के सपने देखने वाले फिलहाल मायूस हो गए हैं। उन्हें अब फिर नए सिरे से तीन माह बाद मेहनत करना पड़ेगी।
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