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    जि़न्दगी के नाटक से एग्जि़ट लेने वाले रमेश अहीरे को पुरनम आंखों से विदाई

  • November 19, 2022

    हानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
    कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए।

    जि़ंदगी के नाटक से इतनी जल्दी एग्जि़ट… इतनी जल्दी पर्दा गिरा दिया। ये क्या किया रमेश…नाटक को बीच मे छोड़ के कोई जाता है भला। भोपाल में करीब पंद्रह सोलह बरसों से थियेटर कर रहे 42 बरस के रमेश अहीरे का 17 तारीख को स्वीमिंग पूल में तैरना सीखते वक्त गहरे पानी मे डूब जाने से इंतक़ाल हो गया था। रमेश की शरीके हयात सुनीता अहीरे और बेटा सक्षम (14) भी फि़ल्म और रंगकर्म से बावस्ता थे। रमेश सेकंड स्टॉप के पास आंबेडकर और पंचशील नगर के पास बेहद मामूली से घर मे रहते थे। थियेटर ही उनका ज़रिया-ए-माश (जीविकोपार्जन) था। कभी किसी सरकारी केम्पेन से भी जुड़ जाते। कल भदभदा विश्रामघाट पे रमेश अहीरे जब सुपुर्दे आतिश किये जा रहे थे, उनके थियेटर के संगी साथियों की आंखों से आंसू बह निकले। सीनियर थियेटर आर्टिस्ट विवेक सावरिकर बताते हैं कि रमेश शहर के हर थियेटर ग्रुप के लिए तुरुप के पत्ते की तरह थे। उनकी डिक्शनरी में ना लफ्ज़ नहीं था। नाटक के पोस्टर वो छपवा दे, उन्हें चिपकवा भी दे। सेट बनाने में वो माहिर, बैक स्टेज की जि़म्मेदारी वो उठा लें। कॉस्ट्यूम का जुगाड़ वो कर दे। कोरियोग्राफी का भी उनमे अच्छा सेंस था। प्ले की रिहर्सल के दौरान रमेश का जोश और लगन देखने लायक होती। उनके पास कोई पक्की नोकरी नहीं थी। वो बहुत कठिन जि़न्दगी जी रहे थे।


    उनके कलाकार दोस्त अंशुल कुकरेले बताते हैं कि अभावों के दरम्यान उन्हें कभी एहसासे कमतरी नहीं थी। पिछले कुछ सालों में रमेश अहीरे का नाम अच्छे एक्टरों में शुमार हो गया था। डेथ ऑफ सेल्समेन, सूखे दरख़्त, तिकड़म तिकड़म धा और बेटर हाफ में उनके काम को बहुत पसंद किया गया। गुजिश्ता 15 नवम्बर को शहीद भवन में हुए नाटक बिरसा मुंडा में रमेश ने जानदार लीड रोल किया। ये नाटक उनका आखिरी नाटक साबित हुआ। अगली 22 तारीख को रमेश जयपुर जाने वाले थे। वहां वो तरुण दत्त पांडे के नाटक बेशरमेव जयते का अहम हिस्सा थे। मरहूम रमेश अहीरे की शरीके हयात सुनीता और बेटा सक्षम भी थियेटर करते हैं। तीन चार दिन पहले सुनीता अपने बेटे सक्षम को लेकर मुम्बई गईँ थीं। वहां बेटे को नोटरी फि़ल्म के लिए कुछ शॉट्स देने थे। जिस ग्रुप के साथ वो वापस लौट रही थीं उसे अंशुल कुकरेले कार्डिनेट कर रहे थे। अंशुल बताते हैं। मुम्बई से भोपाल लौटते हुए मुझे हादसे की खबर मिल गई थी। हमने वो खबर भोपाल पहुंचने तक सुनीता से छुपाए रखी। आज विश्रामघाट पे रंगकर्मी अशोक बुलानी, सरफऱाज़ हसन, अनिल संसारे,संतोष पणिकर, एहतेशाम आज़ाद, आशीष श्रीवास्तव, बिशना चौहान सहित कई लोग मौजूद थे। मरहूम रमेश अहीरे को दिल की गहराईयों से खिराजे अक़ीदत।

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