मुंबई। देश में सामाजिक बदलाव लाने और महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले दो ऐसी महान शख़्सियतें रहीं हैं, जिनके योगदान को देश कभी नहीं भुला पाएगा। लोगों के जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन लाने की दिशा में काम करने वाली पति-पत्नी की इस जोड़ी पर जल्द ही एक बायोपिक बनने जा रही है। हिंदी फ़ीचर फिल्म ‘फुले’ के लेखन और निर्देशन की कमान राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक अनंत महादेवन के हाथों में है तो वहीं प्रतीक गांधी और पत्रलेखा जैसे उम्दा कलाकार समाज सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मशहूर महात्मा और सावित्री फुले की मुख्य भूमिकाओं में नज़र आएंगे।
फिल्म ‘फुले’ के फर्स्ट लुक का अनावरण महात्मा फुले की 195वीं वर्षगांठ के मौके पर 11 अप्रैल को किया गया। फर्स्ट लुक जारी होते ही लोगों की उत्सुकता बढ़ गयी है, पोस्टर में प्रतीक और पत्रलेखा हूबहू महात्मा और सावित्री फुले की तरह ही दिख रहे हैं। महात्मा फुले और सावित्री फुले ने साझा तौर पर छुआछूत और जातीय भेदभाव के खिलाफ लम्बे समय तक आंदोलन चलाया। उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना करते हुए पिछड़ी जाति के लोगों के लिए समान अधिकारों के लिए पैरवी और संघर्ष किया था। दोनों का महिलाओं को स्कूली शिक्षा दिलाने के क्षेत्र में भी बहुत योगदान है।
ज्योतिबा फुले के किरदार को निभाने को लेकर बेहद उत्साहित प्रतीक गांधी कहते हैं, “महात्मा फुले का किरदार निभाना और दुनिया के सामने उनके व्यक्तित्व को पेश करना मेरे लिए गौरव की बात है। यह पहला मौका है जब में किसी बायोग्राफ़ी में एक अहम किरदार निभा रहा हूं। इस किरदार को निभाना मेरे लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है, मगर एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व होने के नाते महात्मा फुले के रोल को निभाने को लेकर मैं बहुत उत्साहित हू।”
प्रतीक कहते हैं, “मुझे याद है कि फिल्म की कहानी सुनने के बाद मैंने तुरंत इस फिल्म में काम करने के लिए हामी भर दी थी। कुछ किरदारों पर किसी का नाम लिखा होता है और मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि अनंत सर ने मुझे इसमें काम करने का ऑफर दिया। मुझे बेहद खुशी है कि इसके निर्माताओं ने महात्मा और सावित्री फुले द्वारा सामाजिक बदलाव के लिए समर्पित किये गये जीवन के बारे में आज की पीढ़ी को अवगत कराने का बीड़ा उठया है।”
फिल्म में अपने किरदार से बेहद ख़ुश अभिनेत्री पत्रलेखा ने कहा, “मेरी परवरिश मेघालय के शिलॉन्ग में हुई है। यह एक ऐसा राज्य है जहां पर महिलाओं के हको और फैसलों को पुरुषों से अधिक अहमियत दी जाती है। ऐसे में नारी-पुरुष समानता का विषय मेरे दिल में एक बेहद अहम स्थान रखता है। सावित्री फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पूरी तरह से घरेलू सहयोग से लड़कियों के लिए एक स्कूल का निर्माण किया था। महात्मा फुले ने विधवाओं के पुनर्विवाह कराने और गर्भपात को नियंत्रित करने के लिए एक अनाथ आश्रम की भी स्थापना की थी। ये फिल्म मेरे लिए एक बहुत खास फिल्म है।”
लेखक, अभिनेता और निर्देश अनंत महादेवन हाल ही में सिंधुताई सकपाल की बायोपिक को लेकर खूब चर्चा में रहे हैं। फिल्म ‘मीसिंधुताई सकपाल’ के जीवन के अनूठे सफ़र को दर्शाती है। इसमें दिखाया गया है कि किस तरह से सिंधुताई सकपाल ने बेसहारा बच्चों के लिए एक मसीहा बनकर उनके जीवन में सकरात्मक बदलाव लाने की तमाम तरह की कोशिशें कीं। अनंत महादेवन द्वारा मशहूर स्वतंत्रता सेनानी पर बनाई फिल्म ‘गौरहरि दास्तां’ में एक स्वतंत्रता सेनानी की अपनी ही सरकार से 32 साल तक चली लड़ाई को दिखाया गया है। इन फ़िल्मों के अलावा अनंत महादेवन ने भारत की पहली महिला डॉक्टर रक्माबाई पर इसी नाम से एक फिल्म और ‘माईघाट’ व ‘बिटर स्वीट’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर सामाजिक अलग कहानियों को बड़े ही संवेदनशील और रोचक तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया है।
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