उज्जैन। एक दिन पहले स्थानीय 13 अखाड़ों के संतों और प्रतिनिधियों ने अवधेशपुरी महाराज को संत समाज से बहिष्कार कर दिया था। परंतु दूसरे दिन जूना अखाड़ा से जुड़े कुछ संतों ने इस मामले से खुद को अलग बताया है। उनका कहना है कि अवधेशपुरी के बहिष्कार की घोषणा से उनका कोई लेना देना नहीं है। यह महानिर्वाणी अखाड़े का आपसी मामला है। संत अवधेश पुरी महाराज के बहिष्कार में शनिवार को नया मोड़ आ गया। जूना अखाड़ा से जुड़े कुछ संतों ने कहा कि जिन संतों को बैठक में अन्य विषयों का बोलकर बैठक में बुलाया गया था उन्होंने कहा कि हमें अन्य विषयों पर चर्चा हेतु बैठक में आने का कहा गया था जिसमें शिप्रा आंदोलन, मठ मंदिर से जुड़े विधेयक को लेकर थी लेकिन बाद में वहां उक्त विषय रखकर सभी से सहमति ली गई।
इसमें महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनित गिरी महाराज ने संत अवधेशपुरी के बहिष्कार का विषय भी मीडिया में बताया। जूना अखाड़ा नीलगंगा के थानापति महंत देवगिरी महाराज, ज्योतिगिति आश्रम के महंत किशनगिरी, महंत गुप्त गिरी एवं महंत देव पुरी ने एक सुर में कहा कि बैठक में यह एजेंडा भी होगा, इसकी हमें कोई जानकारी नहीं दी गई थी। बहिष्कार का विरोध कर रहे संतों का कहना था कि महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनित गिरी महाराज और संत अवधेशपुरी दोनों ही एक ही अखाड़े के हैं। ऐसे में यह उनका आपसी मामला हो सकता है परंतु संत समाज ने उनका बहिष्कार नहीं किया है। महानिर्वाणी अखाड़े में भी किसी संत को बहिष्कृत करने का अधिकार स्थानीय संतों को नहीं बल्कि अखाड़ा मुख्यालय के पदाधिकारियों और पंचों को है।
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