नई दिल्ली। फेसबुक ने पहली बार माना है कि उसके प्लेटफॉर्म से यूजर्स को धमकाया व उत्पीड़ित किया जा रहा है। एक औसत यूजर जब 10 हजार सामग्री देखता है, इनमें से करीब 15 सामग्री ऑनलाइन बदमाशी करने वालों की धमकियों की होती है। दूसरी ओर, हिंसा व भड़काऊ किस्म की पांच और नफरत फैला रही तीन अन्य सामग्री भी यूजर्स को अलग से सहनी पड़ रही हैं।
अपनी कंपनी का नया नाम मेटा रख चुके फेसबुक की ताजा सामुदायिक मानक अनुपालन रिपोर्ट में ये खुलासे हुए हैं। 2021 की तीसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर को लेकर यह रिपोर्ट दी गई। इसके अनुसार उसके प्लेटफॉर्म पर हर 10 हजार में तीन सामग्री नफरत भरी हैं। पिछली तिमाही में यह संख्या पांच थी। हिंसा और भड़काने वाली सामग्री भी चार से पांच प्रति 10 हजार मिली हैं।
इस प्रकार की 1.36 करोड़ सामग्री फेसबुक ने हटाई। इनमें से केवल 3.3 प्रतिशत यूजर्स ने रिपोर्ट की थीं, बाकी फेसबुक के निगरानी सॉफ्टवेयर्स ने पकड़ी। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ तकनीकी कमियों व क्षेत्रीय समझ के अभाव में ऐसी सामग्री बड़ी संख्या में बिना फेसबुक की नजर में आए प्लेटफॉर्म पर बनी रहती है।
92 लाख बार लोगों को मिली धमकियां
प्लेटफॉर्म पर तीन महीनों में यूजर्स को 92 लाख बार धमकियां मिलने व उत्पीड़ित किए जाने की बात फेसबुक ने मानी है। लेकिन इतनी सामग्री तो उसने केवल हटाई है। जो सामग्री नहीं हटाई गई, उसका आंकड़ा नहीं दिया है।
इंस्टाग्राम पर भी बुरा हाल
इंस्टाग्राम पर पहली बार नफरत भरी सामग्री की पड़ताल हुई, यह 10 हजार में दो मिली। हिंसा व भड़काने वाली सामग्री का अनुपात भी इतना ही था। इस श्रेणी की हटाई गई सामग्री 33 लाख थी।
14 मानकों पर परख रहे सामग्री
मेटा ने खुद यह माना है कि इस प्रकार की सामग्री हटाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि उनके क्षेत्रीय संदर्भ और परिप्रेक्ष्य समझना उसके लिए जटिल है। मेटा फेसबुक पर 14 और इंस्टा पर 12 मानकों पर विभिन्न सामग्री परख रही है।
फेसबुक ने कहा- संवेदनशील श्रेणी के विज्ञापन रोकेंगे
फेसबुक का कहना है कि वह स्वास्थ्य, नस्ल, राजनीतिक झुकाव, धर्म या लैंगिक रुचि जैसे संवेदनशील विषयों पर टार्गेटेड विज्ञापन नहीं देगी। इसकी शुरुआत अगले वर्ष 19 जनवरी से करेगी। इस समय वह इन विषयों से जुड़े लोगों, संगठनों और मुद्दों में रुचि रखने वालों को टार्गेटेड विज्ञापन देती है।
160 भाषाओं में संवाद मूल्यांकन मात्र 70 का
अपने मानकों का उल्लंघन पकड़ने के लिए फेसबुक 70 भाषाओं की सामग्री का ही मूल्यांकन करता है। इनमें से भारतीय भाषाएं केवल पांच हैं। जबकि उसके प्लेटफॉर्म पर 160 भाषाओं में संवाद हो रहा है। इसी वजह से उसका सिस्टम नाकाम साबित हो रहा है।
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