– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भारत ने अपनी संवैधानिक यात्रा में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस अवधि में प्रजातंत्र की जड़ें यहां गहरी हुई है। प्रमुख लोकतांत्रिक देशों में भारत प्रमुख रूप से शामिल है। यहां संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप सरकारों की रचना होती है। संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ शब्दावली से शुरू होती है। भारत के लोग ही चुनाव के माध्यम से जनादेश देते हैं। भारत से अलग होकर निर्मित पाकिस्तान को आज तक संवैधानिक व्यवस्था पर चलने का सलीका नहीं आया। वहां निर्वाचित सरकार भी सेना के नियंत्रण में रहती है। सैन्य कमांडर की नजर तिरछी होने के बाद निर्वाचित प्रधानमंत्री को भी कुर्सी छोड़नी पड़ती है। यह स्थिति तब रहती है जब सेना का सीधे सत्ता पर नियंत्रण नहीं रहता है। लगभग आधे समय तक वहां की सत्ता पर सेना के जनरल का नियंत्रण रहा है।
भारत ने प्रजातंत्र के उच्च प्रतिमान स्थापित किये हैं। सभी प्रधानमंत्रियों ने अपने-अपने तरीके से कार्य किया। कई बार नेकनीयत से किये गए कार्यों के भी बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं। भारत की संवैधानिक व्यवस्था में भी ऐसे तथ्य दिखाई देते है। यहां लोकप्रियता के शिखर पर रहे जवाहर लाल नेहर, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी व नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इनमें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी को पराजय भी देखनी पड़ी। जबकि जवाहर लाल नेहरू और अभी तक नरेन्द्र मोदी अपराजित रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता पीछे रहने वाले भी प्रधानमंत्री बने। लाल बहादुर शास्त्री को अल्प समय में प्रतिष्ठा मिली। मनमोहन सिंह का उदाहरण सबसे अलग है। वह कभी ग्राम प्रधान या पार्षद का चुनाव नहीं जीते, लेकिन दस वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने करीब दो दर्जन दलों के सहयोग से बेहतरीन सरकार चलाई। इसके पहले एक मत से उनकी सरकार लोकसभा में पराजित हो गई थी। तब उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने लोकसभा में बैठकर सरकार के विरुद्ध मतदान किया था। उस समय तक लोकसभा की सदस्यता से उन्होंने त्यागपत्र नहीं दिया था। तकनीकी रूप से उनका मतदान करना भले ठीक रहा हो, लेकिन यह संविधान की भावना के विरुद्ध था। संविधान निर्माता यह नहीं चाहते थे कि कोई नेता विधानसभा व लोकसभा की कार्यवाही में एक साथ सम्मिलित हो।
चरण सिंह, वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल राजनीतिक जोड़तोड़ के चलते प्रधानमंत्री बने थे। उनकी ताजपोशी संसदीय व्यवस्था के संख्या फैक्टर से संभव हुई थी। इन सभी प्रधानमंत्रियों की चर्चा चलेगी तब अनेक दिलचस्प तथ्य भी उजागर होंगे। इनके बाद नरेन्द्र मोदी ने अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके कार्यकाल में ऐतिहासिक समस्याओं का समाधान हुआ। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण, श्री विश्वनाथ धाम निर्माण, अनुच्छेद 370 व 35 ए, तीन तलाक की समाप्ति हुई। गरीबों को अनेक योजनाओं का अभूतपूर्व लाभ मिला। 40-60 वर्ष से लंबित योजनाओं को पूरा किया गया।
यह संयोग है कि नरेन्द्र मोदी ने ही प्रधानमंत्रियों से जुड़े संग्रहालय का लोकार्पण किया। यह लोकार्पण डॉ. आंबेडकर की जन्म जयंती पर किया गया। वह संविधान के शिल्पी थे। उनकी प्रतिष्ठा में सर्वाधिक कार्य नरेन्द्र मोदी सरकार ने किए हैं। इसमें उनके जीवन से संबंधित स्थलों का भव्य निर्माण किया गया। इसके साथ ही दलित वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ वंचित वर्ग को तक पहुंच रहा है। नरेंद्र मोदी ने डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को भव्य स्मारक का रूप प्रदान किया। इसमें लंदन स्थित आवास, उनके जनस्थान, दीक्षा स्थल, इंदुमिल मुम्बई और नई दिल्ली का अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान शामिल हैं। यह अपने ढंग का अद्भुत संस्थान है, जिसमें एक ही छत के नीचे डॉ. आंबेडकर के जीवन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से देखा-समझा जा सकता है। पिछले दिनों मोदी ने यह संस्थान राष्ट्र को समर्पित किया था।
संयोग देखिये, इसकी कल्पना अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और इसे पूरा नरेन्द्र मोदी ने किया। प्रधानमंत्री संग्रहालय में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान उल्लेखित हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू का चित्रण संस्थान निर्माता के रूप में किया गया है। यह पहले नेहरू म्यूजियम था। इसे नया स्वरूप दिया गया है। यहां देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों से जुड़ी स्मृतियों व योगदान को दर्शाया गया है। इसके अलावा कई लोकतांत्रिक मूल्यों की भी चर्चा की गई। जवाहर लाल नेहरू, गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, मनमोहन सिंह शामिल हैं। राष्ट्र निर्माण में इन सभी के योगदान की सराहना की गई। यह उनकी विचारधारा और कार्यकाल को अप्रतिम श्रद्धांजलि है। इसकी कल्पना नरेन्द्र मोदी ने ही की। वर्तमान पीढ़ी को सभी प्रधानमंत्रियों के कार्यों और उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलेगी।
प्रधानमंत्री संग्रहालय ब्लॉक एक के रूप में नामित तत्कालीन तीन मूर्ति भवन को ब्लाक दो के रूप में नामित नवनिर्मित भवन के साथ एकीकृत किया गया है। संग्रहालय के लिए कोई पेड़ नहीं काटे गए। यह भी नरेन्द्र मोदी का ही विजन है। वह प्रकृति संरक्षण की सदैव प्रेरणा देते हैं। इसी क्रम में ऊर्जा संरक्षण व्यवस्था को शामिल किया गया है। गहन शोध और अध्ययन के बाद प्रधानमंत्री संग्रहालय का निर्माण किया गया है। सूचना प्रसार भारती, दूरदर्शन, फिल्म प्रभाग, संसद टीवी, रक्षा मंत्रालय, देश-विदेश के मीडिया हाउस समाचार एजेंसियों आदि जैसे संस्थानों के माध्यम से सामग्री का संग्रह किया गया। सभी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत वस्तुएं, उपहार और यादगार वस्तुएं, उनके भाषण व जीवन के विभिन्न पहलू यहां दिखाई देंगे।
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश के हर प्रधानमंत्री ने संविधान सम्मत लोकतंत्र के लक्ष्यों की पूर्ति में भरसक योगदान दिया है। देश के विकास में स्वतंत्र भारत के बाद बनी प्रत्येक सरकार का योगदान है। संग्रहालय प्रत्येक सरकार की साझा विरासत का जीवंत प्रतिबिंब है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामान्य परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी शीर्षतम पदों पर पहुंच सकता है। ज्यादातर प्रधानमंत्री बहुत ही साधारण परिवार से रहे हैं। सुदूर देहात के एकदम गरीब, किसान परिवार से आकर भी प्रधानमंत्री पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की महान परंपराओं के प्रति विश्वास को दृढ़ करता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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