– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
कोरोना के कारण ठप अर्थव्यवस्था में खेती किसानी ने ऑक्सीजन का काम किया है। लाख विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अन्नदाता ने देश में अन्न धन के भण्डार भर कर बड़ा सहारा दिया है। लंबे लॉकडाउन के कारण उद्योग-धंधों में आए ठहराव के बावजूद खेती किसानी ने उत्तरोत्तर प्रगति की है। अन्नदाता की मेहनत का ही परिणाम है कि देश आज कृषि निर्यात के क्षेत्र में दुनिया के दस शीर्ष निर्यातक देशों की सूची में शामिल हो गया है। साल 2020-21 के दौरान कृषि निर्यात के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है। वर्ष 2020(21 में कृषि क्षेत्र से समग्र निर्यात 41.25 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।
देश से पहली बार कलस्टरों से निर्यात को प्रोत्साहित किया गया है। कलस्टर आधारित यह एप्रोच भविष्य के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है। देश में विकसित कलस्टरों में से बनारस से ताजा सब्जियां, चंदौली से काला चावल का निर्यात किया गया है। नागपुर के संतरे, लखनऊ से आम, अनंतपुर से केले आदि लंदन, दुबई व अन्य स्थानों पर निर्यात किए गए हैं। मसालों के निर्यात में देश अग्रणी रहता ही आया है। भारत से अनाज के साथ ही मोटे अनाज के निर्यात क्षेत्र में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इससे यह साफ हो जाना चाहिए कि देश के कृषि उत्पादों की वैश्विक पहचान के साथ ही वैश्विक मांग भी देखी जा रही है। देखा जाए तो अब दुनिया के देशों में भारत तेजी से प्रमुख कृषि उत्पाद निर्यातक देश बनता जा रहा है।
62 की लड़ाई और देश में अन्न संकट को कभी भुलाया नहीं जा सकता। समूचे देश ने एक दिन यानी सोमवार को व्रत करने की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के आह्वान पर की। इस तरह का दुनिया में संभवतः पहला उदाहरण होगा जब अन्न संकट के कारण समूचे देश में एक दिन के व्रत का संकल्प किया गया हो। पुरानी पीढ़ी के कुछ लोग तो आज भी सोमवार का व्रत लाल बहादुर शास्त्री के आह्वान पर कर रहे हैं। यही वह भारत है जब प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को भी विदेशों के आगे अन्न के लिए हाथ फैलाना पड़ा। अमेरिका से जिस तरह का सड़ा-गला अनाज आता था वह उस पीढ़ी की यादों में समाया हुआ है। पर जिस तरह से योजनाबद्ध तरीके से देश में अनाज उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए गए उसके परिणाम सामने हैं। हालांकि अब समय की मांग को देखते हुए जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है। हालिया सालों में दलहन का उत्पादन बढ़ाने का अभियान चलाया गया तो अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 11 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक के निवेश की घोषणा की है।
आज हमारे देश से अमेरिका, चाइना, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमिरात, वियतनाम, इंडोनेशिया, नेपाल, ईरान और मलेशिया आदि में निर्यात हो रहा है। आलोच्य साल में इंडोनेशिया को निर्यात में अधिक बढ़ोतरी हुई है। अनाजों के साथ ही गैर बासमती चावल, बाजरा, मक्का आदि मोटे अनाज के निर्यात में भी दो कदम आगे ही बढ़ रहे हैं। दलहन में आयात पर निर्भरता कम हो रही है तो अब तिलहन में देश का आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ गए हैं। आज भले ही हम कृषि निर्यात में आगे बढ़ रहे हैं पर खेती किसानी के क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है तो अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग के दुष्प्रभाव छिपे हुए नहीं है।
अब देश सतर्क है। जैविक खेती की और ध्यान गया है। इन सबके बावजूद कुछ दीर्घकालीन सुधार समय की मांग है। फसलोत्तर गतिविधियों में सुधार की बहुत अधिक आवश्यकता है। इसका बड़ा कारण है कि फसल तैयार होने के बाद कटाई से लेकर गोदाम तक आने के बीच बहुत अधिक मात्रा में खाद्यान्नों का नुकसान हो जाता है। फसलोत्तर गतिविधियों में वेल्यू एडेड के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। देश में बागवानी फसलों के रखरखाव व विपणन के लिए देशव्यापी कोल्ड स्टोरेज चैन विकसित करने की आवश्यकता है तो देश में वातानुकूलित कंटेनरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए योजनाबद्ध प्रयास किए जाने हैं। जिस तरह से फूड पार्क विकसित करने की घोषणाएं हो रही है, घोषणा की तुलना में धरातल पर अभी अधिक कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में कृषि क्षेत्र में इन दीर्घकालीन सुधारों पर ध्यान दिया जाता है तो वह दिन दूर नहीं जब कृषि निर्यात के क्षेत्र में और भी अधिक तेजी से देश आगे बढ़ सके।
पोस्ट कोरोना परिदृश्य भी देश की खेती किसानी के पक्ष में है और इसका बड़ा कारण दुनिया के देशों में चीन के प्रति आक्रोश है। दुनिया के देश कोरोना के चलते चीन को विलेन समझने लगे है। इन बदली परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए भी सरकार और अन्नदाता को आगे आना होगा। यह साफ हो जाना चाहिए कि कोरोना के इस दौर में अभी आने वाले दो तीन सालों तक उद्योगों को संभलने में समय लगेगा, ऐसे में खेती किसानी सबसे बड़ा संभावनाओं वाला क्षेत्र हो गया है। इसलिए अन्नदाता के सहयोग के लिए सभी नीति नियंताओं को मिलकर कार्ययोजना बनानी होगी ताकि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हो सके। खेती किसानी से अन्नदाता गौरवान्वित महसूस कर सके। इसलिए भले ही हम निर्यात में दस प्रमुख देशों में शुमार हो गए हों पर अभी रुकना नहीं आगे बढ़ना है और इसके लिए तात्कालिक प्रयासों के स्थान पर लंबी अवधि की योजना बनानी होगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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