भोपाल। देशभर में बाघों की गणना (बाघ आकलन-2022) पूरी हो चुकी है। अब परिणाम का इंतजार है, जो अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (29 जुलाई) पर आने की संभावना है। ऐसे में मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या पर सभी की नजरें टिकी हैं। क्योंकि मुकाबला टक्कर का है। यदि बाघों की संख्या के मामले में देश में दूसरे नंबर के राज्य कर्नाटक में इस बार की गणना में ज्यादा बाघ पाए गए, तो मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा भी छिन सकता है। इन आशंकाओं के चलते इस बार बाघों की उपस्थिति वाले प्रत्येक क्षेत्र को खंगाला गया है। ऐसे 10 क्षेत्र गणना में शामिल किए गए हैं, जो वर्ष 2018 की गणना में नहीं थे। इसके बाद भी यह कहना मुश्किल है कि परिस्थिति क्या होगी?
देश में हर चार साल में बाघों की गिनती की जाती है। पिछली गिनती वर्ष 2018 में हुई थी, जिसमें मध्य प्रदेश में 526 और कर्नाटक में 524 बाघ पाए गए थे। सिर्फ दो बाघ अधिक होने के कारण मध्य प्रदेश को आठ साल पहले खोया टाइगर स्टेट का तमगा मिल गया था। अब इसे बरकरार रखने का दबाव है, इसलिए बाघ प्रबंधन के साथ बाघों की गिनती बढ़ाने के लिए नए क्षेत्र तलाश किए गए। उनकी गिनती की गई और कैमरा ट्रैप से बाघों के फोटो लिए गए। इस आधार पर वन अधिकारी मानकर चल रहे हैं कि टाइगर स्टेट का तमगा बरकरार रहेगा। इस बार बाघों की संख्या सात सौ के आसपास रहेगी पर यह इतना भी आसान नहीं है। अधिकारी बाघों की संख्या बढऩे का अनुमान तो लगाया रहे हैं, पर बाघों की मौत के आंकड़ों की तुलना नहीं कर रहे हैं। इस साल प्रदेश में 34 बाघों की मौत हुई है। जबकि कर्नाटक में 14 बाघ मरे हैं। देश में तीसरे नंबर पर रहे उत्तराखंड की बात करें, तो वहां सालभर में सिर्फ छह बाघों की मौत हुई है।
कर्मचारियों की कमी से हो रही देरी
सूत्र बताते हैं कि बाघ आकलन 2022 के परिणाम आने में देरी का बड़ा कारण भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में कर्मचारियों की कमी है। क्योंकि ट्रैप कैमरे से लिए गए बाघ के फोटो, सेटेलाइट इमेजरी, क्षेत्र में मिले बाघ उपस्थिति के प्रमाण आदि का मिलान किया जाता है।
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