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    ‘हर किसी को जीवनसाथी चुनने का अधिकार’, समलैंगिक विवाह पर ममता के भतीजे अभिषेक का बयान

  • April 21, 2023

    नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता अभिषेक बनर्जी ने समलैंगिकों के विवाह (Same Gender Marriage) का समर्थन करते हुए कहा कि हर किसी को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि हर किसी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। प्यार की कोई सीमा नहीं होती है।

    नोटिस पितृसत्ता पर आधारित
    इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके न केवल समान लिंग वाले वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी, बल्कि इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और स्थिर रिश्ते हैं।

    सीजेआई ने कहा था कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर अदालत पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुंच चुकी है, जिसने इस बात पर विचार किया था कि समान लिंग वाले लोग ‘स्थिर विवाह’ जैसे रिश्तों में होंगे। इसलिए समलैंगिक विवाह का विस्तार विशेष विवाह अधिनियम तक करने में कुछ गलत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत आपत्तियां आमंत्रित करने वाला नोटिस पितृसत्ता पर आधारित था।

    भारत एक लोकतांत्रिक देश
    अभिषेक बनर्जी ने कहा कि मामला न्यायाधीन है और भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हर किसी को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है क्योंकि प्यार का कोई धर्म नहीं होता। प्यार की कोई सीमा नहीं होती । उन्होंने कहा कि मैं अपने पसंद का जीवन साथी चुनना चाहता हूं। अगर मैं एक पुरुष हूं और मुझे पुरुष ही पसंद हो तो क्या मुझे जीवनसाथी चुनने का हक नहीं है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट सही फैसला सुनाएगा।


    सरकार की एक याचिका खारिज
    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया था कि समलैंगिकों के विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाएं केवल शहरी अभिजात्य विचारों को दर्शाती हैं। कोर्ट ने कहा था कि सरकार के पास ऐसे कोई आंकड़े नहीं है, जिससे यह स्पष्ट हो सके।

    गौरतलब हो, सीजेआई ने यह टिप्पणी तब कि जब याचिकाकर्ताओं की तरफ के एक वकील ने कहा था कि एनसीपीसीआर समलैंगिक जोड़े के बच्चे को गोद लेने के मसले को लेकर चिंतित है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके न केवल समान लिंग वाले वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी, बल्कि इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और स्थिर रिश्ते हैं।

    सीजेआई ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर अदालत पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुंच चुकी है, जिसने इस बात पर विचार किया था कि समान लिंग वाले लोग ‘स्थिर विवाह’ जैसे रिश्तों में होंगे। इसलिए समलैंगिक विवाह का विस्तार विशेष विवाह अधिनियम तक करने में कुछ गलत नहीं है।

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