नई दिल्ली: आमतौर पर हर मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करने के लिए कहा जाता है. इतना ही नहीं हर जाप माला में मनके भी 108 ही होते हैं. इसके अलावा इन 108 मनकों के अलावा एक और अलग बड़ा मनका होता है. भले ही मंत्र जाप किसी भी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए जाए. मनकों की इस तय संख्या के पीछे की वजह बेहद खास है.
बड़े मनके को कहते हैं सुमेरू पर्वत
सनातन धर्म में हर देवी-देवता की आराधना करने के लिए उनकी कृपा पाने के लिए मंत्र बताए गए हैं. इन मंत्रों का जाप करने के लिए माला का उपयोग भी किया जाता है. भले ही मंत्र अलग-अलग हों और देवी-देवता अलग-अलग हों लेकिन माला में मनकों की संख्या 108 ही होती है.
हालांकि अलग-अलग देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग मालाओं का उपयोग किया जाता है. जैसे स्फटिक, रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, मोतियों या रत्नों से बनी माला. इन मालाओं में 108 मनकों के अलावा एक और अलग मनका होता है, जिसे सुमेरू पर्वत कहते हैं. इस मनके को जाप में शामिल नहीं किया जाता है.
हमेशा माला से जाप करते समय बड़े मनके के पास वाले एक मनके से मंत्र जाप शुरू होती है और फिर सारे मनकों को पार करके दूसरे छोर के आखिरी मनके पर खत्म होती है. लेकिन इस दौरान बड़े मनके को नहीं पार किया जाता है. सुमेरू पर्वत को ब्रह्मांड में सबसे ऊंचा माना गसा है. इसलिए हर मंत्र जाप के बाद सुमेरू पर्वत को प्रभु मानकर उनका माथे से स्पर्श किया जाता है.
108 मनकों के पीछे ये हैं मान्यताएं
माला के 108 मनकों को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. एक मान्यता के मुताबिक नक्षत्रों की संख्या 27 है और हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं. ऐसे में 27 का 4 से गुणा करने पर 108 आता है. इसलिए माला में 108 मनके रखे जाते हैं. इसी तरह ब्रह्मांड को 12 भागों में बांटा गया है इसलिए ज्योतिष में राशियों की संख्या भी 12 है. साथ ही उनके स्वामी ग्रह 9 हैं.
12 और 9 का गुणा करने पर भी 108 आता है. इसके अलावा धर्म-शास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को दिनभर में कम से कम 10,800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए. हालांकि ऐसा करना सभी के संभव नहीं हो पाता है. इसलिए 10,800 में से पीछे के दो शून्य हटाकर इस संख्या को 108 कर दिया गया है. कहा गया है कि पूरे मन से किया गया 108 बार का जाप भी 10,800 जाप का पुण्य देता है.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved