नई दिल्ली: पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के होश उड़ाने की दिशा में भारत एक कदम और बढ़ गया है. इसने अपने हल्के लेकिन शक्तिशाली टैंक जोरावर के परीक्षण का एक और चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की ओर से इस टैंक का प्रारंभिक ऑटोमोटिव परीक्षण भी सफल रहा है.
लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के साथ मिलकर बनाए गए इस टैंक का इससे पहले एलएंडटी के सूरत में हजीरा प्लांट में टेस्टिंग की गई थी. इसी बहाने आइए जान लेते हैं कि भारतीय सेना किसने टैंक हैं और ये कितने पावरफुल हैं. जोरावर टैंक का वजन केवल 25 टन है. ढाई साल में इस टैंक को डिजाइन कर इसका पहला प्रोटोटाइप भी बना लिया गया था. फिलहाल यह डेवलपमेंट टेस्टिंग के दौर से गुजर रहा है.
वजन में हल्का होने के बावजूद जोरावर किसी भी मामले में कमजोर नहीं है, बल्कि यह कई मामलों में दूसरे टैंक के मुकाबले भारी ही है. पूरी तरह से बख्तरबंद इस टैंक का वजन कम होने के कारण दुर्गम से दुर्गम रास्तों से इसे ले जाया जा सकता है. यही नहीं, जरूरत पड़ने पर प्लेन और ट्रेन से भी इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर कम समय में पहुंचाया जा सकता है.
तेज रफ्तार से इसे हजारों फुट की ऊंचाई से लेकर ऊबड़-खाबड़-बीहड़ पहाड़ी पर चढ़ाया जा सकता है तो मैदान और रेगिस्तान में भी इसकी रफ्तार धीमी नहीं पड़ती. इसके साथ ही इसकी मारक क्षमता ऐसी है कि बड़े से बड़े टैंक पर भी भारी पड़ सकता है. दिन हो या रात, यह दुश्मन पर समान गति से हमला कर सकता है. आगे की ओर ही नहीं, रिवर्स में भी यह टैंक एक ही राउंड में दुश्मन के टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों को नेस्तनाबूद कर सकता है.
पूरी तरह से स्वदेशी जोरावर ट्रैंक को ड्रोन और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी लैस किया जा रहा है. इसमें लगी 105 मिमी की गन से एंटी टैंक मिसाइलें दागी जा सकती हैं. मुख्य तोप के अलावा दूसरे हथियार चलाने के लिए भी इसमें सिस्टम है. एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम के जरिए जोरावर दुश्मनों के हमले से खुद को सुरक्षित रख सकता है. इसमें लगे सभी सिस्टम पहाड़ों के माइनस टेम्प्रेचर और रेगिस्तान के अधिकतम तापमान में समान रूप से फायर कर सकते हैं. इसके चालक दल की संख्या दो से तीन होगी.
भारत के पहले मेन बैटल टैंक का निशाना महाभारत के अर्जुन की तरह ही अचूक है. इसीलिए इसे नाम भी अर्जुन ही दिया गया है. क्रॉस कंट्री में 40 किमी प्रति घंटा और अधिकतम 70 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चलने में सक्षम अर्जुन के इंजन की ताकत 1400 घोड़ों के बराबर है. मॉड्यूलर कम्पोजिट आर्मर से लैस अर्जुन टैंक को रासायनिक हमलों से बचाने के लिए खास सेंसर लगाए गए हैं. दिन-रात किसी भी परिस्थिति में इस्तेमाल के लिए तैयार अर्जुन में जैमर के साथ ही एडवांस्ड लेजर वार्निंग काउंटरमेजर सिस्टम भी है. भारतीय सेना के 124 अर्जुन एमके1 टैंक सेवारत हैं तो 119एमके1ए टैंक और सेना में शामिल करने के लिए ऑर्डर दिया जा चुका है.
भारतीय सेना का एक और मेन बैटल टैंक है टी-90 भीष्म, जो दुनिया के सबसे पावरफुल टैंकों में शामिल है. पहले टी-90 को रूस से आयात किया जाता था पर अब इसे देश में ही बनाया जाता है. 125 मिमी गन से लैस भीष्म 60 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से चल सकता है और इसमें एक साथ 43 गोले रखे जा सकते हैं. 550 किमी ऑपरेशन रेंज वाला भीष्म टॉप अटैक प्रोटेक्शन केज से लैस है, जिसके कारण इस पर सवार जवानों को हेलीकॉप्टर से गोलियां बरसाकर भी निशाना नहीं बनाया जा सकता.
आत्मघाती ड्रोन, ग्रेनेड और एंटी टैंक मिसाइल भी इस सिस्टम के कारण भीष्म में सवार लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती. भारतीय सेना के पास 1200 भीष्म टैंक हैं और जुलाई 2023 में इसमें लगाने के लिए 400 सॉफ्टवेयर डिफाइन्ड रेडियो ऑर्डर दिया जा चुका है, जिससे इसकी नेटवर्किंग क्षमता और बढ़ाई जा सके.
भारतीय सेना के पास 2400 टी-72 टैंकों का बेड़ा है, जिसमें से अब 1800 टैंकों को एडवांस एआई बैटल क्षमता वाले टैंकों से रिप्लेस करने की तैयारी है. 41 टन वजनी टी-72 टैंकों को महाबली कहा जाता है जो सड़क पर 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं तो ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर भी इनकी स्पीड 35 से 40 किमी प्रति घंटे रहती है. इसकी 125 मिमी की तोप साढ़े चार किमी दूरी तक मार कर सकती है. इसमें 12.7 मिमी और 7.62 मिमी की दो मशीन गन भी होती हैं. यह न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हमलों से बचने में सक्षम है.
कई हमलों के दौरान भारतीय सेना का साथ देकर देश को जिताने में अहम भूमिका निभाने के कारण टी-72 का नाम अजेय पड़ा. हालांकि, अब भविष्य की जरूरतों को देखते हुए कॉम्बैट व्हीकल तैयार किए जाने की योजना है. इन नए फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), ड्रोन इंटीग्रेशन, एनहैंस्ड सिचुएशनल अवेयरनेस और एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम जैसी सुविधाएं होंगी.
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