नई दिल्ली: ओडिशा हाई कोर्ट (Odisha High Court) ने आय से अधिक संपत्ति (disproportionate assets) के एक केस (Case) में बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने माना है कि अगर कोई व्यक्ति (Person) आय से अधिक संपत्ति के लिए आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा है, तो उसकी पत्नी (Wife) को सिर्फ इसलिए आरोपी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उसके नाम पर कुछ संपत्तियां हैं.
हाई कोर्ट ने बुधवार (6 मार्च) को एक हाउस वाइफ के मामले पर विचार करते हुए यह फैसला सुनाया. महिला का पति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत दर्ज आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुख्य आरोपी है. महिला ने अपने पति की ओर से किए गए अपराध के लिए उसके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती दी थी.
क्या कहा अदालत ने?
न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा, “आमतौर पर यह स्वाभाविक प्रक्रिया है कि एक बेरोजगार पत्नी हमेशा अपने नियोजित पति की इच्छा पर निर्भर रहती है. मुख्य आरोपी (पति) याचिकाकर्ता (पत्नी) की वसीयत पर हावी होने की स्थिति में है. इस प्रकार स्थिति में याचिकाकर्ता के पास चल या अचल संपत्ति की खरीद में भाग लेने के लिए अपने पति की वसीयत से इनकार करने की कोई गुंजाइश नहीं है.”
‘आय का स्रोत साबित करने की जिम्मेदारी पति की’
पीठ ने कहा कि अचल संपत्तियों को मुख्य आरोपी की आय से अधिक संपत्ति में शामिल किया गया है. याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर रही है कि उसने स्वतंत्र रूप से अपने नाम पर कथित संपत्ति अर्जित की है, इसलिए मुख्य आरोपी पर उस आय के स्रोत को साबित करने की जिम्मेदारी है जिससे उसकी पत्नी के नाम पर संपत्ति अर्जित की गई थी.
अभियोजन पक्ष की मांग हुई खारिज
अभियोजन पक्ष की ओर से याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाने की मांग को अदालत ने खारिज करते हुए कहा “यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को बनाए रखने के लिए अभियोजन पक्ष की बात मानी जाती है तो उस स्थिति में मुख्य आरोपी के परिवार का प्रत्येक सदस्य, जिसके नाम पर कोई चल या अचल संपत्ति थी/है इसमें आएगा.
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