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‘सुप्रीम’ फैसले के बाद भी जमींदार रहे हिंदू परिवार को नहीं मिला भूमि पर कब्जा, पाई-पाई को मोहताज सूरी बी

March 16, 2022


इस्लामाबाद। पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित कंबर शाहदादकोट में जमींदार रह चुके हिंदू परिवार की बहू सूरी बी इन दिनों एक-एक पाई को मोहताज हैं। उनकी जमीन पर 1963 में दबंग कट्टरपंथियों ने कब्जा कर लिया और तब से वह जमीन से बेदखल हैं। पाक सुप्रीम कोर्ट ने दो बार उनके पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन बेटों और देवर के साथ गांव में जाने पर हथियारबंद लोग धमकी देकर उन्हें निकाल देते हैं।

सूरी बी इन दिनों पीपुल्स पार्टी के लॉन्ग मार्च में अपने परिवार के साथ इस्लामाबाद पहुंच कर प्रदर्शन कर रही हैं। इस प्रदर्शन में उनके बेटे कैलाश कुमार भी शामिल हैं। सूरी बी का कहना है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मैं जब भी अपनी जमीन पर गई वहां के अधिकारी कब्जे के कागजात पर दस्तखत करने को कहते हैं और फिर विरोधी पक्ष इम्तियाज ब्रोही के साथ हथियारबंद लोग धमकियां देकर हमें वहां से निकाल देते हैं।

कैलाश कुमार और उनकी मां सूरी बी दशकों से अपनी जमीनों का कब्जा हासिल करने के लिए इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है। उन्होंने कहा, हमारे पूर्वज बंटवारे के दौरान हिंदू होने के बावजूद, पाकिस्तान और सिंध को छोड़ कर नहीं गए, इसकी हमें इतनी कड़ी सजा मिल रही है कि मेरे बच्चे गरीब होने के साथ-साथ एक-एक पैसे के मोहताज हो गए हैं।


अपनी ही जमीन से बेदखल हुआ परिवार
सूरी बी के बड़े बेटे कैलाश कुमार कहते हैं, यह घटना हमारे पैदा होने से भी पहले की है। हमारे पास कंबर जिले में करीब 238 एकड़ कृषि भूमि थी। उस समय हमारे दादा के पास काम करने वालों ने धोखे से इस पर कब्जा कर लिया। हम अल्पसंख्यक और कमजोर थे। हमारे दादाजी को न केवल डराया धमकाया गया, बल्कि जाली दस्तावेज बनाकर दीवानी अदालत में एक मुकदमा भी किया गया। हर फैसला हमारे पक्ष में रहा। लेकिन हम आज भी खाली हाथ हैं। अब उन्हें अपना गृह जिला भी छोड़ना पड़ा जबकि चाचा को पाकिस्तान तक छोड़ना पड़ गया।

दर-दर भटककर अब कराची पहुंचे
कैलाश कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में आए फैसले ने और मुश्किलें खड़ी कर दीं। कंबर शाहदादकोट शहर में जो हमारा घर था उसे तो हम मुकदमे का खर्च पूरा करने के लिए पहले ही बेच चुके हैं। पहले हम जैकबाबाद और फिर लड़काना चले गए, लेकिन जब यहां आ कर भी धमकियां आना बंद नहीं हुई तो हमें कराची आना पड़ा।

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