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    आजीवन अविवाहित होने के बाद भी हनुमान जी के पूत्र का कैसे हूआ था जन्‍म, कथा से जानें रहस्‍य

  • June 01, 2021

    नई दिल्‍ली: हनुमान जी (Hanuman Ji) ब्रह्मचारी थे, ये बात सभी जानते हैं लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि आजीवन अविवाहित (Unmarried) रहने के बाद भी उनका एक पुत्र पैदा हुआ था। श्रीराम के अनन्य भक्त, अनंत बलशाली, समुद्र को एक छलांग मे लांघ जाने वाले, सोने की लंका जलाने वाले बजरंगबली को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। हालांकि उनके पुत्र के जन्‍म (Birth Story) की कथा कम ही लोग जानते हैं। आइए जानते हैं हनुमान जी के पुत्र का जन्‍म कैसे हुआ था।

    अहिरावण ने रखा था हनुमान का रूप
    जब रावण भगवान राम (Lord Ram) से युद्ध में हारने लगा तो उसने पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करने के लिए मजबूर किया। अहिरावण अत्यंत मायावी राक्षस राजा था, उसने हनुमान का रूप धारण करके श्रीराम और लक्ष्मण (Laxman) का अपहरण किया और उन्‍हें पाताल लोक ले गए। जब इस बात का पता चला तो भगवान राम के शिविर में हाहाकार मच गया और उनकी खोज होने लगी। बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे। पाताल लोक के सात द्वार थे और हर द्वार पर एक पहरेदार था। सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने परास्त कर दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली एक वानर पहरा दे रहा था।

    पाताल लोक में हनुमान जी को मिला अपना पुत्र
    दिखने में एकदम अपने जैसे वानर को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ। उन्‍होंने जब उस वानर से परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज (Makardhwaj) बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया। मकरध्वज के मुंह से पिता के रूप में अपना नाम सुनकर हनुमान अत्यंत क्रोधित हो गए और बोले कि यह असंभव है, क्योंकि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं। फिर मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका जला कर समुद्र में आग बुझाने को कूदे थे, तब उनके शरीर का तापमान बहुत ज्‍यादा था। जब वह सागर के ऊपर थे, तब उनके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकर ने पी लिया था, और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था (Pregnancy) को प्राप्त हो गई। उसने ही मकरध्‍वज को जन्‍म दिया था।

    पूर्व जन्‍म में अप्‍सरा थी मकर
    वह मकर पूर्व जन्म में कोई अप्सरा थी, लेकिन श्राप के कारण मकर बन गई थी। बाद में उसी मकर को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया और मार दिया। बाद में वह अप्सरा भी श्राप से मुक्त हो गई। यह सुनकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया। हालांकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज ने हनुमान जी को अंदर नहीं जाने दिया। इससे हनुमान जी प्रसन्‍न भी हुए। बाद में दोनों के बीच जमकर युद्ध हुआ और अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया और फिर श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कराया। बाद में भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को ही पताल का नया राजा घोषित किया।

    नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।

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