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    शादी को कोई ‘अजनबी’ भी दे सकता है चुनौती, परीक्षण करेगा Supreme Court

  • July 19, 2021

    नई दिल्ली। क्या पति-पत्नी को छोड़ कोई अजनबी (stranger) शादी को चुनौती दे सकता है? एक मामले में उठे इस कानूनी प्रश्न का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने परीक्षण करने का निर्णय (decision to test) लिया है। न्यायिक मिसालें हैं कि सिर्फ पति या पत्नी ही पारिवारिक न्यायालय अधिनियम (family court act) के तहत शादी को चुनौती दे सकते हैं।

    सौतली मां की याचिका पर ‘बेटी’ को नोटिस
    हालांकि, इस मामले में शीर्ष अदालत ने इस बात का परीक्षण करने का निर्णय लिया है कि तीसरे पक्ष को चुनौती देने का अधिकार है या नहीं? मामले में सौतेली मां की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बेटी को नोटिस जारी किया है। अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।


    दरअसल, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ को एक ऐसे मामले से सामना करना पड़ा जिसमें एक मृत व्यक्ति की बेटी ने एक महिला के साथ हुई पिता की दूसरी शादी को अमान्य घोषित करने की मांग की थी। बेटी का दावा है कि उसकी सौतेली मां तलाकशुदा नहीं थी और 2003 में जब उसने उसके पिता से शादी की थी उस वक्त वह शादीशुदा थी, ऐसे में उसके पिता की दूसरी शादी शुरू से ही अमान्य थी।

    बॉम्बे हाईकोर्ट से यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। हाईकोर्ट ने बेटी को एक पारिवारिक अदालत के समक्ष अपनी उस याचिका के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी। पिता हिंदू थे और कंपनियों के एक समूह के मालिक थे। उनकी वर्ष 2015 में मृत्यु हो गई थी।

    इसके एक साल बाद उनकी 66 वर्षीय बेटी ने मुंबई में एक पारिवारिक अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसमें गुहार लगाई गई थी कि उसके पिता की वर्ष 2003 में हुई शादी को अमान्य व शून्य घोषित किया जाए, क्योंकि पिता ने जिससे शादी की थी वह पहले से शादीशुदा है और उसका तलाक नहीं हुआ था।

    सूचना के अधिकार से पता लगाया
    बेटी ने दावा किया था कि उसे सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के माध्यम से कुछ दस्तावेज मिले हैं, जिनसे यह पता चलता है कि उसकी दाऊदी बोहरा समुदाय से आने वाली सौतेली मां का उसके पिछले पति से वैध रूप से तलाक नहीं हुआ था। जुलाई 2019 में परिवार अदालत ने बेटी की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि सौतेली मां ने कुछ फैसलों के हवाला देते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता उनकी शादी के मामले में अजनबी है, इसलिए वह कानूनी रूप से विवाह की वैधता को लेकर सवाल नहीं उठा सकती।

    फैमिली कोर्ट ने यह भी कहा था कि चूंकि बेटी ने अपने पिछले किसी भी मामले में चाहें वह सिविल कोर्ट में हो या बॉम्बे हाईकोर्ट में, शादी को अमान्य करने के लिए नहीं कहा था। ऐसे में उसे अब अपनी याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    परिवार अदालत के आदेश को दी हाईकोर्ट में चुनौती
    बेटी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। गत मई में हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को पलट दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस तरह की स्थिति में एक बच्चे को अजनबी नहीं कहा जा सकता है। वह भी तब जब उसके पिता का निधन हो गया हो और उसके द्वारा दावा किया गया हो कि उसे पिता की दूसरी शादी को अमान्य साबित करने के सुबूत मिले हैं।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि बेटी फैमिली कोर्ट एक्ट के तहत अपने पिता की शादी की वैधता और अपनी सौतेली मां की शादी की स्थिति को लेकर मामला लड़ सकती है। साथ ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को छह महीने के भीतर बेटी द्वारा अपने पिता की दूसरी शादी की वैधता को चुनौती वाली याचिका का निपटारा करने का आदेश दिया था।

    हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची सौतेली मां
    हाईकोर्ट के आदेश को अब सौतेली मां ने वकील गौरव अग्रवाल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि केवल विवाह के पक्षकार ही अपनी शादी और इससे संबंधित अन्य मुद्दों जैसे बच्चों की कस्टडी और भरण-पोषण के संबंध में फैमिली कोर्ट के समक्ष कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

    यह फैसला जस्टिस एएस बोपन्ना ने लिखा था, जो उस समय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे और अब सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। सौतेली मां की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बेटी को नोटिस जारी किया है।

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