नई दिल्ली । भारत (India) के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर (Manipur) में करीब दो साल पहले जातीय हिंसा (Ethnic violence) भड़की थी. तबसे सरकार इसे समाप्त करने के तमाम प्रयास कर चुकी है लेकिन समुदायों के बीच की खाई गहरी ही होती गई है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा खत्म होने का नाम नहीं ले रही.जबकि सरकार (Government) की ओर से इसे खत्म करने के लिए पिछले दो वर्षों में काफी प्रयास किए जा चुके हैं.मई, 2023 में मैतेयी और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से पल रहा मतभेद हिंसा की शक्ल में सामने आया था.इसके बाद से अब तक जारी हिंसा में 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.बहुसंख्यक मैतेयी, मुख्य रूप से राज्य की इंफाल घाटी में बसे हुए हैं.
जबकि कुकी लोगों की बसावट पहाड़ी इलाकों में है.यह हिंसा मैतेयी लोगों की ओर से जनजातीय दर्जा दिए जाने की मांग किए जाने के बाद भड़की थी.जिससे नौकरियों में कोटा और जमीन के अधिकार जैसे विशेषाधिकार जुड़े होते हैं.कुकी लोगों को डर है कि अगर मैतेयी लोगों को जनजातीय दर्जा मिल जाता है तो वे और भी ज्यादा हाशिए पर चले जाएंगे.क्या बीरेन सिंह के जाने से शांत हो पाएगा मणिपुर?अभी भी सामान्य नहीं हो सका यातायातभारत की केंद्र सरकार ने राज्य को दो विशेष जातीय जोन में बांट दिया है, जिसे एक बफर जोन अलग करता है.इस इलाके में केंद्रीय सुरक्षा बल की टुकड़ियां गश्त करती रहती हैं.इस कदम के बाद हिंसा में कमी तो आई है लेकिन उसे पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है.
मणिपुर में सरकार को लगातार मिलती नाकामी की एक मिसाल ये है कि केंद्र सरकार की ओर से हाईवे पर सामान्य यातायात बहाल करने की पहल को रोक दिया गया है.एक कुकी काउंसिल ने कहा है कि वो अपने इलाकों में सामान और लोगों के सामान्य यातायात का विरोध करते हैं.काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य ने डीडब्ल्यू से नाम ना जाहिर करने की शर्त पर कहा, “हम जातीय बफर जोन के बीच लोगों के सामान्य तरीके से आने-जाने का विरोध करते रहेंगे.क्योंकि जब तक हमारी अलग प्रशासन की मांग को नहीं स्वीकारा जाता, यह (यातायात बहाली) न्याय के खिलाफ है”मणिपुर में शांति अब भी मुश्किलफरवरी में, भारत सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था.हालांकि राज्य के लिए यह कोई नई बात नहीं थी.मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था.ऐसा बीरेन सिंह के इस जातीय हिंसा का हल करने में असफल रहने के बाद किया गया था.
साथ ही कुकी समूहों की ओर से उनपर यह आरोप भी लगाया गया था कि वो मैतेयी लोगों का पक्ष लेते हैं.फरवरी में मणिपुर का शासन सीधे अपने हाथों में लेने के बाद केंद्र सरकार की ओर से राज्य में शांति का वादा किया गया था लेकिन वो भी नाकाम रहा.हालांकि हिंसा में काफी कमी आई है लेकिन जानकारों का यही कहना है कि लंबी शांति के लिए ऐसे मध्यस्थों की जरूरत है, जो तटस्थ हों और मैतेयी और कुकी दोनों ही समुदायों के प्रतिनिधियों को साथ लेकर बातचीत कर सकें.इनके अलावा नागा समुदाय को भी इस बातचीत में शामिल किया जाए, जो राज्य के पहाड़ी हिस्सों में बसे हुए हैं.बने ऐसी शांति समिति, जो दोनों पक्षों को स्वीकार होराज्य के एक सामाजिक कार्यकर्ता जांगहाओलुन हाओकिप ने डीडब्ल्यू से कहा, “समस्या का हल सिर्फ शांति प्रक्रिया के दौरान ईमानदारी और गैर-पक्षपाती रवैया अपनाकर ही हो सकता है, लगता है सरकार इस चीज की लगातार अनदेखी करती आई है”
उन्होंने कहा, “जब तक संसाधनों का समान बंटवारा या केंद्रीय व्यवस्था नहीं स्थापित होती, समस्या खत्म नहीं होगी और समाधान की प्रक्रिया जटिल बनी रहेगी.”इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप नाम के एक एनजीओ की हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि इस समस्या से निपटने का टिकाऊ तरीका यही है कि जातीय तनाव की जड़ में जो मुद्दे हैं, उन्हें हल किया जाए.और भारत सरकार को खुद पहल करके एक शांति समिति का निर्माण करना चाहिए, जिसे दोनों ही समुदाय स्वीकार करें.
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